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अशोक विश्वविद्यालय ने मुझपर ‘थोड़ा सा भी अंकुश’ नहीं लगाया: प्रोफेसर पी बालकृष्णन

अशोक विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्री सब्यसाची दास के इस्तीफे के कारण उठे विवाद को लेकर अपना पद छोड़ देने वाले एक अन्य प्रोफेसर पुलापरे बालकृष्णन ने एक पत्र लिखकर कहा है कि विश्वविद्यालय ने कक्षा में उनके विचारों पर या जब उन्होंने मीडिया में लिखा और अधिकारों के लिए वह सड़कों पर उतरे, तब उनपर ‘‘थोड़ा सा भी अंकुश नहीं’’ लगाया। अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर बालकृष्णन ने शनिवार को अशोक विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रुद्रांग्शु मुखर्जी और न्यास मंडल के अध्यक्ष प्रमथ राज सिन्हा को पत्र लिखकर अपने इस्तीफे की वजह बतायी। बालकृष्णन 2015 में इस निजी विश्वविद्यालय से जुड़े थे।

बालकृष्णन ने कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया है, क्योंकि वह मानते हैं कि ‘‘सोशल मीडिया पर (दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतांत्रिक गिरावट) पर दास के (शोध) पत्र ने लोगों का जो ध्यान आकृष्ट किया, उसपर प्रतिक्रिया स्वरूप निर्णय लेने में गंभीर भूल हुई।’’ उन्होंने दो पन्नों के पत्र में लिखा है, ‘‘प्रतिक्रिया स्वरूप अकादमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया, ऐसे में मेरा बने रहना अनुचित होगा।’’ दास ने विश्वविद्यालय के उनके शोधपत्र से दूरी बना लेने के एक पखवाड़े बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उस शोधपत्र में 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनावी हेरफेर का आरोप लगाया गया था। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोष्षिकोड स्थित भारतीय प्रबंध संस्थान और विश्वबैंक में काम करने के बाद बालकृष्णन अशोक विश्वविद्यालय से जुड़े थे।

उन्होंने कहा कि दास ने जिस पद से इस्तीफा दिया था, उसी पद पर उन्हें वापस बुलाने के संचालन मंडल के कथित फैसले का वह स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि यह खबर सच नहीं है, तो वह नेतृत्व से ऐसा करने पर विचार करने का अनुरोध करेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक मेरी बात है, तो मैं आगे बढ़ रहा हूं।’’ हाल में प्रकाशित ‘इंडियाज इकनॉमी फ्रॉम नेहरू टू मोदी’ समेत कई चर्चित पुस्तकों के लेखक बालकृष्णन ने कहा कि उन्होंने सेमेस्टर के लिये रुकने और अपनी अध्यापन जिम्मेदारी पूरी करने की पेशकश की है। उन्होंने कहा, ‘‘ किसी भी स्थिति में, मैं यहां लंबे समय तक नहीं रहने जा रहा हूं–।

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