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important election issues: क्या मराठा आरक्षण के मुद्दे से बदल सकता है महाराष्ट्र का चुनावी मिजाज

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान होने के बाद सभी राजनीतिक दल जीत हासिल करने के लिए जोर-शोर से प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। लेकिन राज्य विधानसभा चुनावों में हार-जीत का मामला इतना भी आसान नहीं है। जितना अन्य राज्यों में होता है। महाराष्ट्र में 2 या 3 नहीं बल्कि कुल 6 सियासी दल हैं, जो अलग-अलग गठबंधनों के जरिए आमने-सामने हैं। इन राजनीतिक दलों में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी ( शरद पवार) अपनी-अपनी दावेदारी के साथ मैदान में उतर चुकी हैं।
एक ओर जहां कांग्रेस, एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) एक साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में हैं। तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा, शिवसेना और एनसीपी महायुति के बैनर तले चुनावी मैदान में हैं। राज्य में महायुति और एमवीए की आमने-सामने की टक्कर चल रही है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की जनता ने एमवीए को सिर माथे पर रखा था। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि विधानसभा चुनाव में भी एमवीए को बढ़त मिलनी चाहिए। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के हाथ से महाराष्ट्र की बाजी फिसली उसी तरह से महाराष्ट्र में भी हो सकता है। ऐसे में कांग्रेस राज्य में एक ऐसे मुद्दे को उठा रही है, जिसका उसको फायदा मिल सकता है।

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मराठा आरक्षण
दरअसल,  महाराष्ट्र में जरांगे पाटिल के नेतृत्व में लगातार मराठा आरक्षण की डिमांड चल रही है। राज्य में मराठा करीब 34 फीसदी के आसपास और राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। अगर यह समुदाय किसी सियासी दल से नाराज होता है, तो उसका प्रभाव व्यापक रूप से देखने को मिलता है। इस लिहाज से देखा जाए, तो महाविकास अघाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वी महायुति के सामने मजबूती से खड़ा होता दिख रहा है।
क्योंकि हरियाणा और राजस्थान के जाटों की तरह मराठाओं का वोट भी कांग्रेस को जाता रहा है। वहीं शरद पवार और मराठा स्वाभिमान के प्रतीक बाला साहब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे भी महाविकास आघाड़ी में हैं। भले ही महायुति में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन भाजपा के पास कोई भी कायदे का मराठा नेता आज भी नहीं है। इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी ने एकनाथ शिंदे को राज्य का सीएम बनाया। ऐसे में मराठा आरक्षण की डिमांड पर महाविकास आघाड़ी अपना पलड़ा मजबूत करने की जुगत में है।

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