Breaking News

समीक्षा होनी चाहिए कि किसी विधेयक को कितने दिनों तक रोका जा सकता है : Baghel

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नेआरक्षण विधेयकों को मंजूरी मिलने में हो रही कथित देरी को लेकर एक बार फिर राजभवन पर निशाना साधा और कहा कि इसकी समीक्षा होनी चाहिए कि किसी विधेयक को कितने दिनों रोका जा सकता है।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की जयंती के अवसर पर शुक्रवार को एक कार्यक्रम में बघेल ने संवाददाताओं से कहा, समीक्षा होनी चाहिए… आखिर किसी बिल को कितने दिनों तक रोका जा सकता है। ऐसा बिल जो सीधे जनता से जुड़ा नहीं है उसमें कर रहे हैं तब समझ आता है। यदि उसे राष्ट्रपति के पास भेज रहें तब अलग बात है। लेकिन आरक्षण तो राज्य का विषय है।

उसे राज्यपाल चार—पांच महीने से रोककर बैठे हैं… यहां की छात्र—छात्राएं, नौजवान जिन्हें कॉलेज में एडमिशन लेना है और नौकरी में भर्ती लेना है… उसको यदि रोका जाता है तब निश्चित रूप से समीक्षा होनी चाहिए…’’
मुख्यमंत्री ने कहा, बिल को लौटा दें या हस्ताक्षर करें। इसे रोकने का क्या है? क्या राज्यपाल को इतना अधिकार है कि प्रदेश के युवाओं के जीवन को खतरे में डाल दें। भविष्य अंधकार में डाल दें… यह अधिकार किसी को नहीं मिलना चाहिए।
बघेल ने इस दौरान केन्द्र सरकार पर भी निशाना साधा और कहा कि लोकतंत्र खतरे में है।

उन्होंने कहा, वर्तमान केन्द्र सरकार लगातार संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। आरक्षण की बात करते हैं, लेकिन उसे लागू नहीं होने दे रहे हैं। जिसको जितना मिलना चाहिए वह हो नहीं रहा है। भर्तियां बंद हैं। न्यायपालिका को भी प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। सारे संगठनों को दबाया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कटाक्ष करते हुए कहा, लोकसभा में चर्चा नहीं होती। अडाणी मामले में सवाल पूछने पर सदस्यता समाप्त (राहुल गांधी मामला) हो जाती है। बंगले खाली करा दिए जाते हैं। आपको सवाल पूछने का अधिकार नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्रजातंत्र में सबसे बड़ा अधिकार है विपक्ष का वह सवाल पूछने का है। सवाल पूछो तब भागते हैं। सवाल पूछने वालों को दंडित करते हैं। उसको कुचलने की कोशिश करते हैं इसका मतलब है ​कि लोकतंत्र खतरे में है।
बघेल के बयान को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री रमन ​सिंह ने अपना विरोध जताया। सिंह ने जगदलपुर में पत्रकारों से कहा, ‘‘राज्यपाल के अधिकारों की समीक्षा से पहले यह देख लेना चाहिए कि उनके क्या अधिकार और कर्तव्य हैं। सिर्फ अपने विषय को लेकर इस तरह से राज्यपाल पर आरोप लगाना उचित नहीं है।’’

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में दो दिसंबर को छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 और छत्तीसगढ़ शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक 2022 पारित किया गया था।
विधेयकों को लेकर राज्यपाल की सहमति में कथित देरी को लेकर राजभवन और राज्य सरकार के बीच अब टकराव की स्थिति है।

Loading

Back
Messenger