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भोपाल। भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी का कहना है कि भारत का प्रत्येक व्यक्ति बहुभाषी है। भारत जैसे बहुभाषी देश में हमारा किसी एक भाषा के सहारे काम चल ही नहीं सकता। हमें अपनी बात बाकी लोगों तक पहुंचाने के लिए और उनके साथ संवाद करने के लिए एक भाषा से दूसरे भाषा के बीच आवाजाही करनी ही पड़ती है। इसलिए अंग्रेजी के साम्राज्यवाद के विरूद्ध भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा के लिए काम करना होगा। वे यहां कर्नाटक राज्य विश्वविद्यालय कॉलेज हिन्दी प्राध्यापक संघ, बेंगलूरु के तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सप्ताह-‘हिन्दी पर्व-2024’ की आनलाइन व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। ‘हिंदी हैं विषय’ पर आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कर्नाटक राज्य के हिंदी प्राध्यापकों और शोधार्थियों ने सहभागिता की।
भारतीय भाषाओं का अमृतकालः
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारत सदैव भाषाई और सांस्कृतिक सद्भावना की बात करता आया है और सभी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलने के पीछे भी यही सोच है। जहां भाषा खत्म होती है, वहां संस्कृति भी उसके साथ दम तोड़ देती है। भारतीय भाषाओं को महत्व देते हुए हमें यह समझना चाहिए कि आपसी संपर्क का माध्यम हिंदी ही है। उन्होंने कहा कि हमें कोशिश करनी है कि जब दो विविध भाषा बोलने वाले भारतीय मिलें तो उनके संवाद की भाषा हिंदी हो, अंग्रेजी नहीं। प्रो.द्विवेदी ने कहा राजनीतिक परिर्वतन के कारण यह समय भारतीय भाषाओं का भी अमृतकाल है। इस समय का उपयोग करते हुए हमें आत्मदैन्य से मुक्ति लेनी है और सभी भारतीयों के बीच हिंदी संपर्क भाषा के रूप में स्वीकृत हो इसके सचेतन प्रयास करने होंगें। कार्यक्रम में प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष डा. एस.ए. मंजुनाथ,महासचिव डा. विनय कुमार यादव,डा. एम ए पीरां, प्रो. ज्योत्सना आर्या सोनी, डा.तृप्ति शर्मा, डा.सुवर्णा, डा. केए सुरेश, डा. गोपाल विशेष रुप से उपस्थित रहे।