चुनावी मौसम में नेताओं और राजनीतिक दलों की ओर से जनता को लुभाने के लिए कई तरह के लोक लुभावने वादे किए जाते हैं। लोकतंत्र में यह परंपरा शुरू से रही है। इससे जनता को भी अपनी पसंद के उम्मीदवार और पार्टी चुनने में मदद मिलती है। साथ ही साथ पार्टियों को भी जनता तक पहुंचने में ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता। समय-समय पर चुनावी वादों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कर्नाटक चुनाव के दौरान कांग्रेस की ओर से पांच गारंटी जनता के समक्ष रखे गए थे। कांग्रेस का दावा था कि गारंटियों को हम हर हाल में पहले ही कैबिनेट की बैठक में लागू करेंगे। इसके बाद कांग्रेस को कर्नाटक में जबरदस्त सफलता मिली। अब कांग्रेस अलग-अलग राज्यों में भी गारंटी की बात कर रही है।
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इन सबके बीच कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने एक ऐसा बयान दिया है जिसके बाद से कांग्रेस की गारंटी को लेकर चर्चा तेज हो गई है। दरअसल, डीके शिवाकुमार ने साफ तौर पर कहा है कि कांग्रेस सरकार इस साल ज्यादा विकास नहीं कर सकती। बताया जा रहा है कि शिवकुमार ने अपने विधायकों को विधायक दल की बैठक में इस बात से अवगत कराया। डीके शिवकुमार का मकसद नाराज नेताओं को 5 गारंटियों को लागू करने में आ रही वित्तीय बाधाओं को समझाना था। पिछले दिनों विधायकों की ओर से विकास कार्यों में देरी और मंत्रियों की पहुंच से बाहर होने पर नाराजगी व्यक्त की गई थी। डीके शिवकुमार कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने साथ ही विधायकों से यह भी कह दिया है कि वे 1 साल के लिए अनुदान ना मांगे।
डीके शिवकुमार का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पिछले दिनों 11 विधायकों की तरफ से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को एक पत्र लिखा गया था। इस पत्र के जरिए मंत्रियों की कार्यशैली और विकास कार्यों को लेकर चिंता जताई गई थी। विधायकों ने दावा किया था कि उन्होंने अपने क्षेत्र में विकास को लेकर जनता से जो वादे किए गए थे उस पर अब लोग सवाल पूछ रहे हैं और सरकार की ओर से कोई अनुदान नहीं मिल रही। दूसरी ओर डीके शिवकुमार ने कहा कि हमें इस साल 5 गारंटियों के लिए 40000 करोड रुपए अलग से रखने पड़े हैं। यही कारण है कि हम विकास के लिए ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे। डीके शिवकुमार के पास जल संसाधन और बेंगलुरु शहर विकास मंत्रालय की भी जिम्मेदारी है। हालांकि, उन्होंने कहा कि हम सिंचाई और सार्वजनिक कार्यों में भी विकास के लिए राशि जारी नहीं कर सकते।
कर्नाटक में चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जो 5 गारंटी दिए थे उनमें गृह ज्योति योजना के तहत 200 यूनिट मुफ्त बिजली, हर परिवार की महिला मुखिया को गृह लक्ष्मी योजना के तहत 2000 रुपये की मासिक सहायता, बीपीएल परिवार को अन्न भाग्य योजना के तहत प्रतेक सदस्य को 10 किलोग्राम मुक्त चावल, बेरोजगार स्नातक युवाओं के लिए हर महीने 3000 रुपये और बेरोजगार डिप्लोमा धारकों को 2 साल के लिए 1500 रुपए और सार्वजनिक परिवहन बसों में शक्ति योजना के तहत महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा शामिल है। जाहिर सी बात है कि योजना ऐसी है जहां सरकारी खजाने से भारी पैसा खर्च होता है। कांग्रेस की ओर से इसे लागू करने की शुरुआत भी हो चुकी है। यही कारण है कि कई दूसरी परियोजनाओं में कांग्रेस को कटौती करनी पड़ रही है।
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कर्नाटक की कांग्रेस सरकार इसको लेकर भाजपा पर निशाना साध रही है। सिद्धारमैया हो या फिर डीके शिवकुमार, वर्तमान परिस्थिति के लिए नेताओं की ओर से पिछली भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कांग्रेस नेताओं की ओर से दावा किया जा रहा है कि पिछली सरकार ने दिवालियापन पैदा कर दिया था। जरूरत से ज्यादा टेंडर जारी कर खजाने को खाली कर दिया था। हमें अपने गारंटी को लागू करने के लिए अपना वादा निभाना था। हमने अपने पहले ही साल में वादा निभाया है। इसलिए सभी को धैर्य बनाए रखने की जरूरत है।
पूरे प्रकरण को साधारण शब्दों में समझने की कोशिश करें तो इससे साफ तौर पर पता चलता है कि नेताओं और राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव के दौरान जो वादे किए जाते हैं, उसको लेकर कोई ठोस नीति या रणनीति पर चर्चा नहीं की जाती। नेता चुनाव जीतने के लिए वादा तो कर देते हैं लेकिन यह नहीं समझते कि इसे लागू करने में कितना धन खर्च होगा। यह धन आएगा कहां से और बाकी के कामों पर इसका क्या असर पड़ेगा। राजनीति में वोट के लिए सब जायज है। चुनाव जीतना की नेताओं की प्राथमिकता रहती है। एक ओर जहां कांग्रेस कर्नाटक के बाद अपनी गारंटियों को हर राज्य में चुनाव के दौरान भुनाने की कोशिश कर रही है तो वहीं भाजपा का दावा है कि वह जो कहती है वह करके दिखाते हैं। अब जनता को तय करना है कि उसे मुफ्त की चीजें चाहिए या देश और राज्य का हर क्षेत्र में विकास। यही तो प्रजातंत्र है।