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हिमालय क्षेत्र के दबाव सहने की क्षमता के व्यापक अध्ययन के लिए विशेषज्ञ समिति का न्यायालय का प्रस्ताव

उच्चतम न्यायालय ने देश में हिमालय क्षेत्र के ‘जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता’ का‘‘पूर्ण और व्यापक’’ अध्ययन करने के वास्ते एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का सोमवार को प्रस्ताव किया तथा इसे बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा करार दिया।
हिमालय क्षेत्र में योजना के बगैर विकास कार्य किये जाने से हाल के समय में तबाही हुई है।
जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता, आबादी का वह अधिकतम आकार है, जिसे पारिस्थितिकी तंत्र खुद को नुकसान पहुंचाये बगैर बनाये रख सकता है।
देश के 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विस्तृत भारतीय हिमालय क्षेत्र के ‘जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता’ एवं ‘मास्टर प्लान’ का आकलन करने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही है।
याचिकाकर्ता अशोक कुमार राघव की ओर से पेश हुए वकील ने पीठ को बताया कि विशेषज्ञ संस्थानों द्वारा एक व्यापक अध्ययन किये जाने की जरूरत है, क्योंकि हिमालय क्षेत्र में प्रतिदिन तबाही देखी जा रही है।

पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, तीन-चार संस्थान अपने प्रतिनिधि नामित कर सकते हैं और हम उनसे हिमालय क्षेत्र के जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का एक पूर्ण और व्यापक अध्ययन करने को कह सकते हैं।’’
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से उसे एक संक्षिप्त ‘नोट’ देने को कहा, जिसमें उन विशेषज्ञ संस्थानों का नाम प्रस्तावित किया जाए और यह बताया जाए कि इस तरह की एक समिति का क्या अधिकार क्षेत्र होना चाहिए।
न्यायालय ने वकील से अपना ‘नोट’ अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को देने को कहा, जो केंद्र की ओर से पेश हो रही हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘हम समिति गठित करेंगे। आपलोग तब हमें आगे के उपाय बताएंगे। यह एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है जो उन्होंने (याचिकाकर्ता ने) उठाया है।’’
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ‘जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता’ से संबंधित एक दस्तावेज सरकार ने अतीत में तैयार किया है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा पारित एक आदेश का जिक्र करते हुए भाटी ने पीठ से कहा कि केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखा था तथा अब इन्हें बताना है कि उन्होंने इस बारे में क्या कुछ किया है।

याचिकाकर्ता के वकील ने मुद्दे पर व्यापक अध्ययन कर सकने वाले कुछ विशेषज्ञ संस्थानों का जब जिक्र किया, तब पीठ ने कहा, ‘‘इन संस्थानों की भागीदारी से एक व्यापक अध्ययन होने दीजिए और उन्हें तीन-चार महीनों का वक्त दीजिए तथा पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए कुछ ठोस उपाय के साथ आइए।’’
भाटी ने कहा कि याचिका में 13 राज्यों सहित 16 प्रतिवादी बनाये गए हैं।
पीठ ने मामले की सुनवाई की तारीख 28 अगस्त के लिए निर्धारित करते हुए कहा, ‘‘हम उन्हें (राज्यों को) चार से आठ हफ्तों के अंदर जवाब देने को कहेंगे।’’
याचिका में कहा गया है, ‘‘जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का अध्ययन नहीं किये जाने के चलते, भूस्खलन, जमीन धंसने, भूमि में दरार पड़ने जैसे गंभीर भूगर्भीय खतरे पैदा हो रहे हैं, जैसा कि जोशीमठ (उत्तराखंड) में देखने को मिल रहा है। साथ ही, पर्वतीय क्षेत्रों में गंभीर पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणीय विनाश हो रहा है।’’याचिका में कहा गया है, ‘‘हिमाचल प्रदेश में धौलाधर सर्किट, सतलुज सर्किट, ब्यास सर्किट और ट्राइबल सर्किट में फैले लगभग सभी हिल स्टेशन, तीर्थस्थल और अन्य पर्यटन स्थल भी जनसंख्या के अधिक दबाव का सामना कर रहे हैं तथा राज्य में इनमें से किसी भी स्थान पर जनसंख्या के दबाव सहन कर सकने की क्षमता का आकलन नहीं किये जाने के कारण वे लगभग ढहने के कगार पर हैं।

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