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महाराष्ट्र में 2019 में हुए अंतिम विधानसभा चुनाव में बबनराव भीकाजी पचपुते श्रीकोंडा सीट से जीत दर्ज करने में सफल रहे थे। पचपुत 2004 और 2009 के चुनाव में भी इस सीट से विधायक चुने जा चुके हैं। इसके अलावा भी वे 4 बार और राज्य की दूसरी सीटों से विधायक रहे है। बबनराव भीकाजी पचपुते भारतीय जनता पार्टी के एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के श्रीगोंदा के काश्ती गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। वे भीकाजी पचपुते और तुलसाबाई के पुत्र हैं। अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद से ही वे कक्षा के सबसे होनहार छात्रों में गिने जाते थे।
पचपुते स्कूल में भाषण, वाद-विवाद और खेल प्रतियोगिताओं जैसी पाठ्येतर गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। पारिवार की कई जिम्मदेदारियों ने उन्हें आगे की पढ़ाई करने से रोक दिया। लेकिन वे अहमदनगर के न्यू आर्ट्स कॉलेज में दाखिला लेने में कामयाब रहे। शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने बॉडी बिल्डिंग चैंपियनशिप टूर्नामेंट में भाग लेना शुरू किया और अहमदनगर जिले में प्रथम आए और उन्हें ‘अहमदनगर श्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके मिलनसार स्वभाव के कारण उनके कई दोस्त बने। कानूनी पढ़ाई करते समय ही पूरे देश में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया गया और उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और श्रीगोंदा में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे।
उनका राजनीतिक पदार्पण 1977 को हुआ। असहयोग आंदोलन में उन्होंने आपातकाल के दौरान सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने श्रीगोंदा में ‘जनता पार्टी’ की एक शाखा का उद्घाटन किया। 9 सितंबर 1977 को वे स्थानीय निकाय सदस्य (पंचायत समिति) के रूप में चुने गए। 1979 में उन्होंने ‘शेतकरी संगठन’ की स्थापना की और 1980 में विधान सभा के सदस्य चुने गए। उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, 1981 में एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। बबनराव पचपुते ने नामांकन दाखिल किया है और नौ बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवार रहे हैं, जिनमें से उन्होंने सात बार जीत हासिल की है। उनके अनुयायी इस सफलता का श्रेय उनके अपने गृह क्षेत्र श्रीगोंदा में लागू की गई विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक कल्याण योजनाओं को देते हैं। उन्हें एक ऐसे उम्मीदवार के रूप में पहचाना जाता है जिसने हर बार एक अलग चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा है। 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें जीत मिली और श्रीगोंदा निर्वाचन क्षेत्र में पहली बार कमल खिला।