Breaking News

Coromandel Express Accident | कोरोमंडल एक्सप्रेस मुख्य मार्ग के बजाय ‘लूप लाइन’ पर चली गई थी, हादसे की प्राथमिक जांच का निष्कर्ष

नयी दिल्ली। ओडिशा में हुए भीषण रेल हादसे की प्रारंभिक जांच में यह पता चला है कि दुर्घटनाग्रस्त हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन बाहानगा बाजार स्टेशन से ठीक पहले मुख्य मार्ग के बजाय ‘लूप लाइन’ पर चली गई और वहां खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गई।
समझा जाता है कि बगल की पटरी पर क्षतिग्रस्त हालत में मौजूद कोरोमंडल एक्सप्रेस के डिब्बों से टकराने के बाद बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के डिब्बे भी पलट गये।

इसे भी पढ़ें: Odisha Train Tragedy: शरद पवार ने की विस्तृत जांच की मांग, प्रह्लाद जोशी बोले- 3 वर्षों से रेलवे दुर्घटना मुक्त थी

सूत्रों ने बताया कि कोरोमंडल एक्सप्रेस की रफ्तार 128 किलोमीटर प्रति घंटा, जबकि बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस की गति 116 किमी प्रति घंटा थी। रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को सौंपी गई है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय रेल की ‘लूप लाइन’ एक स्टेशन क्षेत्र में निर्मित की जाती है और इस मामले में यह बाहानगा बाजार स्टेशन है। इसका (लूप लाइन का) उद्देश्य परिचालन को सुगम करने के लिए अधिक ट्रेनों को समायोजित करना होता है। लूप लाइन आमतौर पर 750 मीटर लंबी होती है ताकि कई इंजन वाली लंबी मालगाड़ी का पूरा हिस्सा उस पर आ जाए।
दोनों ट्रेनों में करीब 2,000 यात्री सवार थे। हादसे में कम से कम 288 लोगों की मौत हो गई, जबकि करीब 1,000 यात्री घायल हुए हैं।
हादसे के प्रत्यक्षदर्शी रहे अनुभव दास ने पीटीआई-को बताया कि स्थानीय अधिकारियों और रेल अधिकारियों ने शुरूआत में कहा था कि कोरोमंडल एक्सप्रेस ने मालगाड़ी को टक्कर मार दी। दास इसी ट्रेन से सफर कर रहे थे।

इसे भी पढ़ें: राहुल गांधी ने जताया भरोसा: भारत को लेकर ‘‘वैकल्पिक सोच’’ के लिए विपक्ष मिलाएगा हाथ

हालांकि, रेलवे ने इस तरह के किसी दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
घटना की गहन जांच जारी रहने के बीच, किसी भी अधिकारी ने षड्यंत्र की आशंका के बारे में अब तक बात नहीं की है।
अधिकारियों ने बताया कि रेलवे ने ओडिशा के बालासोर में हुए इस हादसे की उच्च स्तरीय जांच शुरू कर दी है, जिसका नेतृत्व रेल सुरक्षा, दक्षिण पूर्व क्षेत्र के आयुक्त कर रहे हैं।
रेलवे सुरक्षा आयुक्त, नागर विमानन मंत्रालय के तहत आते हैं और इस प्रकार के सभी हादसों की जांच करते हैं।
भारतीय रेलवे के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘एसई (दक्षिण-पूर्व) क्षेत्र के सीआरएस (रेलवे सुरक्षा आयुक्त) ए एम चौधरी हादसे की जांच करेंगे।’’
रेलवे ने बताया कि रेलगाड़ियों को टकराने से रोकने वाली प्रणाली ‘कवच’ इस मार्ग पर उपलब्ध नहीं है।
दुर्घटना में बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी शामिल है।
भारतीय रेल के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने कहा, ‘‘बचाव अभियान पूरा हो गया है। हम अब मार्ग को सुचारू करने का कार्य शुरू कर रहे हैं। इस मार्ग पर कवच प्रणाली उपलब्ध नहीं थी।’’
रेलवे अपने नेटवर्क में ‘कवच’ प्रणाली उपलब्ध कराने की प्रक्रिया में है, ताकि रेलगाड़ियों के टकराने से होने वाले हादसों को रोका जा सके।

जब लोको पायलट (ट्रेन चालक) किसी सिग्नल को तोड़ कर आगे बढ़ता है तो यह ‘कवच’ सक्रिय हो जाता है। सिग्नल की अनदेखी करना रेलगाड़ियों के टकराने का प्रमुख कारण है। यह प्रणाली जब किसी अन्य ट्रेन को उसी मार्ग पर एक निर्धारित दूरी के अंदर होने का संकेत प्राप्त करती है तब लोको पायलट को सतर्क कर सकती है, ब्रेक लगाती है और ट्रेन को स्वत: रोक देती है।
सूत्रों ने पूर्व में कहा था कि सिग्नल के नाकाम रहने के चलते हादसा हुआ होगा।
हालांकि, रेल अधिकारियों ने कहा है कि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन पर गई थी या नहीं और मालगाड़ी को टक्कर मारी थी, या यह (कोरोमंडल एक्सप्रेस) पहले पटरी से उतरी और लूप लाइन पर जाने के बाद वहां खड़ी मालगाड़ी को टक्कर मारी।
प्रारंभिक जांच रिपोर्ट की एक प्रति पीटीआई के पास है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिग्नल दिया गया था और 12841 (कोरोमंडल एक्सप्रेस) लूप लाइन पर चली गई, मालगाड़ी से टकराई और पटरी से उतर गई। इस बीच, 12864 (हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस) मुख्य मार्ग पर सामने से आई और इसके दो डिब्बे पटरी से उतर गये तथा पलट गये।
इंटीग्रल कोच फैक्टरी,चेन्नई के पूर्व महाप्रबंधक सुधांशु मणि ने हादसे में शामिल दोनों लोको पायलट की ओर से कोई गलती होने से प्रथम दृष्टया इनकार किया है।

प्रथम वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली टीम का नेतृत्व करने वाले मणि ने कहा कि हादसे में बड़े पैमाने पर यात्रियों के हताहत होने का प्राथमिक कारण ट्रेन का पहले पटरी से उतरना और दूसरी ट्रेन का उसी समय वहां से गुजरना था, जो काफी तेज गति से विपरित दिशा से आ रही थी।
उन्होंने कहा कि यदि पहली ट्रेन केवल पटरी से उतरी होती तो इसके ‘एलएचबी’ डिब्बे नहीं पलटते और इतनी संख्या में यात्री हताहत नहीं होते।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह नहीं देखता कि चालक ने सिग्नल की अनदेखी की। यह (ट्रेन) सही मार्ग पर जा रही थी और डेटा लॉगर से प्रदर्शित होता है कि सिग्नल हरा था।’’
रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य श्री प्रकाश ने भी कहा कि दूसरी ट्रेन इतनी तेज गति में थी कि उसके चालक के पास नुकसान को सीमित करने के लिए बहुत कम समय था।

Loading

Back
Messenger