पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि चार महीने पहले धंसते शहर के रूप में सुर्खियों में रहे जोशीमठ शहर में अभी तक ऐसे पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा सके हैं जिससे भूधंसाव की समस्या का समाधान हो सके।
लोगों को सुरक्षा के लिए असुरक्षित क्षेत्रों से स्थानांतरित कर दिया गया है, सड़कों में दरारें भर दी गई हैं और असुरक्षित इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया है लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि शहर को और नुकसान से बचाने के लिए दीर्घकालिक उपाय शुरू किए जाने अभी शेष हैं।
जनवरी की शुरुआत में सामने आए भूधंसाव संकट को 100 से अधिक दिन बीत चुके हैं लेकिन पुराने भूस्खलन के मलबे पर बसे इस पहाड़ी शहर में अभी भी दरारें दिखाई देना बंद नहीं हुई हैं।
स्थानीय लोगों ने कहा कि जोशीमठ में मकानों, सड़कों और अन्य सार्वजनिक इमारतों में दिखाई देने वाली दरारें बाद में और चौड़ी तो नहीं हुई हैं लेकिन छिटपुट तौर पर नई दरारें आते रहने से इस समस्या के समाधान में ढिलाई नहीं बरती जा सकती।
शहर में भूधंसाव का मुददा सबसे पहले उठाने वाले जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने पीटीआई- को बताया से कहा, दरारें यहां-वहां अब भी दिख रही हैं।
गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही शुरू हुई इस वर्ष की चारधाम यात्रा में राज्य सरकार बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद कर रही है। बदरीनाथ के कपाट 27 अप्रैल को खुल रहे हैं और उसका प्रवेशद्वार माना जाने वाले जोशीमठ में भी तीर्थयात्रियों का जमावड़ा लगेगा। स्थानीय लोगों को डर है कि तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ से पहाड़ी शहर पर दबाव और बढ़ जाएगा।
हांलांकि, जोशीमठ नगरपालिका अध्यक्ष शैलेन्द्र पंवार मानते हैं कि शहर में स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
उन्होंने कहा कि लोग राहत शिविरों में सुरक्षित हैं जबकि असुरक्षित होटलों और विश्राम गृहों को तोड़ दिया गया है और खतरनाक क्षेत्रों में इमारतों को खाली कराया गया है।
उन्होंने कहा कि प्रभावित लोगों के बीच मुआवजे का वितरण भी किया जा रहा है। हांलांकि, उन्होंने कहा कि अभी खतरा बना हुआ है।
पंवार ने कहा कि अस्थायी राहत शिविरों में रहने वाले लोगों के लिए ढाक में प्रीफेब्रिकेटेड दो शयनकक्ष वाले मकान बनाए गए हैं लेकिन वहां बुनियादी सुविधाओं की कमी और उनके जोशीमठ से 10 किमी दूर होने के कारण वे वहां जाने के इच्छुक नहीं हैं।
अड़तालीस प्रभावित परिवारों को 20 अप्रैल तक पुनर्वास पैकेज के हिस्से के रूप में 11.69 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया है और यह प्रक्रिया अभी भी चल रही है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह की तात्कालिकता के साथ शहर को बचाने के लिए दीर्घकालिक कदम उठाए जाने चाहिए थे, वे जमीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं।
चिपको आंदोलन के प्रणेता चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि जोशीमठ को बचाने के लिए वह प्राथमिकता नहीं दी जा रही है जिसका वह हकदार हैं।उन्होंने कहा कि लोगों का पुनर्वास औरसमस्या की जड़ के समाधान के लिए साथ-साथ कदम उठाए जाने चाहिए।
वर्ष 1976 में जोशीमठ में भू-धंसाव के मुद्दे पर पहली बार चेतावनी देने वाली मिश्रा समिति का हिस्सा रहे भट्ट ने कहा कि पहाड़ी शहर के नीचे धौली और अलकनंदा नदियों द्वारा किए जा रहे मिट्टी के कटाव को रोकना प्राथमिकता पर लिया जाना चाहिए।
भट्ट ने जोशीमठ शहर के ऊपर स्थित स्थानीय तालाबों और अन्य धाराओं से निकलने वाले पानी की उचित निकासी की जरूरत भी बताई ताकि इसे नीचे की नदियों में बहाया जा सके।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्थान जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विशेषज्ञ पैनलों ने विभिन्न कोणों से जोशीमठ भूधंसाव की जांच की है और केंद्र को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। हांलांकि इन रिपोर्टों को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है।
एक पर्यावरण विशेषज्ञ ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि उपग्रह डेटा विश्लेषण और भूभौतिकीय सतह जांच से पता चला है कि जोशीमठ में भूधंसाव का संकट भूमिगत हाइड्रोलॉजिकल असंतुलन के कारण हुआ।
जोशीमठ संकट के चलते 868 घरों में दरारें आईं जिनमें से 181 असुरक्षित क्षेत्र में स्थित हैं। राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 152 परिवारों के 586 लोग महीनों से शहर के आसपास बनाए गए अस्थायी राहत शिविरों में रह रहे हैं।
जोशीमठ की समस्याओं को लेकर आंदोलनरत जोशीमठ संघर्ष समिति ने हांलांकि फिलहाल राज्य सरकार के आश्वासन पर आंदोलन वापस ले लिया है। सती ने कहा कि अगर समिति ने अपनी मांगों को लेकर प्रशासन पर दवाब न बनाया होता तो राज्य सरकार जोशीमठ की समस्याओं के समाधान की दिशा में आगे नहीं बढ़ती।