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Shaurya Path: Middle East tension, Israel, India-Afghanistan और Russia-Ukraine से जुड़े मुद्दों पर चर्चा

प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमेशा की तरह हमारे खास मेहमान ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी मौजूद रहे। इस कार्यक्रम में हमने वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। मिडिल ईस्ट में ईरान और इजरायल के बीच बन रहे तनाव पर हमने ब्रिगेडियर त्रिपाठी से सवाल पूछा। साथ ही साथ हमने इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध की वर्तमान स्थिति पर भी चर्चा की है। 2 वर्ष से ज्यादा समय से रूस और यूक्रेन के बीच भी युद्ध जारी है। हम लगातार अपने इस कार्यक्रम में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर चर्चा करते हैं। इस बार भी रूस-यूक्रेन युद्ध की वर्तमान स्थिति पर भी हमने चर्चा की है। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद भारत के साथ उसके संबंधों को लेकर कई तरह के की आशंकाएं थीं। हालांकि हाल में तालिबान प्रशासन ने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जिससे यह लग रहा है कि भारत और अफगानिस्तान के बीच पर्दे के पीछे दोस्ती की नई कहानी लिखी जा रही है। इसको लेकर भी हमने ब्रिगेडियर त्रिपाठी से सवाल पूछा है। 

– इस सवाल के जवाब में ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि इजरायल और ईरान हमेशा से दुश्मन रहे हैं। शुरू में इनकी दोस्ती भी दिखाई थी। लेकिन अब उनके रास्ते बिल्कुल अलग हो चुके हैं। इजरायल और ईरान के बीच के तनाव की शुरुआत तब हुई जब ईरान के दूतावास के पास हमला हुआ था। ईरान ने इसके लिए पूरी तरीके से इजरायल को जिम्मेदार माना था। मौका मिलते ही ईरान ने इजरायल को इसका जवाब भी दिया। ईरान का जवाबी कार्रवाई बहुत ही भयानक था। हालांकि ईरान ने दावा किया कि उसने सिविलियन को टारगेट नहीं किया। अमेरिका और बाकी के कुछ और देश को उसने बताकर यह हमला किया है। ईरान ने इस हमले के लिए नई मिसाइल का भी इस्तेमाल किया। दूसरी ओर इजरायल ने दावा किया है कि हमने ईरान के सभी ड्रोन्स को डिस्ट्रॉय कर दिया है। वहीं ईरान कह रहा है कि हमने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है। उन्होंने कहा की खबर यह भी आ रही है कि थोड़ा बहुत डैमेज हुआ है। हालांकि इजरायल ने अब तक इसको स्वीकार नहीं किया है। ईरान और इजरायल के बीच पहले लड़ाई डायरेक्ट नहीं थी। लेकिन अब दोनों आमने-सामने हो गए हैं। इस अटैक का सामना करने के लिए अमेरिका और इजरायल को समय भी मिल गया था जिसकी वजह से नुकसान ज्यादा नहीं हुआ। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि अगर ईरान बड़ा नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था तो फिर उसने यह हमला क्यों किया? ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि हो सकता है ईरान यह देखना चाहता हो कि इस हमले का रिएक्शन क्या होता है? इजरायल के अंदर ईरान का पहुंचना ही अपने आप में बड़ी कहानी है। 

– इजरायल और हमास युद्ध को लेकर ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि बातचीत की कोशिश लगातार हो रही है। कई देश है जो इस कोशिश में लगे हुए हैं कि सीजफायर किया जाए। हालांकि युद्ध अभी भी जारी है। दोनों ओर से अटैक किया जा रहा है। इजरायल ने एक बार फिर से गाजा में एक्शन शुरू कर दिया है। राफा में इजराइल का अटैक पहले की ही तरह दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि मानवीय सहायता इजरायल और गाजा के क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। भोजन, आवास और दवाई की बहुत कमी है। इजरायल के अंदर भी अलग-अलग राय बनते दिखाई दे रहे हैं। नेतन्याहू को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू को यह लगता है कि अगर सीजफायर अभी के समय में होती है तो इससे हमास को एक बार फिर से युद्ध की तैयारी के लिए वक्त मिल सकता है। लेकिन फिलहाल की स्थिति में देखें तो सीजफायर हर कोई चाहता है। नेतन्याहू पर दबाव बनाने की कोशिश हर ओर से हो रही है। ईरान मामले की वजह से भी इजरायल पर एक अलग दबाव बन रहा है। उन्होंने कहा कि कतर, अमेरिका और इजिप्ट इसमें लगे हुए हैं। उससे इस बात की उम्मीद दिखाई दे रही है कि सीजफायर पर थोड़ी बहुत बातचीत बन सकती है।

– ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि यूक्रेन की हालत अब पूरी तरीके से खराब हो चुका है। दुनिया का सारा फोकस अब इजरायल पर आ गया है। लेकिन दूसरी ओर देखे तो रूस का एक्शन यूक्रेन के खिलाफ लगातार जारी है। रूस अलग-अलग क्षेत्र में अपना कंट्रोल बढ़ा रहा है। यही कारण है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को भी यह कहना पड़ रहा है कि इजरायल को हेल्प मिल रहा उसकी तुलना में यूक्रेन को कोई मदद अब नहीं मिल रही है। यूक्रेन की स्थिति ऐसी है कि उसे हर चीज इंपोर्ट करना पड़ रहा है। यूक्रेन के लिए कुछ भी नहीं बचा है। स्थिति ऐसी हो गई है कि यूक्रेन रूस पर पलटवार भी नहीं कर पा रहा है। उन्होंने कहा कि शांति की कोशिश हो रही है। रूस अपने शर्तों पर मानने के लिए तैयार है। रूस की लड़ाई यूक्रेन से नहीं बल्कि नाटो और अमेरिका से है। रूस वेस्ट को थकाने की कोशिश कर रहा है। साथ ही साथ डराने की भी कोशिश है। 

– अफगानिस्तान और भारत के संबंध नए नहीं है। कुछ वक्त को छोड़ दें तो भारत और अफगानिस्तान के संबंध प्राचीन, पौराणिक और सांस्कृतिक हैं। भारत हर मामले में अफगानिस्तान की मदद करता आ रहा है और आगे भी जारी रखेगा। अफगानिस्तान की खूबसूरती यह भी है कि कभी उस पर कोई शासन करने में कामयाब नहीं रहा। उन्होंने कहा कि जब अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी हुई, उससे पहले से ही भारत के साथ बैक चैनल से बातचीत शुरू हो गई थी जिसका इंपैक्ट अब दिखाई दे रहा है। हाल के दिनों में कुछ-कुछ चीजों को छोड़ दें तो भारत और तालिबान के बीच सब कुछ ठीक-ठाक रहा है। अफगानिस्तान की ओर से जो हिंदू और सिखों को लेकर ऐलान किया गया है, वह अपने आप में बड़ी बात है और दिखता है कि अफगानिस्तान भारत को लेकर कितना पॉजिटिव है। भारत के लिए भी अफगानिस्तान बेहद जरूरी है ताकि चीन और पाकिस्तान को कंट्रोल में रखा जा सके। तालिबान भारत से दोस्ती रखना चाहता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि तालिबान को भी पता है कि भारत उससे कोई लालच नहीं रखता है। भारत निस्वार्थ होकर मदद करता है। वहीं, चीन और पाकिस्तान की स्थिति कुछ अलग है। उन्होंने कहा कि भारत पहले ही टेररिज्म, ड्रग्स और हथियार को लेकर अफगानिस्तान को चेतावनी दे चुका था जिसके बाद से स्थितियां और भी अच्छी हुई है। अफगानिस्तान भी भारत के खिलाफ होने वाली गतिविधियों पर रोक लगाने की कोशिश की कर रहा है। 

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