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BJP के कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में बीता भारतीय राजनीति के चाणक्य Amit Shah का जीवन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वस्त और गुजरात में छात्र राजनीति से उनके साथ जुड़े भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को मोदी 3.0 में भी गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप गई है। पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने गृह और सहकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी निभाई थी। इस दौरान उन्होंने सीएए, एनआरसी को लागू करना और धारा 370 को निष्प्रभावी बनाने जैसे कड़े कदम उठाए थे। शाह के नेतृत्व में ही भारतीय जनता पार्टी अपनी राजनीति के चरम बिंदु तक पहुंची है। 
अमित शाह  का जन्म 22 अक्तूबर 1964 को मुंबई में रह रहे एक गुजराती परिवार में, श्रीमती कुसुम बेन और श्री अनिलचंद्र शाह के घर, हुआ। अमित शाह के दादा गायकवाड़ के बड़ौदा स्टेट की एक छोटी रियासत मानसा के नगर सेठ थे। ’16 साल की आयु तक अमित शाह अपने पैतृक गांव मानसा, गुजरात में ही रहे और वहीँ से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। अमित शाह की प्रारंभिक शिक्षा गायकवाड़ स्टेट के प्रमुख शास्त्रियों की देख रेख में ‘भारतीय मूल्य परंपरा’ के अनुसार हुई। अमित शाह की प्राथमिक शिक्षा पूरी होने के बाद उनका परिवार अहमदाबाद चला गया। ‘शाह के जीवन पर उनकी माँ का विशेष प्रभाव रहा। उनकी माँ गांधीवादी थीं। खादी पहनने की प्रेरणा अमित शाह को उन्हीं से मिली। आपातकाल के दौर में जब देश में 1977 के आम चुनाव हो रहे थे, तब शाह 13 साल के थे। वे मेहसाणा लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल की बेटी मणिबेन पटेल के लिए गलियों में पोस्टर-स्टीकर लगाने निकल पड़े थे। 
1982 में शाह को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गुजरात इकाई का संयुक्त सचिव बनाया गया। परिषद कार्यकर्ता के साथ-साथ उन्होंने 1984 में भाजपा के लिए नारायणपुर वार्ड के सांघवी बूथ के पोलिंग एजेंट के नाते भी काम किया। वे इस वार्ड के वे पार्टी सचिव भी बने। वर्ष 1987 में अमित शाह भाजपा के युवा मोर्चा से जुड़े। अमित शाह ने श्री राम जन्मभूमि आंदोलन और आगे चलकर एकता यात्रा में पार्टी द्वारा दिए अपने दायित्व को निभाया। लालकृष्ण अडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी जब-जब गांधीनगर लोकसभा से चुनाव लड़े तो उनके चुनाव प्रबंधनका दायित्व अमित शाह ने बखूबी संभाला। अडवाणी के लोकसभा चुनाव के प्रबंधन का यह दायित्व उन्होंने 2009 तक संभाला। नब्बे के दशक में गुजरात में भाजपा का उभार तेजी से हो रहा था। नरेंद्र मोदी भाजपा, गुजरात के संगठन सचिव थे। 
संगठन कार्य में ही अमित शाह का संपर्क नरेंद्र मोदी से हुआ था। गुजरात में भाजपा द्वारा शुरू किये गये सदस्यता अभियान को व्यापक बनाने तथा उसका दस्तावेजीकरण करने के कार्य में शाहपार्टी नेतृत्व के साथ जुड़े रहे। साल 1997 में अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चे का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाया गया। इसी साल गुजरात की सरखेज विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया और वे पहली बार 25,000 मतोंके अंतर से जीतकर विधायक बने। तबसे लेकर 2012 के विधानसभा चुनाव तक हर चुनाव में उनकी जीत का अंतर लगातार बढ़ता रहा और वे लगातार विधायक के नाते चुनकर आते रहे। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार गुजरात में हुए 2002 के विधानसभा चुनाव में आयोजित ‘गौरव-यात्रा’ में शाह को पार्टी द्वारा महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया। गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई और अमित शाह सरकार में मंत्री बने। वे 2010 तक गुजरात सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। उन्हें गृह विभाग, यातायात, निषेध, संसदीय कार्य, विधि और आबकारी जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गयी। 
गृहमंत्री रहते उन्होंने पुलिस आधुनिकीकरण, सड़कों की सुरक्षा, अपराध में कमी  को लेकर उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये। 2009 में नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में उन्हें गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन का वाईस-चेयरमैन बनने का भी मौका मिला। वे अहमदाबाद सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। इस दौरान क्रिकेट के क्षेत्र में गुजरात को कई ख्यातियां मिली। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अमित शाह गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। गुजरात में मंत्री रहते सुरक्षा से जुड़े विषयों पर वे गंभीरता से काम करते रहे। गुजरात में मंत्री रहते सोहराबुद्दीन एनकाउन्टर का फर्जी आरोप अमित शाह पर लगा। उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया। मुकदमे के दौरान उन्हें तीन महीने जेल में भी रहना पड़ा। फिर उन्हें जमानत देते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि ‘‘अमित शाह के विरुद्ध प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता।” आगे चलकर 2015 में विशेष सीबीआई अदालत ने अमित शाह को इस टिप्पणी के साथ सभी आरोपों से बरी किया कि उनका केस ’’राजनीति से प्रेरित’’ था। 
भाजपा ने उनकी सांगठनिक क्षमता को राष्ट्रीय कार्य में उपयोग करने के लिए 2013 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया। 2014 के चुनाव में भाजपा ने जब नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेजा गया। श्री नरेंद्र मोदी को देश ने बहुमत का जनादेश दिया तो यूपी से भाजपा को 73 सीटें मिलीं। यह एक बड़ी सफलता थी। अमित शाह 9 जुलाई 2014 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये। उनका पहला कार्यकाल 2016 तक चला। अपने पहले कार्यकाल में अमित शाह ने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को संगठन की मजबूती का माध्यम बनाकर एक के बाद एक कई राज्यों में भाजपा के सांगठनिक आधार को मजबूत किया। महा सदस्यता अभियान चलाकर भाजपा के सदस्यों की संख्या को सिर्फ पांच महीनों में 11 करोड़ तक पहुँचाया। पार्टी को युगानुकुल चलाने के लिए अमित शाह ने अध्यक्ष रहते अनेक नवाचार किये। विभागों और प्रकल्पों की रचना की। प्रवासों के चक्र को सघन बनाया। 
1997 से लगातार 2017 तक गुजरात विधानसभा सदस्य के के रूप में जन प्रतिनिधि रहे अमित शाह 2019 में पहली गांधीनगर से लोकसभा का चुनाव लड़े। उन्हें गांधीनगर से विराट जीत मिली। लगभग 70 फीसद वोट हासिल कर  5 लाख 57 हजार वोटों के अंतर से उन्होंने अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी से जीत हासिल की। 2019 में दुबारा चुनकर आई मोदी सरकार में अमित शाह गृहमंत्री बने। वर्तमान में वे देश के गृहमंत्री के तौर पर अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। गुजरात में गृहमंत्री रहते देश की सुरक्षा व सम्प्रभुता के लिए बाधक विषयों पर अमित शाह लगातार ध्यान आकर्षित करते थे। आज जब वे देश के गृहमंत्री हैं तब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उन विषयों पर उठाये जा रहे गंभीर क़दमों में अहम भागीदार बन रहे हैं। उनके गृहमंत्री रहते केंद्र की मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370, समान नागरिक संहिता सहित देश की आंतरिक सुरक्षा को अभेद्द्य बनाने से जुड़े अनेक ऐतिहासिक और दशकों से लंबित विषयों पर समाधानपरक निर्णय लिए हैं। 
पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं तथा वहां की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी लंबित समस्याओं का शान्ति पूर्वक हल भी गृहमंत्री बनने के बाद अमित शाह ने किया। ब्रू-रियांग समझौता, असम-मेघालय सीमा विवाद का हल, बोडो समस्या का निराकरण जैसे प्रमुख विषय शामिल हैं। वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस की नीति पर अमित शाह ने ठोस रणनीति बनाई। आज वामपंथी उग्रवाद का क्षेत्रफल दायरा तुलनात्मक रूप से बहुत कम हुआ है। आतंकवाद को लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की मुस्तैदी का परिणाम है कि आतंकवादी मंसूबे छिटफुट वाह्य सीमाओं तक सीमित हैं।

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