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AMU, पसमांदा और शिक्षित मुस्लिम वोट…85% मुसलमानों को अपनी तरफ करने का BJP का मेगा प्लान

मुस्लिम पसमांदा समुदायों के बीच अपनी चल रही पहुंच को मजबूत करने के प्रयास में भाजपा ने शनिवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को अपने उपाध्यक्षों में से एक नियुक्त किया। मंसूर ने एनआरसी और सीएए विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में से एक एएमयू को मध्यम मार्ग पर चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह नियुक्ति उस दिन हुई जब गृह मंत्री अमित शाह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पर एक किताब का विमोचन करने के लिए तमिलनाडु के रामेश्वरम में थे, जो पार्टी के पसमांदा आउटरीच के प्रतीकों में से एक हैं।

कौन हैं तारिक मंसूर

तारिक मंसूर पसमांदा मुसलमान हैं। मंसूर ने इस साल की शुरुआत में एएमयू के वीसी पद से इस्तीफा दिया था। उन्होंने ये पद मई 2017 को संभाला था। इस पर उन्हें मई 2022 तक रहना था। लेकिन कोरोना के कारण उन्हें एक साल का एक्सटेंशन मिला था। मंसूर एएमयू के पहले कुलपति रहे जिन्हें कि विधान परिषद सदस्य बनाने के लिए नामांकित किया गया था। इसके अलावा वो जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रिंसिपल भी रहे हैं। मंसूर एएमयू में सर्जरी विभाग के प्रमुख की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।

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दारा शिकोह पर काम से संघ को किया प्रभावित

तारिक मंसूर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से हैं, जहां राज्य के मतदाताओं में लगभग 19% मुस्लिम हैं, और कम से कम 30 लोकसभा सीटों पर उनकी अच्छी खासी उपस्थिति है, जिनमें से वे 15 से 20 निर्वाचन क्षेत्रों में परिणाम तय करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। आरएसएस के एक पदाधिकारी के अनुसार, मंसूर ने दारा शिकोह परियोजना पर अपने काम से संघ के नेतृत्व को प्रभावित किया। अंतर-धार्मिक संवाद पर शिकोह के अधिकांश काम का अनुवाद करने और उन्हें मुस्लिम समुदाय के लिए एक आदर्श के रूप में पेश करने के लिए एएमयू के फारसी विभाग का प्रभावी ढंग से उपयोग किया था।

पसमांदा मुसलमान कौन हैं?

एक फ़ारसी शब्द, ‘पसमांदा’ इसका संधि विच्छेद करेंगे तो पस का मतलब होता है पीछे और मांदा का अर्थ होता है पीछे छूट जाना। मतलब वो लोग जो ‘पीछे छूटे हुए’ हैं दबाए गए या सताए हुए हैं। इसका उपयोग मुसलमानों के बीच दलित और बैकवर्ड मुस्लिमका वर्णन करने के लिए किया जाता है। जो मुस्लिम समाज में एक अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं। मुस्लिम समाज का क्रीमी तबका उन्हें हेय दृष्टि से देखता है। ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर पसमांदा मुसलमान हिंन्दुओं से ही कन्वर्ट होकर बने है इसलिए वो भी हिन्दुओं की तरह जातियों में बंटे हैं। 20 सदी के दूसरे सदी में इसे लेकर चलने वाले आंदोलन को मोमिन आंदोलन कहा गया. जबकि 90 के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़ी संस्थाओं ने पिछले और दलित मुस्लिमों की आवाज उठानी शुरू की। 

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पसमांदा मुसलमानों की ज्यादा जनसंख्या वाले 5 राज्य 

उत्तर प्रदेश  3.5 करोड़
बिहार  1.5 करोड़
झारखंड   40 लाख
बंगाल   2 करोड़
दिल्ली

 17 लाख 

क्या मुसलमान जाति के आधार पर बंटे हुए हैं?

कुंजरे (राइन), जुलाहा (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अल्वी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवाराती), लोहार-बढ़ाई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वनगुर्जर। ये सभी जाति और समुदाय के लोग पसमांदा की पहचान के साथ एकजुट हो रहे हैं। 

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