दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार के आरोपी एवं फरार स्वयंभू आध्यात्मिक उपदेशक वीरेंद्र देव दीक्षित के राष्ट्रीय राजधानी स्थित आश्रम में रह रही उस महिला से अदालत में पेश होने को कहा है, जिसके बुजुर्ग माता-पिता ने आरोप लगाया है कि उनकी ‘‘उच्च शिक्षा प्राप्त’’ बेटी को गुमराह किया जा रहा है।
माता-पिता ने उनकी सहमति के बिना रोहिणी के आध्यात्मिक विश्व विद्यालय में रह रही अपनी बेटी के साथ बातचीत का अवसर मुहैया कराने का अदालत से आग्रह किया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि महिला वयस्क है और उसे अपने माता-पिता से मिलने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘बेटी बालिग है। हम उसे मजबूर नहीं कर सकते। उसकी अपनी समझ है।’’
याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत से अनुरोध किया कि आश्रम में रह रहे लोगों की स्थिति के संबंध में रोहिणी के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अगुवाई वाली एक समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर उनकी बेटी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने के निर्देश दिए जाएं।
मामले में नियुक्त न्याय मित्र ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की बेटी वयस्क है जो उच्च न्यायालय के समक्ष पहले ही बयान दे चुकी है कि वह स्वेच्छा से आश्रम में रह रही है और अपने माता-पिता से मिलना नहीं चाहती।
न्याय मित्र ने कहा कि बेटी की आस्था भले ही कुछ भी हो, यदि उसकी दिमागी स्थिति दुरुस्त है, तो उसकी इच्छा के खिलाफ उसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ताओं की बेटी के वकील ने कहा कि वह 38 वर्षीय महिला है और वह अपने माता-पिता से मिलने की इच्छुक नहीं है और मनोचिकित्सकों ने 2018 में ही उसका मनौवैज्ञानिक विश्लेषण कर लिया था।
न्याय मित्र ने सुझाव दिया कि अदालत कोई आदेश पारित करने से पहले महिला के साथ संवाद कर सकती है।
इसके बाद अदालत ने कहा, ‘‘तदनुसार, प्रतिवादी संख्या चार (बेटी) को अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है। मामले को जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया जाए।’’
याचिकाकर्ताओं ने आश्रम की ‘‘हिरासत’’ से अपनी बेटी की ‘‘रिहाई’’ के लिए 2020 में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं ने वकील श्रवण कुमार के माध्यम से दायर अपनी याचिका में कहा कि आश्रम ‘‘बलात्कार और अन्य गंभीर अपराधों के ऐसे आरोपी द्वारा चलाया जा रहा है’’ जो फरार है और उनकी बेटी को एक मनोवैज्ञानिक विकार एवं पीठ में तीव्र दर्द की परेशानी के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों से उपचार कराने की आवश्यकता है।
इस मामले के अलावा उच्च न्यायालय गैर सरकारी संगठन ‘फाउंडेशन फॉर सोशल एम्पॉवरमेंट’ की 2017 में दाखिल याचिका पर भी सुनवाई कर रहा है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि दीक्षित के रोहिणी स्थित ‘आध्यात्मिक विश्वविद्यालय’ में अनेक नाबालिगों लड़कियों और महिलाओं को अवैध तरीके से बंधक बनाकर रखा गया है और उन्हें उनके माता-पिता से मिलने नहीं दिया जाता।