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सीपीआर की अर्जी पर सोमवार को आदेश पारित करेगी अदालत, अपने कोष के हिस्से के उपयोग की मांगी है अनुमति

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह विचार मंच ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ (सीपीआर) की उस अर्जी पर सोमवार को आदेश पारित करेगा जिसमें उसने सावधि जमा में अपने कोष के एक हिस्से का उपयोग अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान के लिए करने की अनुमति मांगी है।
यह अर्जी कानूनों के कथित उल्लंघन पर सीपीआर का एफसीआरए लाइसेंस निलंबित किये जाने को चुनौती देने वाली उसकी याचिका का हिस्सा है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा, ‘‘सोमवार को केवल अर्जी पर आदेश सुनाया जाएगा।’’
सीपीआर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने पहले दलील दी थी कि विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार, जब पंजीकरण प्रमाणपत्र निलंबित किया जाता है, तो संगठन के पास पड़ी हुई ‘अप्रयुक्त राशि के 25 प्रतिशत तक’ को कुछ उद्देश्यों के लिए खर्च किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान अर्जी में उक्त ‘अप्रयुक्त राशि’ सावधि जमा है।
केंद्र ने अर्जी का विरोध किया है और उसके वकील ने न्यायमूर्ति प्रसाद के समक्ष दलील दी कि अप्रयुक्त राशि का अर्थ वह राशि है जो ‘‘खर्च नहीं की गई’’ है और सावधि जमा में धनराशि इसके दायरे से बाहर है।
वकील की बात सुनने के बाद अदालत ने कहा, ‘‘इसे फैसला सुनाने के लिए सूचीबद्ध किया जाए।’’
पिछली सुनवायी के दौरान, अदालत ने केंद्र से पूछा था कि यदि याचिकाकर्ता के अनुरोध को मान लिया जाता है तो प्राधिकारियों पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। वकील ने कहा था कि ‘अप्रयुक्त राशि’ की परिको बदलने से ‘बड़े प्रभाव’ होंगे।

सीपीआर ने कानूनों के कथित उल्लंघन पर अपना एफसीआरए लाइसेंसनिलंबित किये जाने को चुनौती देते हुए इस साल की शुरुआत में अदालत का रुख किया था।
केंद्र ने 27 फरवरी को संगठन के एफसीआरए लाइसेंस को निलंबित कर दिया था। मार्च में, सीपीआर ने अधिकारियों को एक आवेदन दिया और अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिए अपने कोष का 25 प्रतिशत जारी करने की मांग की।
याचिका के जवाब में, केंद्र ने आरोप लगाया है कि सीपीआर ‘जिस उद्देश्य के लिए पंजीकृत किया गया था उसके अलावा अन्य उद्देश्यों’ के साथ ही ‘अवांछनीय उद्देश्यों’ के लिए विदेशी अंशदान प्राप्त कर रहा था और उसका उपयोग कर रहा था।

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