उत्तराखंड के जोशीमठ कस्बे में और भी घरों, इमारतों तथा सड़कों पर दरार दिखाई दीं, वहीं राज्य के मुख्य सचिव एस एस संधू ने सोमवार को कहा कि एक-एक मिनट अहम है।
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, चमोली के एक बुलेटिन के अनुसार जोशीमठ में सोमवार को 68 और घरों में दरार देखी गयी जिसके बाद जमीन धंसने से प्रभावित मकानों की संख्या 678 हो गयी है, वहीं 27 और परिवारों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है।
इसमें कहा गया कि अब तक 82 परिवारों को कस्बे में सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है।
संधू ने जोशीमठ में हालात की समीक्षा के लिए राज्य सचिवालय के अधिकारियों के साथ बैठक की और उनसे लोगों को घरों से निकालने के काम में तेजी लाने को कहा ताकि वे सुरक्षित रहें। उन्होंने कहा, ‘‘एक-एक मिनट महत्वपूर्ण है।’’
जिला प्रशासन ने असुरक्षित 200 से अधिक घरों पर लाल निशान लगा दिया है। उसने इन घरों में रहने वाले लोगों को या तो अस्थायी राहत केंद्रों में जाने या किराये के घर में स्थानांतरित होने को कहा है। इसके लिए प्रत्येक परिवार को अगले छह महीने तक राज्य सरकार से 4000 रुपये मासिक सहायता मिलेगी।
राष्ट्रीय आपदा मोचन बल और राज्य आपदा मोचन बल के कर्मियों को राहत तथा बचाव प्रयासों के लिए तैनात किया गया है।
जोशीमठ में 16 स्थानों पर प्रभावित लोगों के लिए अस्थायी राहत केंद्र बनाये गये हैं। इनके अलावा, जोशीमठ में 19 होटलों, अतिथि गृहों और स्कूल भवनों को तथा शहर से बाहर पीपलकोटी में 20 ऐसे भवनों को प्रभावित लोगों के लिए चिह्नित किया गया है।
संधू ने कहा कि प्रभावित क्षेत्रों में कटाव रोकने का काम तत्काल शुरू होना चाहिए और जिन जर्जर मकानों में दरारें आई हैं, उन्हें फौरन ढहाया जाना चाहिए ताकि और अधिक नुकसान नहीं हो।
अधिकारी ने कहा कि टूट गयीं पेयजल पाइपलाइन तथा सीवर लाइन की भी तत्काल मरम्मत की जानी चाहिए क्योंकि इनसे प्रभावित क्षेत्र में चीजें और जटिल हो सकती हैं।
प्रभावित इलाके में रहने वाले अनेक परिवार अपने घरों से भावनात्मक मोह तोड़ नहीं पा रहे और उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाह रहे।
जो लोग अस्थायी आश्रयस्थलों में पहुंच गये हैं, वे भी खतरे में पड़े अपने खाली घरों को देखने पहुंच रहे हैं।
कस्बे में सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में शामिल मारवाड़ी वार्ड की बुजुर्ग नागरिक परमेश्वरी देवी ने कहा कि उन्होंने खुद का घर बनाने के लिए अपनी पूरी जमापूंजी लगा दी और अब उनसे इसे छोड़कर एक राहत शिविर में जाने को कहा जा रहा है।
उन्होंने एक निजी समाचार चैनल से कहा, ‘‘मैं कहीं और जाने के बजाय उसी घर में मर जाना पसंद करुंगी जो मेरा है। अपने घर जैसा सुकून मुझे और कहां मिलेगा।’’
मनोहरबाग निवासी सूरज कापरवान की कहानी भी कुछ ऐसी है। उनका परिवार अब भी घर छोड़ने का फैसला नहीं ले पाया है।
सिंगधार की रहने वाली रिषी देवी का घर धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। उन्हें अपने परिवार के साथ एक सुरक्षित जगह पर जाना पड़ा, लेकिन वह रोजाना अपने घर लौटती हैं जबकि उनके परिवार वाले उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं।
देवी अब वहां बैठकर अपने घर की दरार पड़ी दीवारों को निहारती रहती हैं।
रमा देवी के परिवार को कमरों में दरार पड़ने के बाद घर के वरांडा में सोने को मजबूर होना पड़ा और अंतत: उन्होंने दहशत में आकर घर छोड़ दिया।
एक प्राथमिक स्कूल के भवन में शरण लेने वाली लक्ष्मी ने कहा कि वह स्थायी पुनर्वास चाहती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम कब तक इस अस्थायी राहत शिविर में रहेंगे।’’
कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने की त्रासदी को केंद्र सरकार को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना चाहिए तथा वहां रेलवे एवं अन्य परियोजनाओं के कार्यों को उचित अध्ययन के बाद ही चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने की मंजूरी प्रदान करनी चाहिए।
पार्टी के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा ने यह आरोप लगाया कि जोशीमठ की त्रासदी की खबरें पहले से आ रही थीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र एवं उत्तराखंड की ‘डबल इंजन’ की सरकार बहुत देर से जागीं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्वीट किया, ‘‘प्रकृति रक्षति रक्षितः। उत्तराखंड के देवस्थल, जोशीमठ में जो प्रकृति से खिलवाड़ कर, बेलगाम ‘विकास’ से दरारें आईं हैं, उससे पूरा देश चिंतित है और जोशीमठ के लोगों के साथ है।’’
उन्होंने सरकार से मांग की कि जोशीमठ की आपदा को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित किया जाए, वहां रेलवे और जलविद्युत सहित सभी नई परियोजनाओं पर तब तक रोक लगाई जाए, जब तक विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों की कोई नवनियुक्त उच्च स्तरीय कमेटी अपनी रिपोर्ट न दे।
खरगे ने कहा, ‘‘जोशीमठ के विस्थापितों को सिर्फ़ ₹5000 के बजाय, उचित मुआवज़ा पीएम केयर्स निधि से दिया जाए।’’
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी मांग की कि मुआवजा बढ़ाकर 50,000 रुपये प्रति पीड़ित किया जाए और पुराने कस्बे का संरक्षण करते हुए एक ‘नया जोशीमठ’ बसाया जाए।
स्थानीय लोग और विपक्षी कांग्रेस एनटीपीसी की एक सुरंग के निर्माण को तथा हर मौसम में जाने के लिए चार धाम मार्ग के निर्माण को इस हालात के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
हालांकि, सरकारी स्वामित्व वाली बिजली निर्माता एनटीपीसी ने कहा है कि उसकी तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना की सुरंग का जोशीमठ में हो रहे भूस्खलन से कोई लेना-देना नहीं है।
बयान के मुताबिक, ‘‘तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना की सुरंग को भी जोशीमठ कस्बे में जमीन धंसने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। स्पष्ट किया जाता है कि एनटीपीसी द्वारा बनाई गयी सुरंग जोशीमठ कस्बे के नीचे से नहीं गुजर रही।’’
गत पांच जनवरी के बयान के अनुसार, ‘‘एनटीपीसी पूरी जिम्मेदारी के साथ सूचित करना चाहती है कि सुरंग का जोशीमठ कस्बे में हो रहे भूस्खलन से कोई लेना-देना नहीं है। इस तरह की विषम परिस्थिति में कंपनी जोशीमठ की जनता के साथ अपनी सहानुभूति और संवेदना प्रकट करती है।’’
वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सरीन ने कहा, ‘‘हम इसे खारिज तो नहीं कर सकते, लेकिन स्पष्ट रूप से यह भी नहीं कह सकते क्योंकि एनटीपीसी की सुरंग प्रभावित क्षेत्र से बहुत दूर है। हालांकि, समस्या के विस्तृत विश्लेषण से ही कारणों का पता चल सकता है।’’
इस बीच जोशीमठ में जमीन धंसने की वजह से उत्पन्न संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए हस्तक्षेप का अनुरोध कर रहे एक याचिकाकर्ता से उच्चतम न्यायालय ने, उसकी अपील को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने के उद्देश्य से मंगलवार को इसका उल्लेख करने को कहा है।