हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा देने वाली अधिसूचना पर बृहस्पतिवार को अंतरिम रोक लगा दी।
समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने के तीन दिन बाद ही अदालत ने इस पर रोक लगा दी।
इसके खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई थी जिनकी सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंड पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि विवादित कानून में स्पष्ट मनमानी और असंवैधानिकता है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने सोमवार को सिरमौर जिले के ट्रांसगिरी क्षेत्र के हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की अधिसूचना जारी की थी।
सिरमौर जिले के ट्रांसगिरी क्षेत्र की 154 पंचायतों में रहने वाले समुदाय के लगभग 3 लाख सदस्य संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2023 को लागू नहीं करने और समुदाय को एसटी के रूप में अधिसूचित नहीं करने को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।
पीठ ने कहा कि अगर अंतरिम राहत नहीं दी गई तो अपूरणीय क्षति हो सकती है।
इसके बाद अदालत ने अधिसूचना पर 18 मार्च तक रोक लगा दी।
गिगिरिपार अनुसूचित जाति अधिकार संरक्षण समिति और गुर्जर कल्याण परिषद ने हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने को चुनौती के लिए याचिकाएं दायर की हैं और सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया और अंतरिम आदेश पारित कर दिया।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि टिप्पणियां या निष्कर्ष केवल प्रथम दृष्टया और अस्थायी हैं और अंतिम सुनवाई के दौरान इसका कोई असर नहीं होगा।
उच्च न्यायालय ने कहा अगर अंतरिम आदेश नहीं दिए गए, तो हजारों एसटी प्रमाणपत्र जारी कर दिए जाएंगे, जिन्हें वापस लेना मुश्किल होगा।”
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय के 30 दिसंबर के एक पत्र का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, “हम इस बात से चकित हैं कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 मेंउल्लिखित अनुसूचित जाति की सूची में अनुच्छेद 341 के खंड दो तहत संसद द्वारा अपवर्जन के बिना (केंद्रीय) जनजातीय मामलों का मंत्रालय ऐसी सलाह कैसे दे सकता था।”
मंत्रालय के पत्र कथित तौर पर स्पष्ट किया गया था कि हाटी सिरमौर जिले के ट्रांसगिरि क्षेत्र के स्थायी निवासी हैं, जो अनुसूचित जाति (एससी) के रूप में अधिसूचित समुदायों से बाहर हैं।
पीठ ने कहा, “ इस प्रकार, उपरोक्त सभी तथ्य और परिस्थितियां प्रथम दृष्टया दर्शाती हैं कि एससी, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और ट्रांसगिरि क्षेत्र की राजपूत और ब्राह्मण जैसी प्रमुख जातियों को संविधान (अनुसूचित जाति) 1950 की सूची में शामिल करने में स्पष्ट मनमानी हुई है और और प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि संसद ने नीति निर्धारक सिद्धांत का पालन किए बिना मनमाने और तर्कहीन तरीके से कार्य किया है।