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‘हरित न्यायाधीश’ के नाम से मशहूर न्यायमूर्ति नजमी वजीरी को दिल्ली उच्च न्यायालय ने दी भावभीनी विदाई

हरी-भरी वनस्पतियों के प्रति अपनी रुचि और राष्ट्रीय राजधानी में 3.7 लाख पेड़ लगाने में वादियों/प्रतिवादियों को शामिल करने के प्रयासों के लिए ‘हरित न्यायाधीश’ के नाम से मशहूर दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नजमी वजीरी ने शुक्रवार को नागरिकों से पौधारोपण अभियान की जिम्मेदारी लेने का आग्रह करते हुए कहा कि सरकार अकेले सब कुछ नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति वजीरी ने कहा कि उन्होंने पाया कि यदि सुधार की गुंजाइश या संभावना होती है तो सबसे अच्छा तरीका वादियों को शहर, इसके पर्यावरण और आस-पड़ोस के लिए कुछ करने को निर्देशित करना है। वह अपने अंतिम कार्यदिवस पर उच्च न्यायालय की ओर से आयोजित विदाई समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न पक्षों पर लगाए गए जुर्माने को विभिन्न कोषों में भेजने के बजाय यह (पौधारोपण) लोगों के पैसे और समय का उपयोग करने का अधिक विवेकपूर्ण तरीका लगता है। विभिन्न कोषों में भेजी जाने वाली राशि दशकों तक अप्रयुक्त रह सकती है।’’

विदाई समारोह में दिल्ली उच्च न्यायालय के विभिन्न न्यायाधीश, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति वजीरी के परिवार के सदस्य और मित्र, वकील एवं अदालत के कर्मचारी उपस्थित थे।
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि ‘सामाजिक न्याय’ न्यायमूर्ति वज़ीरी के न्यायिक दृष्टिकोण की ‘पहचान’ रहा है।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ‘‘मुझे यकीन है कि आपका कार्य समाज पर स्थायी प्रभाव छोड़ेगा। विभिन्न क्षमताओं में प्रदान की गई आपकी सेवाओं से तंत्र (सिस्टम) को अत्यधिक लाभ हुआ है। आज, आप तंत्र को उससे बेहतर छोड़ रहे हैं, जितना आपने पाया था।’’
दिल्ली में पेड़ लगाने के न्यायमूर्ति वज़ीरी के प्रयासों का जिक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश शर्मा ने कहा, ‘‘केवल एक पीढ़ी नहीं, बल्कि कई पीढ़ियां आसानी से सांस लेंगी।’’
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि न्यायमूर्ति वजीरी ने जुलाई 2018 से दक्षिणी रिज से मध्य रिज तक माफी बाग (माफी का बगीचा) और इंसाफ बाग (न्याय का बगीचा) के रूप में 3.70 लाख पेड़ लगवाए।

उन्होंने कहा कि हरित दिल्ली कोष में 2.38 करोड़ रुपये जमा किए गए हैं, जिसका इस्तेमाल आगे पौधारोपण के लिए किया जाना है।
न्यायमूर्ति वज़ीरी ने उस शाम को याद किया, जब वह न्यायाधीश के रूप में अपने पहले दिन के कामकाज के बाद घर लौटे थे। उन्होंने कहा कि उनकी छोटी बेटी उस समय 12 साल की थी और उस सुबह उसने एक प्रभावशाली शपथ ग्रहण समारोह देखा था, वह (बेटी) उनके पास आई और मासूमियत से पूछा था, ‘‘अब्बा क्या तुम कर पाओगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वह प्रश्न वास्तव में एक चुनौती बन गया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से जो अपेक्षाएं होती हैं, उन पर खरा उतरने के लिए हर दिन प्रयास करना चाहिए।

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