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कोलकाता । पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने मंगलवार को सदन के अध्यक्ष बिमान बंद्योपाध्याय पर कार्यवाही के दौरान पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की मांग की। भाजपा नेता ने प्रधान सचिव को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के इशारे पर विपक्षी दल द्वारा पेश किए गए सभी स्थगन प्रस्तावों को मनमाने ढंग से अस्वीकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा द्वारा रखे गए प्रस्तावों का उद्देश्य लोगों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करना है।
अधिकारी ने कहा कि बंद्योपाध्याय अध्यक्ष की भूमिका की आलोचना होने पर विपक्ष के सदस्यों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बंद्योपाध्याय सरकार की अक्षमता को छिपाने के लिए अपनी विवेकाधीन शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं। अधिकारी ने विपक्ष के सदस्यों के भाषणों के अंशों को बिना किसी वैध कारण के हटाने का आरोप लगाते हुए कहा कि अध्यक्ष सदन के नियमों और प्रक्रियाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं और उनकी गलत व्याख्या कर रहे हैं।
इस बीच, अध्यक्ष ने कहा, ‘‘अगर विपक्ष मेरे खिलाफ कोई अविश्वास प्रस्ताव पेश करता है तो वह इस पर टिप्पणी करेंगे।’’ नंदीग्राम से विधायक अधिकारी ने बाद में संवाददाताओं से कहा कि ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नीति आयोग जैसे संगठनों की आलोचना करने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अनुरोध पर विधानसभा अध्यक्ष ने अंतिम समय में असूचीबद्ध मामलों पर चर्चा की अनुमति दी लेकिन वे विपक्ष को राज्य में युवाओं और महिलाओं पर अत्याचार जैसे मुद्दों पर प्रस्ताव लाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।
अधिकारी ने दावा किया, “यह सरकार शिक्षक भर्ती घोटाले, चावल घोटाले, मवेशी घोटाले और रेत घोटाले में फंसी हुई है। तृणमूल कांग्रेस के कई नेता और मंत्री वर्तमान में जेल में हैं। लेकिन, विपक्ष को सदन में ऐसे मुद्दे उठाने की अनुमति नहीं है।” अधिकारी ने बंद्योपाध्याय पर छह तृणमूल विधायकों के शपथग्रहण में राज्यपाल की भूमिका को ‘नजरअंदाज’ करने और मीडिया की आवाज को दबाकर संविधान का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने बंगाल को विभाजित करने के किसी भी प्रयास के खिलाफ प्रस्ताव की बात पर कहा, “हम राज्य के किसी भी विभाजन के खिलाफ हैं, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिति चिंताजनक है।