सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक के वीकली राउंड अप में शीतकालीन अवकाश के बाद शुरुआत की जोरदार हुई। 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के खुलते ही नोटबंदी जैसे बड़े आर्थिक फैसले पर जजमेंट आया। वहीं पूरे हफ्ते कानूनी खबरों के लिहाज से गहमागहमी भरा रहा। चाहे वो हल्द्वानी में बुलडोजर पर सुप्रीम रोक हो या फिर समलैंगिक शादी से जुड़े सभी मामलों को ट्रांसफर किया जाना। सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक इस सप्ताह यानी 02 जनवरी से 06 जनवरी 2023 तक क्या कुछ हुआ। कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।
हाईकोर्ट से ट्रांसफर होंगे समलैंगिक शादी से जुड़े सभी मामले
समलैंगिकों के बीच शादी को लेकर अलग-अलग हाई कोर्ट में पेंडिंग याचिका को शीर्ष अदालत ने उन याचिका को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने का आदेश दिया है। सरकार 15 फरवरी तक अपना जवाब दाखिल करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 मार्च की तारीख तय की है। यह मामला मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। सीजेआई चंद्रचूड़ ने आदेश लिखवाते हुए कहा कि चूंकि एक ही विषय पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष कई याचिकाएं लंबित हैं, हम सभी याचिकाओं को इस न्यायालय के समक्ष स्थानांतरित करने का निर्देश देते हैं।
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सही था नोटबंदी का फैसला
अदालत में नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली अलग-अलग कुल 58 याचिकाएं दाखिल की गई। सभी याचिकाओं की सुनवाई इसी साल 12 अक्टूबर को शुरू हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ जिसमें जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, जस्टिस बीवी नागरत्ना, बीआर गवई, वी रामासुब्रमण्यम की संवैधानिक बेंच ने 7 दिसंबर 2022 को ही अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 25 दिसंबर से कोर्ट बंद था। इसलिए नए साल के दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था। मोदी सरकार के नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ने सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा और याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया गलत नहीं थी और कोर्ट ने सरकार के फैसले को सही करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक मामलों से जुड़े फैसलों को पलटा नहीं जा सकता है। वहीं इस मामले में जस्टिस नागरत्ना की राय चार जजों से अलग रही। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सरकार के फैसले पर कई सवाल उठाए हैं। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रंखला वाले नोटों को बंद करने का फैसला गजट अधिसूचना के बजाए कानून के जरिए लिया जाना चाहिए था क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता।
मंत्री के बयान के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं
किसी भी मंत्री, संसद सदस्य (सांसद) और विधानसभा सदस्य (विधायक) के बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर पाबंदियां लगाई जा सकती है? इस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाया है। फ्री स्पीच केस पर पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों व उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की आवश्यकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मंत्री संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अन्य नागरिकों की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समान रूप से आनंद लेते हैं। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के सार्वजनिक पदाधिकारियों के स्वतंत्र भाषण के मौलिक अधिकार पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।
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हल्द्वानी में नहीं चलेगा बुलडोजर
हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश पर 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि यह मानवीय मुद्दा है। इसका व्यावहारिक समाधान निकालने की जरूरत है। 50 हजार लोगों को 7 दिनों में रातोंरात नहीं हटाया जा सकता है। लोगों के पुनर्वास की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार और रेलवे को नोटिस जारी किया। मामले में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी। सुप्रीम कोर्ट की रोक से हजारों लोगों को राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में रेलवे की ओर से पेश अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जमीन की रेलवे को जरूरत है, लेकिन यह देखना जरूरी है कि जमीन पूरी तरह रेलवे की है या कुछ हिस्सा राज्य सरकार का भी है। कोर्ट ने कहा कि याचियों का दावा है कि उनके पास लीज है। वे 1947 में माइग्रेट होकर आए हैं और जमीन का ऑक्शन हुआ था।
चीफ जस्टिस कुणाल कामरा केस से हुए अलग
भारत के चीफ जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड ने स्टैंडअप कमीडियन कुणाल कामग के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करने वाली दलीलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। कामरा पर यह केस न्यायपालिका के खिलाफ कथित निंदनीय ट्वीट्स के लिए दायर किया गया है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पेठ ने में याचिकाओं पर विचार किया और कहा ‘हम इस मामले को एक बेंच के समक्ष रखेंगे, जिसका मैं (चीफ जस्टिस) हिस्सा नहीं है क्योंकि टिप्पणी उस आदेश पर की गई थी जिसे मैंने पारित किया है। वे में जस्टिस पी. एस. नरम से शामिल थे। जस्टिस चंद्रचूड़ नामको को सौंपेंगे। कामरा ने 11 नवंबर 2020 कोबीमकोर्ट 2016 मैं आत्महत्य के लिए के उकसाने के मामले में अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत याचिका खारिज करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी।
OBC रिजर्वेशन के मुद्दे पर SC का फैसला
उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को लेकर राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार को देश की सर्वोच्च अदालत से राहत मिल गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जनवरी तक चुनाव कराने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस पर तीन हफ्ते में जवाब मांगा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि इस दौरान कोई भी बड़ा नीतिगत फैसला नहीं लिया जाएगा। वित्तीय दायित्वों को लेकर अधिसूचना जारी हो सकती है। आयोग तीन महीने में काम पूरा करने की कोशिश करेगा।