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Prajatantra: सिंधिया परिवार से आने वाले नेताओं के लेकर क्या है BJP की रणनीति, ज्योतिरादित्य लड़ेंगे चुनाव

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनावी बिगुल बज चुका है। 2024 के आम चुनाव से पहले इन राज्यों के विधानसभा चुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा है। हालांकि सबसे ज्यादा चर्चा राजस्थान और मध्य प्रदेश को लेकर है। दिलचस्प बात यह भी है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में एक परिवार के व्यक्तियों की चर्चा भी खूब हो रही है। वह है सिंधिया परिवार। मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखने वाला सिंधिया परिवार राजनीति में भी लंबे समय से जुड़ा हुआ है। फिलहाल सिंधिया परिवार के राजनीतिक विरासत को ज्योतिरादित्य सिंधिया, वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे सिंधिया आगे बढ़ा रही हैं। हालांकि, सवाल बड़ा यही बना हुआ है कि आखिर सिंधिया परिवार से आने वाले इन तीनों नेताओं के लिए क्या है भाजपा की रणनीति?

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भाजपा लगातार परिवारवाद के खिलाफ जबरदस्त तरीके से कांग्रेस पर वार करती रहती है। इतना ही नहीं, बीजेपी का साफ तौर पर मानना है कि राजनीति में परिवारवादी पर्टियों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। लेकिन जब विपक्षी दलों की ओर से पलटवार किया जाता है तो उसमें सिंधिया परिवार का उदाहरण दिया जाता है। ऐसे में कहीं ना कहीं भाजपा के लिए भी यह असमंजस की स्थिति हो जाती है। यही कारण है कि फिलहाल इन तीनों नेताओं को लेकर भाजपा की ओर से कोई बड़ा ऐलान नहीं किया गया है। भाजपा एक परिवार, एक टिकट के मार्ग पर चलती है। यशोधरा राजे सिंधिया के चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान के बाद से कहीं ना कहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर अटकलें का दौर जबरदस्त तरीके से चल रहा है।

दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया 2020 से पहले कांग्रेस में हुआ करते थे जबकि यशोधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा राजे शुरू से ही भाजपा में रही हैं। यशोधरा राजे सिंधिया फिलहाल मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। वे शिवपुरी विधानसभा सीट से लगातार जीतती रही हैं। हालांकि, अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्होंने इस बार चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। सवाल बना हुआ है कि क्या आलाकमान की ओर से उन्हें यह बता दिया गया था कि आपको इस बार टिकट नहीं मिलेगा, इसके बाद उन्होंने ऐलान किया या फिर कोई और रणनीति है। लेकिन यशोधरा के इस फैसले के बाद इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कहीं ना कहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस बार शिवपुरी से टिकट दिया जा सकता है। भाजपा ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत करना चाहती है। एमपी के तमाम ओपिनियन पोल को देखें तो पार्टी को इसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा नुकसान होता दिखाई दे रहा है। अगर बीजेपी इन दोनों में से किसी एक को टिकट देती है तो कहीं ना कहीं परिवारवाद का आरोप उसपर कम हो सकता है।

वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की राजनीति की सबसे माहिर खिलाड़ी मानी जाती है। वे राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वर्तमान में देखें तो राजस्थान में सबसे बड़ी नेता भी हैं। राजस्थान में वह भाजपा को अपने दम पर सरकार में ला चुकी हैं। हालांकि कहीं ना कहीं सूत्रों की माने तो आलाकमान से मनमुटाव की स्थिति की वजह से वह पिछले 5 साल में लगातार हाशिए पर रहीं। हालांकि, चुनाव करीब आने के साथ ही आलाकमान ने उन्हें पूरी तरीके से साधने की कोशिश की। वह पार्टी के कामों में खूब सक्रिय नजर आ रही हैं। आलाकमान से उनकी लगातार बातचीत भी हो रही है। लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया पार्टी का चेहरा होगी या नहीं होंगी। इतना ही नहीं, वसुंधरा राजे सिंधिया को अब तक पार्टी ने विधानसभा का टिकट नहीं दिया है। इसको लेकर भी चर्चाओं का दौर जारी है। हालांकि, भाजपा नेतृत्व को यह बात अच्छे से पता है कि राजस्थान में वसुंधरा को किनारे कर चुनाव जीतना आसान नहीं है। यही कारण है कि वसुंधरा राजे को नेतृत्व की ओर से विश्वास में लिया जा रहा है।
 

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राजनीति में परिवारवाद कोई नई बात नहीं है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक परिवारवादी पर्टियों के कई उदाहरण भी मिल जाएंगे। हालांकि, भाजपा लगातार पार्टी विद डिफरेंस की बात करती है। ऐसे में कहीं ना कहीं वह अगला कदम सोच समझ कर रखना चाहती है। बाकी का फैसला जनता के हाथों में है। यही तो प्रजातंत्र है। 

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