केरल उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार की धान रसीद शीट (पीआरएस) योजना के तहत किसानों को उनसे खरीदे गए अनाज के लिए भुगतान किया जा रहा है और उन्हें किसी भी बैंक की ओर से कर्जदार के रूप में नहीं माना जा सकता है और इसलिए, उनकी ‘क्रेडिट रेटिंग’ प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
‘क्रेडिट रेटिंग’ आमतौर पर किसी उधारदाता की या किसी विशेष ऋण या वित्तीय देयता के संबंध में साख की मात्रा का आकलन है।
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा कि उच्च न्यायालय के पहले के फैसले में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि पीआरएस योजना के तहत एक किसान को किसी भी तरह से कर्जदार नहीं माना जा सकता है – चाहे ऋण इसके जारी होने से पहले लिया गया हो या बाद में।
अदालत ने कहा कि क्योंकि सरकार को खरीदे गए धान का भुगतान करने के लिए समय की आवश्यकता होती है इसलिए, यह उनकी क्रेडिट रेटिंग को प्रभावित नहीं कर सकता है।
अदालत ने कहा, ‘‘तथ्य यह है कि इसमें संदेह प्रतीत होता है कि क्या बैंकरों का संघ अभी भी उन्हें ऐसा मान रहा है, जिससे उनकी क्रेडिट रेटिंग पर प्रभाव पड़ रहा है।’’
इसने कहा कि बैंक किसानों द्वारा दिये जाने वाले किसी भी दस्तावेज पर जोर नहीं दे सकते हैं और न ही वे उन पर कर्जदार के समान कोई शर्त लगा सकते हैं।
अदालत ने ये टिप्पणियां कुछ किसानों की उस याचिका पर की जिसमें दावा किया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, उनमें से ज्यादातर, साथ ही कई अन्य, जिन्होंने पीआरएस योजना के तहत ऋण लिया है, को अभी भी कर्जदार के रूप में माना जा रहा है और उनकी क्रेडिट रेटिंग भी प्रभावित हुई है।
अदालत की टिप्पणियां इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हाल में एक किसान ने सरकार द्वारा खरीदे गए धान के लिए कथित तौर पर भुगतान नहीं किए जाने के कारण अलाप्पुझा जिले के कुट्टनाड क्षेत्र में आत्महत्या कर ली थी।
आत्महत्या करने वाले किसान प्रसाद ने यह कदम उठाने से पहले एक वीडियो बनाई थी जिसे टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित किया गया था।
वीडियो में प्रसाद को यह कहते हुए देखा जा सकता है कि वह जीवन में एक असफल व्यक्ति हैं और बैंक कम ‘सिबिल स्कोर’ होने के कारण उन्हें ऋण देने से इनकार कर रहे थे।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें धान रसीद शीट (पीआरएस) योजना के तहत फसल कटाई के बाद ऋण के रूप में पिछले सत्र के लिए धान खरीद मूल्य प्राप्त हुआ था और इसे चुकाने में सरकार की विफलता के कारण बैंकों ने इस बार उन्हें ऋण देने से इनकार कर दिया।इस घटना के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने किसानों से खरीदे गए धान के भुगतान में कथित देरी या विफलता को लेकर राज्य में सत्तारूढ़ वाम दल की कड़ी आलोचना की थी।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 22 नवंबर तय की।