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MP Chunav 2023: सांची स्तूप पर जाने वाले मुख्यमंत्रियों को गंवानी पड़ी थी सत्ता, क्या अब CM शिवराज तोड़ पाएंगे यह मिथक

मध्य प्रदेश की कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां पर प्रदेश के मुखिया जाने से बचते हैं। राजनेताओं में इन जगहों को लेकर अंधविश्वास या मिथक रहता है। बता दें यह मिथक सिर्फ मध्य प्रदेश के ही नहीं बल्कि नोएडा से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों में भी देखने को मिलता था। बता दें कि नोएडा को लेकर राजनेताओं के बीच में यह अंधविश्वास था कि यदि प्रदेश यानी की यूपी के सीएम यहां का दौरा करेंगे तो वह फिर से सत्ता की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाएंगे। लेकिन 29-30 सालों से चला आ रहे इस अंधविश्वास को उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने तोड़ दिया। ऐसा ही अंधविश्वास मध्य प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट सांची को लेकर भी है। 
सांची पहुंचे सीएम शिवराज
बता दें कि स्तूप को शांति का टापू भी कहा जाता है। शांति की तलाश में दुनिया भर से लोग इस जगह पर पहुंचते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शांति का संदेश देने वाले इस विश्व प्रसिद्ध स्थल का दौरा करने से राजनेता आनाकानी करते हैं। स्थानीय लोगों के बीच यह अंधविश्वास है कि जब भी प्रदेश का कोई मुख्यमंत्री इस सांची स्तूप पर पहुंचता है, तो फिर उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ता है। हालांकि हाल ही में सूबे के सीएम शिवराज सिंह चौहान सांची सोलर सिटी का शुभारंभ करने के लिए पहुंचे थे। तब उन्होंने इस शहर का भी दौरा किया। सीएम चौहान सांची स्तूप की पहाड़ी पर भी गए थे। ऐसे में चर्चाएं तेज हो गई हैं कि क्या सीएम शिवराज इस मिथक को तोड़ पाएंगे या फिर वह भी सत्ता से हाथ गंवा बैठेंगे। 

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इन मुख्यमंत्रियों ने गंवाई है कुर्सी
माना जाता है कि जब-जब कोई मुख्यमंत्री सांची स्तूप की पहाड़ी पर पहुंचा है, तो फिर उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। यह सिलसिला दिग्विजय सिंह के समय से शुरू हुई थी। बता दें कि तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए सांची गए थे। जिसके बाद उनके हाथों से सत्ता हमेशा के लिए चली गई। इसके बाद तत्कालीन सीएम बाबू लाल गौर भी अपने कार्यकाल के दौरान सांची पहुंचे थे। कुछ समय बाद ही उनको भी सत्ता गंवानी पड़ी। सांची की स्तूप पहाड़ी पर जाने के बाद उमा भारती को भी सत्ता गंवानी पड़ी थी। 
ऐसे में पिछली बार जब सीएम शिवराज यहां आए थे, तो उनके हाथों से भी सत्ता की चाभी फिसल गई थी। लेकिन एक बार फिर सीएम शिवराज ने रिस्क लेते हुए सांची की पहाड़ी पर पहुंचे हैं। सांची जाते ही चर्चा गर्म हो गई है कि क्या सीएम शिवराज के सांची पहाड़ी जाने से फिर से उनकी सरकार पर संकट आएगा। या फिर इस बार सीएम शिवराज इस रिस्क को तोड़ पाएंगे। बता दें कि सांची क्षेत्र का अपने आप में एक प्रभाव है। सम्राट अशोक ने इसी जगह पर राजनीति छोड़ने का फैसला कर शांति की तलाश की थी। ऐसे में माना जाता है कि सांची शांति का संदेश देता है। सांची का यह प्रभाव हो सकता है कि सांची ऊंचे पदों पर बैठे नेताओं को यह संदेश देता हो कि शांति की तरफ आओ। 
पहाड़ी चढ़ने से परहेज करते हैं नेता 
सांची के कई सांस्कृतिक कार्यक्रम में पूर्व जनसंपर्क एवं संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। जिसके बाद नतीजन उनको अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा हो, रामपाल सिंह, या फिर अन्य स्थानीय नेता, यह सब हमेशा सांची की पहाड़ी चढ़ने से बचते हैं। स्थानीय विधायक प्रभुराम चौधरी और डॉक्टर गौरी शंकर शेजवार भी इस पहाड़ी पर चढ़ने से कतराते हैं। बता दें कि सांची बौद्ध यूनिवर्सिटी के शिलान्यास कार्यक्रम में तमाम नेताओं ने हिस्सा लिया था। लेकिन इन नेताओं ने पहाड़ी पर जाने से परहेज किया था।

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