दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कोयला द्वारा संचालित कई बिजली संयंत्रों ने विद्युत उत्पादन के लिए बायोमास या कृषि अवशेष इस्तेमाल करने के दिशा निर्देशों का पालन करने पर बहुत कम प्रगति की है। विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा बृहस्पतिवार को जारी एक नए अध्ययन से यह जानकारी मिली है।
केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने अक्टूबर 2021 में संयंत्रों को बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाले पांच से 10 प्रतिशत कोयले के स्थान पर बायोमास या कृषि अवशेष का प्रयोग करने का आदेश दिया था।
पराली जलाने और उत्सर्जन की चुनौती से निपटने के लिए यह किया गया था। इन संयंत्रों को सितंबर 2022 तक बिजली उत्पादन के लिए इन दोनों सामग्री का इस्तेमाल करना था तथा आगामी वर्ष में इसे सात प्रतिशत तक बढ़ाना था।
सीएसई ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में इन संयंत्रों में बमुश्किल ही कोई प्रगति की है।
सीएसई के औद्योगिक प्रदूषण के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन से पता चलता है कि दिसंबर 2022 तक इन 11 संयंत्रों में हर साल जलाए गए कोयले के एक प्रतिशत से भी कम मात्रा में कृषि अवशेष का इस्तेमाल किया गया।’’
उन्होंने कहा कि इसकी एक बड़ी वजह भारी मांग-आपूर्ति में अंतर भी है।
सीएसई ने यह भी पाया कि कुछ संयंत्रों जैसे कि पानीपत और राजीव गांधी ताप विद्युत केंद्र ने हरियाणा के बिजली नियामक आयोग में अपील करके बायोमास को एक साथ जलाने संबंधी नीति के पालन से छूट लेने की भी कोशिश की। हालांकि, आयेाग ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया।