झारखंड के पलामू बाघ अभयारण्य (पीटीआर) में बाघ की संख्या 2018 में शून्य से बढ़कर एक पर पहुंच गई। शनिवार को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर जारी केंद्र की नवीनतम बाघ स्थिति रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
राज्य के बाकी हिस्सों में हालांकि बाघ का कोई उल्लेख नहीं है।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ-वन्यजीव) शशिकर सामंत ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘नवीनतम अनुमान रिपोर्ट में, बाघ के स्कैट (मल) के आनुवंशिक विश्लेषण के जरिये पीटीआर में एक बाघ की सूचना दी गई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘रिपोर्ट में हालांकि राज्य में कहीं भी बाघ की मौजूदगी का जिक्र नहीं किया गया है।’’ उन्होंने कहा कि पीटीआर में बाघ की मौजूदगी झारखंड के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि 2018 में यहां कोई बाघ नहीं था।
अखिल भारतीय बाघ आकलन (एआईटीई) की 2018 रिपोर्ट में झारखंड में पांच बाघों का उल्लेख किया गया था, लेकिन पीटीआर में किसी बाघ की जानकारी नहीं दी गई थी।
तत्कालीन राज्य मुख्य वन्यजीव वार्डन पी के वर्मा ने भी बाघों के स्थानों को लेकर स्पष्टीकरण के लिए डब्ल्यूआईआई और एनटीसीए को पत्र लिखने का फैसला किया था। उन्होंने कहा था, ‘‘हम जानना चाहते हैं कि अगर पीटीआर में बाघ नहीं हैं तो पांच बाघ कहां पाए गए हैं।’’
मध्य प्रदेश में बाघों की सबसे बड़ी आबादी 785 बताई गई है, जबकि कर्नाटक और उत्तराखंड में क्रमशः 563 और 560 बाघ हैं।
सामंत ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि अगली बाघ आकलन रिपोर्ट में बाघों की संख्या बढ़ेगी।’’
पीटीआर के क्षेत्र निदेशक कुमार आशुतोष ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘बाघ आकलन कवायद अक्टूबर 2021 से मार्च 2022 में की गई थी। हमने भारतीय वन्यजीव संस्थान को 14 स्कैट नमूने भेजे थे। उन्होंने पुष्टि की थी कि दो स्कैट नमूने बाघों के थे। हमें उम्मीद थी कि ताजा रिपोर्ट में कम से कम दो बाघ होंगे। लेकिन डब्ल्यूआईआई के अधिकारियों का कहना है कि दोनों स्कैट एक ही बाघ के हैं।