कभी क्षेत्रीय राजनीति का गढ़ माने जाने वाले सिक्किम में बीजेपी ने अपनी जबरदस्त बढ़त बनाकर राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को बदलकर रख दिया है। भाजपा ने राज्य की सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया है। ऐसे में बीजेपी ने अकेले ही विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया। साल 2019 में सिक्किम विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को सिर्फ 1.62 फीसदी वोट शेयर मिला और उसे शून्य सीटें हासिल हुईं।
भाजपा के लिए राज्य में उल्लेखनीय मोड़ तब आया, जब एसडीएफ के 10 विधायक शेरिंग लेप्चा के नेतृत्व में भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा की इस चतुर चाल का कारण पार्टी राज्य विधानसभा में 12 सीटों के साथ गैर प्रतिनिधित्व वाली दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वहीं इस साल की शुरुआत में राज्य के एकमात्र राज्यसभा सांसद के रूप में लेप्चा की नियुक्ति कर पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के हितों को प्रभावित करने का जिम्मा सौंपा। जिससे अन्य क्षेत्रीय दलों की पूर्ववर्ती विशेष पकड़ ढीली हो गई।
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कठिन लड़ाई का करना पड़ा सामना
दरअसल, भाजपा को राज्य में राजनीतिक पैठ बनाने के लिए कठिन लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है। सिक्किम के साल 1975 में भारत के विलय के बाद से ही यहां पर क्षेत्रीय राजनीति का प्रभुत्व स्थापित रहा है। बता दें कि राज्य में कांग्रेस हो या भाजपा, यह दोनों पार्टियां कभी अच्छा प्रदर्शऩ नहीं कर सकी हैं। 32 विधानसभा सीटों और एक संसदीय क्षेत्र वाला सिक्किम महत्वपूर्ण राजनीतिक महत्व रखता है।
बता दें कि भाजपा सिक्किम में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए लगातार तेज अभियान का सहारा ले रही है और वादे कर रही है। तो वहीं सिक्किम की जनता भी अपने भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा तैयार किए है। भाजपा ने सिक्किम में अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की। इससे पहले साल 2019 के चुनाव में पार्टी ने 12 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सिक्किम विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को 17 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी।