आखिरकार वह घड़ी आ गई है, जिसका सभी को इंतजार था। जम्मू-कश्मीर में 10 सालों बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र का एक नया अध्याय शुरू हुआ। 18 सितंबर को पहले चरण का मतदान और 25 सितंबर को दूसरे चरण का मतदान और तीसरे व अंतिम चरण का मतदान 01 अक्तूबर को होगा। बता दें कि यह चुनाव आम चुनाव से पूरी तरह से अलग है। यह चुनाव जम्मू-कश्मीर की राजनीति को एक नया मोड़ देगा। फिर साल 1987 के बाद यह पहला मौका है, जब जम्मू-कश्मीर में होने वाला चुनाव एक नया उत्साह और उल्लास नजर आ रहा है। ऐसे में सूबे में तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिनको राजनीतिक दल उठा रहे हैं।
राष्ट्रवाद और अलगाववाद का मुद्दा
जम्मू-कश्मीर के चुनावों में जहां पाकिस्तान या अलगावाद का जिक्र होता था। जबकि 37 साल में पहली बार चुनाव में हिस्सा लेना या न लेना, जीवन-मरण का सवाल नहीं है। सूबे में यह पहला चुनाव है, जिसमें राष्ट्रवाद और अलगाववाद के वर्चस्व की लड़ाई नहीं दिख रही है। जम्मू-कश्मीर में अगर कोई मुद्दा चल रहा है, तो वह विकसित जम्मू-कश्मीर के सपने को साकार करने का है। इस विधानसभा चुनाव में रोजगार, विकास, स्थानीय अस्मिता और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को प्राथमिकताएं मिल रही है।
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सूबे में करीब 10 सालों बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। जबकि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यहां पर पहला विधानसभा चुनाव हो रहा है। साल 1987 के बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया बहिष्कार की राजनीति से प्रभावित रही है। सूबे में मतदान में हिस्सा लेना जिहादियों को अपने घर दावत देने जैसा माना जाता है। वहीं कर्मचारी भी घाटी में चुनाव में ड्यूटी से बचते थे। कश्मीर मामलों के जानकार की मानें, तो घाटी में होने वाले विधानसभा चुनाव एक नई सुबह का आगाज है। हालांकि चुनाव परिणाम क्या होंगे, यह मतगणना के बाद तय होगा।