नीतीश कुमार कैबिनेट ने मंगलवार को न्यायिक सेवाओं और राज्य संचालित लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% आरक्षण को मंजूरी दे दी। अतिरिक्त मुख्य सचिव (कैबिनेट) एस सिद्धार्थ ने बताया कि कैबिनेट ने राज्य न्यायिक सेवा, 1951 के दिशानिर्देशों में संशोधन को मंजूरी दे दी, जिससे न्यायिक सेवाओं और राज्य संचालित कानून संस्थानों और विश्वविद्यालयों में ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए 10% आरक्षण की अनुमति मिल गई। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरक्षण बदलाव की अधिसूचना की तारीख से लागू होगा।
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यह कदम बिहार सरकार द्वारा सोमवार को जाति सर्वेक्षण पर आधारित आंकड़ों का पहला सेट जारी करने के एक दिन बाद उठाया गया है। जाति आधारित गणना के आंकडों के अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है। राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है, जिसमें ईबीसी (36 प्रतिशत) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, इसके बाद ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है। ‘‘अनारक्षित’’ श्रेणी से संबंधित लोग प्रदेश की कुल आबादी का 15.52 प्रतिशत हैं, जो 1990 के दशक की मंडल लहर तक राजनीति पर हावी रहने वाली ‘‘उच्च जातियों’’ को दर्शाते हैं।
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सर्वेक्षण के निष्कर्ष गांधी जयंती के अवसर पर जारी किए गए, जिससे देश में राजनीतिक हलचल मच गई क्योंकि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने पूरे भारत के लिए इसी तरह के सर्वेक्षण की मांग की। जाति जनगणना के निष्कर्षों पर चर्चा के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय बैठक की। बैठक से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि सर्वेक्षण ने समाज के सभी वर्गों की आबादी का अनुमान प्रदान किया है, जिनमें से कई की गणना जनगणना के दौरान नहीं की गई थी। इसमें अनुसूचित जाति का ताजा आकलन भी सामने आया है। हम एक दशक पहले की तुलना में उनकी आबादी में मामूली वृद्धि देख सकते हैं।