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मुझे जातिगत गालियां दीं, SC-ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या नया फैसला ले लिया

भारतीय समाज में कहा गया है कि जाति एक विशेषता है और जाति आधार पर विभिन्न चीजों का बंटवारा किया गया है। आरक्षण की भी जब आप बात करेंगे तो देखेंगे कि जाति को ही आधार में रखा गया। उसके तहत कुछ जातियां ऐसी बताई गईं, जिन्हें समाज में वो स्थान नहीं मिला जो कि किसी भी मानव को मिलना चाहिए था। मानवीय तौर पर भी उनके साथ भेदभाव किए गए। इस तरह के प्रावधन जैसे ऑफर्मेटिब एक्शन, जिसमें आरक्षण की भी बात कही गई। बहुत तरह के कानूनी प्रावधान भी किए गए। ताकी इनके लिए सामाजिक स्थिति को बेहतर किया जा सके। एससी और एसटी समुदाय यानी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को कानूनी संरक्षण दिया गया। इन्हें कोई अपमानित करने की कोशिश करे तो ये कानून की शरण में जा सके। वहां जाकर एफआईआर कर सके। अपनी बातों को दर्ज करा सके। ऐसे में एससीएसटी एक्ट को लेकर समय समय पर बहुत तरह की बातें सामने आती रहती हैं। कहा जाता है कि इसका दुरुपयोग हो रहा है। कहा जाता है कि झूठे मुकदमे इसके अंतर्गत दर्ज कराए जाते हैं। इसको लेकर तरह तरह की चर्चा हमेशा से रही है। अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 यानी (SC/ST ऐक्ट) के तहत दर्ज एक मामले को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि कथित घटना लोगों के सामने में नहीं हुई थी। जस्टिस वीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि SC/ST ऐक्ट की धारा 3(1)(r) के तहत अपराध सावित करने के लिए यह आवश्यक है कि आरोपी ने किसी SC या ST सदस्य का जानबूझकर अपमान या धमकी दी हो, वह भी सार्वजनिक तौर पर हुआ हो यानी लोगों के सामने यह घटित हुआ हो। 

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इसके अलावा, धारा 3(1)(s) के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि आरोपी ने पीड़ित को जातिसूचक शब्दों से गलत भाषा का प्रयोग किया हो और घटना सार्वजनिक तौर पर हुई हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि चूंकि मामला ऐसे स्थान पर नहीं हुई जिसे पब्लिक व्यू में कहा जा सके, इसलिए यह मामला SC/ ST ऐक्ट की धारा 3(1)(r) या धारा 3(1)(s) के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने FIR का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि घटना शिकायतकर्ता के चेंवर (कार्यालय) के अंदर हुई, और उसके अन्य सहकर्मी घटना के बाद वहां पहुंचे। शीर्ष अदालत ने मद्रास हाई कोर्ट के फरवरी 2024 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने आरोपी की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें त्रिची (तिरुचिरापल्ली) की निचली अदालत में चल रही कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। 

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अभियोजन पक्ष का आरोप था कि सितंबर 2021 में आरोपी शिकायतकर्ता (जो एक राजस्व निरीक्षक था) के कार्यालय में अपने पिता के नाम की जमीन के पट्टा के वारे में पूछने गया था। वहीं दोनों के वीच विवाद हुआ। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि FIR में दर्ज आरोप, भले ही उन्हें पूरी तरह से सही मान लिया जाए, फिर भी वे धारा 3(1)(r) या 3(1)(s) के तहत अपराध सावित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया, मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया, चार्जशीट को खारिज कर दिया और संबंधित आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया। 

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