अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है। मुस्लिम वर्ल्ड में उसकी अपनी एक अहमियत है, अपना एक मयार है। अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन्स यानी अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा है उसको या नहीं। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 8 नवंबर को एक फैसला सुनाया है। इससे अलीगढ़ में मौजूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस प्राप्त करने का रास्ता छोड़ा खुलता हुआ दिखाई दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे। ये उनका आखिरी कार्य दिवस भी था। सीजेआई ने कहा कि एक नई बेंच के सामने इस मैटर को रखा जाएगा। जहां पर एएमयू को इस बात को साबित करना होगा कि उन्हें माइनॉरिटी स्टेटस क्यों मिल सकता है। ये पूरा मुद्दा इस बात का था कि एएमयू के पास माइनॉरिटी स्टेटस होना चाहिए या नहीं होना चाहिए? हालांकि इस बात को एक अलग बेंच निर्णय करेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक क्राइटेरिया की रुप रेखा रख दी है कि माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन्स को क्या क्या क्राइटेरिया का पालन करना चाहिए उन्हें माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन्स डिक्लेयर करने के लिए।
इसे भी पढ़ें: Supreme Court के आदेश के बाद Jet Airways के 1.43 लाख शेयरधारकों पर मंडरा रहा बड़ा खतरा
एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा क्या है?
एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा तय करता है कि यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से चलाया जा रहा संस्थान है। संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार, अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित और संचालित करने का अधिकार है। इस दर्जे का सीधा असर संस्थान में दाखिले, आरक्षण और प्रशासनिक स्वायत्तता पर पड़ता है।
इसे अल्पसंख्यक संस्थान क्यों माना जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा केवल इस आधार पर समाप्त नहीं हो सकता कि उसे एक कानून के तहत स्थापित किया गया है। यदि जांच में यह निष्कर्ष निकलता है कि एएमयू की स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई थी, तो संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिल सकता है।
इसे भी पढ़ें: SC On Private Land Acquisition: 9 जजों की संविधान पीठ का ऐतिहासिक फैसला, हर निजी संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं कर सकती सरकार
क्या था अजिज बाशा जजमेंट
कानूनी विवाद की जटिलता को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि यह आधी सदी से भी ज्यादा पुराना है। इसकी शुरुआत 1967 में अजीज बाशा केस में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से मानी जाती है जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920) के जरिए अस्तित्व में आया था। इसके बाद 1981 में सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन करते हुए कहा कि इसकी स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा और मुस्लिम समाज की शैक्षिक और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देने के मकसद से की गई थी।
अब अगला कदम क्या होगा?
कोर्ट ने फैसले में जो मापदंड तय किए हैं, वे भविष्य में अन्य संस्थानों पर भी लागू हो सकते हैं। इससे यह स्पष्ट होगा कि कौन- से शैक्षिक संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान का दावा कर सकते हैं और उन्हें किन शर्तों का पालन करना होगा। अब कोर्ट ने इस मामले को एक नई बेंच को रेफर कर दिया है। चीफ जस्टिस नई बेच गठित करेंगे, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के मद्देनजर एएमयू केअल्पसंख्यक दर्जे की वैधता पर अंतिम फैसला करेगी।