तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले के एक छोटे गांव की सात महिलाएं जनवरी 2020 में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने चेन्नई गई। इनमें से एक महिला एम राधा थी जो 21 वर्ष की उम्र की थी और एक किसान की बेटी थी। एम राधा 12वीं कक्षा तक पढ़ी थी और एक ज्वैलरी शोरुम पर सेल्सपर्सन की नौकरी करती है।
एम राधा चेन्नई कई बार रिश्तेदारों से मिलने जा चुकी थी मगर ये पहला मौका था जब वो नौकरी की तलाश में चेन्नई गई थी। उसे एक दोस्त ने बताया कि मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट में अच्छा पैसा मिलेगा और वहां नौकरी के लिए इंटरव्यू होने वाले है। कंपनी की तरफ से ही रहने और खाने की व्यवस्था भी कर्मचारियों के लिए की जाएगी। राधा का कहना था कि मैं बहुत घबरा गई थी और मुझे लगा कि मैं इस नौकरी के लिए उपयुक्त नहीं रहूंगी। शुरुआत में नौकरी के लिए मुझे रिजेक्ट कर दिया गया था मगर एचआर टीम से मिलने के बाद मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं काम कर सकूंगी।
इस तरह नौकरी मिली और कुछ दिनों के बाद चेन्नई के बाहरी इलाके श्रीपेरंबुदूर में एक विशाल, चमचमाती फैक्ट्री में नौकरी करने राधा चली गई। इस फैक्ट्री में श्रमिकों की पंक्तियाँ थीं, जिनमें से अधिकांश राधा जैसी युवा महिलाएँ थीं, जो काम की मेजों पर झुकी हुई थीं, जिन पर छोटे, धातु के हिस्से रखे हुए थे। सभी महिलाएं दुनिया की दूसरी सबसे अमीर तकनीकी कंपनी Apple के iPhone असेंबल कर रही थी, जो दुनिया का सबसे महंगा और प्रतिष्ठित मोबाइल फोन है। बता दें कि यह फैक्ट्री ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन द्वारा चलाई गई थी, जो इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया की सबसे बड़ी अनुबंध निर्माता है। लंबे समय तक, Apple के लिए उसका अधिकांश फ़ोन उत्पादन चीन से बाहर किया गया था। हाल के वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच संबंधों में तनाव आने के कारण, फॉक्सकॉन अपनी विनिर्माण इकाइयों के लिए नए स्थानों की तलाश कर रहा था।
फॉक्सकॉन को भारत के तमिलनाडु में स्थित श्रीपेरंबदूर शहर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट बनाने के लिए पसंद आ रहा था। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो घटकों और रसायनों के निर्माताओं सहित 500 से अधिक कंपनियों का घर, यह पिछले दो दशकों में एक औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। बता दें कि वर्ष 2017 में, फॉक्सकॉन ने श्रीपेरंबुदूर में सिपकोट इंडस्ट्रियल एस्टेट में आईफोन असेंबल करना शुरू किया। पिछले साल, इसने एक मील का पत्थर हासिल किया: भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण केंद्र बनाने की नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षा के अनुरूप, चीन में शिपमेंट शुरू होने के कुछ ही हफ्तों बाद इसने iPhone 15 का निर्माण किया। जानकारी के मुताबिक जब राधा 2020 में फॉक्सकॉन फैक्ट्री में शामिल हुईं, तो इसमें लगभग 15,000 कर्मचारी थे। इस फैक्ट्री में काम करने के लिए 80 प्रतिशत महिलाएं थी।
राधा का कहना है की शुरुआत में काम मुश्किल लगा था मगर समय बीतने के साथ इसकी आदत होने लगी। राधा का कहना है कि वो इस नौकरी की बदौलत अपने भाई की कॉलेज की फीस भरने में सक्षम है और अपने पैरों पर खड़ी भी हुई है।
ग्रामीण महिलाओं के लिए नौकरियाँ पैदा करके और उन्हें कमाई का साधन देकर फॉक्सकॉन एक बदलाव को साकार कर रहा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कृषि अर्थव्यवस्थाओं को औद्योगिक केंद्रों में बदलने के लिए यह आवश्यक है, जिसके पीछे बड़ी लागत लगती है। वह कंपनी के हॉस्टल में पांच अन्य लोगों के साथ एक कमरे में रहती थी जो कारखाने से काफी पास था। बता दें कि वह कंपनी के हॉस्टल में पांच अन्य लोगों के साथ एक कमरे में रहती थी जो कारखाने से असुविधाजनक दूरी पर था। उन्हें निवासियों को परोसा जाने वाला खाना पसंद नहीं आया और उन्होंने पाया कि सुविधाएं अस्वच्छ और खराब रखरखाव वाली थीं। उसने यह भी पाया कि उससे सख्त समय निर्धारण की अपेक्षा की जाती थी। सोमवार से शनिवार तक, निवासियों को फ़ैक्टरी में आने-जाने के अलावा किसी भी चीज़ के लिए छात्रावास छोड़ने की अनुमति नहीं थी। एक अन्य महिला कर्मी ने बताया कि रविवार को महिलाओं को सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच यात्रा करने की इजाजत थी मगर चेन्नई में भारी ट्रैफिक समस्या को देखते हुए जल्दी वापस आती थी। अगर किसी महिला को रविवार के अलावा किसी दिन बाहर जाना होता था तो उन्हें स्पेशल परमिशन लेनी होती थी और परिवार से भी बात करवानी होती थी।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि हॉस्टल में रहने वाली महिलाओं पर लगाई गई बाधाएं उन कई तरीकों में से एक है, जिनसे कंपनी अपने कर्मचारियों पर नियंत्रण रखती है – एक ऐसा पहलू जिसे भारत में आईफोन को बढ़ावा देने के उत्साह में नजरअंदाज किया जा रहा है। सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन्स तमिलनाडु के उप सचिव एस कन्नन का कहना है कि यह मूल रूप से लोगों को जेल में डालने जैसा है। इसलिए कार्यकर्ताओं को कभी किसी से मिलने का मौका नहीं दिया जाता है और उन्हें दुनिया से अलग रखा जाता है।
फॉक्सकॉन कार्यकर्ताओं तक पहुंच पाना वास्तव में एक चुनौती थी क्योंकि जिन छात्रावासों में कर्मचारियों को रखा जाता है वहां कड़ी सुरक्षा होती है। महिलाओं से मिलने के लिए भी लोगों को कड़ा संघर्ष करना पड़ा है।