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हरियाणा के थानेसर से वर्तमान विधायक सुभाष सुधा को भारतीय जनता पार्टी ने फिर से विधानसभा का टिकट दिया है। इस घोषणा के बाद से न केवल समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई है बल्कि वे प्रदेश में एक पंजाबी नेता के रूप में भी उभरे हैं। उन्हें प्रत्याशी बनाये जाने के बाद ऐसा माना जा रहा है कि उन्हें मुख्यमंत्री नायब सैनी एवं पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बेहद करीबी और पंजाबी नेता होने का फायदा मिला है। उनको टिकट मिलने के बाद ढोल नगाड़ों से स्वागत किया गया। तो जमकर मिठाई भी बांटी गई। देर रात तक आवास पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा।
देशराज सुधा के घर चार जून 1964 को जन्मे एवं करीब 50 वर्षीय विधायक सुभाष सुधा ने राज्य के ही कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एमए तक की पढ़ाई की और राजनीतिक जीवन कॉलेज स्तर से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ शुरू किया। कॉलेज और विश्वविद्यालय की राजनीति में वे एक छात्र नेता के रूप में हमेशा आगे रहे। उन्होंने नगर पालिका पार्षद का चुनाव 1994 में जीता और 30 वर्ष की आयु में नगर पालिका समिति थानेसर के पहले निर्वाचित अध्यक्ष बने। 2009 में एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ते हुए उन्होंने करीब 18 हजार वोट प्राप्त किए। उन्हें हरियाणा वित्त आयोग के सदस्य के रूप में वर्ष 2013 में नियुक्त किया गया।
स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने के बाद वे इनेलो में शामिल हो गए थे, जिसके बाद वे कांग्रेस में चले गए थे। वर्ष 2014 के चुनावों से पहले वे भाजपा में शामिल हो गए थे और इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने उन्हें मैदान में उतारा था। वे विधायक बने और इसके बाद वर्ष 2019 में फिर थानेसर से ही भाजपा विधायक बनने का उन्हें मौका मिला। विधायक सुभाष सुधा का पूरा परिवार राजनीति में सक्रिय है। जहां वे खुद दो बार विधायक बन रह हैं। तो उनके बेटे साहिल सुधा भाजपा युवा मोर्चा में सक्रिय रहे हैं। कुछ माह पहले ही वे भाजपा युवा जिलाध्यक्ष बनाए गए तो करनाल के प्रभारी भी रह चुके हैं। सुभाष सुधा की पत्नी उमा सुधा कई प्लान से नगर परिषद की चेयरमैन रही हैं और परिषद की वही निवर्तमान चेयरमैन हैं।