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यूसीएमएस पर धन की हेराफेरी का दावा करने वाली याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय ने खारिज की

दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि ‘यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज’ (यूसीएमएस) राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के अधिकारियों की मिलीभगत से टीबी और श्वसन चिकित्सा विभाग चलाने का दावा कर धन की हेराफेरी कर रहा है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने यह कहते हुए जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी कि इसमें कोई दम नहीं है।
अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि है।

रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्य इस बात की गवाही देते हैं कि यूसीएमएस का एक अलग श्वसन चिकित्सा विभाग है, जिसके विभागाध्यक्ष डॉ अमित कुमार वर्मा हैं और कुछ अन्य प्राध्यापक भी इसमें हैं।जनहित याचिका में कथित धोखाधड़ी की फर्जी जांच करने और विभाग की मनगढंत रिपोर्ट पेश करने और यूसीएमएस एवं गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में टीबी और श्वसन चिकित्सा के एक गैर-मौजूद विभाग की मनगढ़ंत रिपोर्ट देने के लिए एनएमसी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गयी थी।पीठ ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी अपना जवाबी हलफनामा दायर किया है

 जिसमें कहा गया है कि वर्मा श्वसन चिकित्सा विभाग के प्रमुख हैं।उच्च न्यायालय का आदेश एक वकील आरके तरुण की एक जनहित याचिका पर आया, जिसमें कहा गया था कि यूसीएमएस दिल्ली विश्वविद्यालय का एक घटक कॉलेज है और यह एनएमसी से मंजूरी लेकर स्नातक एवं स्नातकोत्तर दोनों मेडिकल छात्रों को विभिन्न चिकित्सा और पैरामेडिकल पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
याचिका में कहा गया था कि आवश्यक बुनियादी ढांचे के बिना छात्रों को एनएमसी द्वारा निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन करते हुए यूसीएमएस में प्रवेश दिया जा रहा है।

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