दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को यह बताने का निर्देश दिया है कि दक्षिणी रिज वन क्षेत्र में नए निर्माण के लिए अनुमति कैसे दी गई, जहां एक बहुमंजिला आवास परियोजना पहले ही है।
उच्च न्यायालय को न्याय मित्र द्वारा सूचित किया गया कि दक्षिणी रिज के भीतर छतरपुर क्षेत्र में अवैध निर्माण गतिविधियां की जा रही हैं।
न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा, “वन विभाग, दिल्ली सरकार की ओर से पेश होने वाले वकील के साथ-साथ एमसीडी और डीडीए के वकील को नए निर्माण पर एक विस्तृत और व्यापक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें दक्षिणी रिज वन क्षेत्र में ‘रिसलैंड-स्काई मेन्शन’ आवासीय परियोजना शामिल हो लेकिन यह (हलफनामा) उसी तक सीमित नहीं हो।”
उच्च न्यायालय दिल्ली में खराब परिवेशी वायु गुणवत्ता की समस्या पर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। यह मुद्दा उसने स्वत: संज्ञान से भी उठाया है और इसमें उसने एक ‘एमिकस क्यूरी’ (न्यायमित्र) की नियुक्ति भी की है।
मामले में न्यायमित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश वासुदेव ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि आवास परियोजनाएं ‘लाल डोरा’/‘आबादी’ क्षेत्रों में बनाई गई थीं, ये आबादी क्षेत्र दक्षिणी रिज वन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं ।
यहां किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि वे ‘आरक्षित वन’ हैं।
उन्होंने कहा कि यह रिज क्षेत्र में है जहां निर्माण पर पाबंदी है।
अदालत के पूर्व के आदेश के अनुपालन में एमसीडी के वकील ने एक विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जिसमें छतरपुर में दक्षिण वन क्षेत्र में एक बड़े आवासीय परिसर -‘रिसलैंड-स्काई मेंशन’ के निर्माण की पुष्टि की।