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UPA सरकार का कानून, कोर्ट का फैसला, NSA के तहत जेल में बंद अमृतपाल सिंह तो लड़ सकता है चुनाव, लेकिन CM केजरीवाल को वोट डालने पर मनाही!

दुनिया भर के चुनावों में अपने-अपने हिस्से में विरोधाभास और विसंगतियाँ होती हैं। ऐसा ही एक विरोधाभास भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान सामने आया है। ये 2,300 किमी दूर दो अलग-अलग जेलों में बंद दो लोगों के बारे में है। वारिस पंजाब दे प्रमुख अमृतपाल सिंह असम की डिब्रूगढ़ की जेल में हैं जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में हैं। लोकसभा चुनाव का दो बिल्कुल अलग व्यक्तियों से क्या कनेक्शन है। खालिस्तान समर्थक डिब्रूगढ़ जेल से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, एक निर्वाचित प्रतिनिधि अरविंद केजरीवाल वोट भी नहीं दे सकते।

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जेल में रहते हुए उम्मीदवारों ने दर्ज की जीत
अलगाववादी अमृतपाल सिंह कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत 23 अप्रैल, 2023 से जेल में है। थित तौर पर पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने की बात उसकी मां की तरफ से कही गई है। अमृतपाल के वकील राजदेव सिंह खालसा ने इससे पहले कहा था कि मैं डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल में भाई साहब (अमृतपाल) से मिला। मैंने उनसे अनुरोध किया कि खालसा पंथ के हित में उन्हें इस बार संसद सदस्य बनने के लिए खडूर साहिब से चुनाव लड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाई साहब सहमत हो गए हैं और वह स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे। ऐसा होता है तो एनएसए के तहत आरोपित व्यक्ति लोकसभा चुनाव लड़ेगा। हालाँकि, भारत में लोगों का जेल से चुनाव लड़ना असामान्य नहीं है। 1996 में डॉन से नेता बने मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए उत्तर प्रदेश की मऊ विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। 1998 के लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला मामले में जेल में थे। उन्होंने जेल से ही बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

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न्यायिक हिरासत में केजरीवाल के वोट डालने पर मनाही
अपराध के आरोप वाले लोगों ने चुनाव लड़ा है, लेकिन जेल में बंद शख्स को वोट डालने की इजाजत नहीं है। भारत में जेलों से वोट देने का कोई प्रावधान नहीं है, यहां तक ​​कि उन लोगों के लिए भी जो दोषी नहीं पाए गए हैं। लगभग डेढ़ दशक पहले पटना हाई कोर्ट में ऐसा मामला आया, जिसमें जेल की सजा काट रहे एक कैदी ने चुनाव लड़ने की मंशा जताई। अदालत ने इसपर मना करते हुए कहा कि जब कैदियों को वोट देने का हक नहीं है, तो चुनाव लड़ने जैसी जिम्मेदारी की छूट कैसे मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को मंजूरी दी थी। लेकिन बाद में तत्कालीन यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव करते हुए जेल में बंद लोगों को चुनाव बाद में तत्कालीन यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव करते हुए जेल में बंद लोगों को चुनाव में खड़ा होने की इजाजत दे दी। लेकिन जेल में बंद शख्स के पास वोटिंग राइट अब भई नहीं है। 2019 के प्रवीण कुमार चौधरी बनाम भारत चुनाव आयोग मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फिर से पुष्टि की कि कैदियों को वोट देने का अधिकार नहीं है। 

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