बिहार के मुजफ्फरपुर में स्थित बाबासाहेब भीमराव अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय के दो अधिकारियों के बैंक खाते जब्त करने को लेकर नीतीश कुमार सरकार और राजभवन के बीच गतिरोध और बढ़ सकता है, क्योंकि राज्य के शिक्षा विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कथित स्वायत्तता के नाम पर विश्वविद्यालयों में अराजकता कायम नहीं रहने देंगे।
बिहार के शिक्षा विभाग ने 17 अगस्त को अपने अधिकार क्षेत्र के तहत शैक्षणिक संस्थानों के निरीक्षण के दौरान कथित विफलता और विभाग द्वारा बुलाई गई समीक्षा बैठक में भाग नहीं लेने के लिए कुलपति और प्रति कुलपति का वेतन रोक दिया था।
विभाग ने शीर्ष अधिकारियों और विश्वविद्यालय के खातों को फ्रीज करने का भी निर्देश दिया था।
इसके एक दिन बाद, राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंगथु ने संबंधित बैंक को एक पत्र भेजा, जिसमें तत्काल प्रभाव से दोनों अधिकारियों और विश्वविद्यालय के खातों से लेन देन पर लगी रोक हटाने का निर्देश दिया गया।
चोंगथु के पत्र में कहा गया है कि कुलाधिपति (राज्यपाल) ने आदेश दिया है कि शिक्षा विभाग के इन आदेशों को वापस लिया जा सकता है और भविष्य में इस प्रकार के अनुचित कृत्यों से बचा जा सकता है।
हालांकि, यह स्पष्ट करते हुए कि शिक्षा विभाग अपने पहले के आदेश (दिनांक 17 अगस्त) को वापस लेने में असमर्थ है,शिक्षा विभाग के सचिव बैद्यनाथ यादव ने चोंगथु को एक पत्र (दिनांक 21 अगस्त, 2023) में कहा, आपने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि विभाग की हालिया कार्रवाई विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला है। इस संबंध में अनुरोध है कि कृपया यह भी बताएं कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की किस धारा के तहत स्वायत्तता को परिभाषित किया गया है और विश्वविद्यालयों को स्वायत्त बनाया गया है।
शिक्षा विभाग के सचिव ने अपने पत्र में कहा, इसके अलावा, जब राज्य सरकार हजारों करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है, तो वह कथित स्वायत्तता की आड़ में विश्वविद्यालयों में अराजकता की अनुमति नहीं दे सकती है। इसलिए, विभाग अपने पहले के आदेश को वापस लेने में असमर्थ है और विश्वविद्यालयों पर अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए बाध्य है।
उन्होंने अपने पत्र में आगे लिखा, “राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को 4000 करोड़. रुपये वार्षिक आर्थिक सहायता देती है। इसलिए, शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालयों से जवाबदेही मांगने का अधिकार है कि करदाता का पैसा कैसे और कहां खर्च किया जाता है।’’
पत्र में कहा गया है, ‘‘मौजूदा मामले में, उक्त विश्वविद्यालय समय पर परीक्षा आयोजित करने और परिणाम घोषित करने के अपने मौलिक दायित्व को नहीं निभाया है।
इसके अलावा, विश्वविद्यालय के उक्त अधिकारियों ने सभी कॉलेजों, विश्वविद्यालय के विभागों और छात्रावासों का निरीक्षण करने के अपने प्राथमिक दायित्व का भी निर्वहन नहीं किया है।
शिक्षा विभाग के सचिव ने अपने पत्र में लिखा है, आप सहमत होंगे कि राज्य सरकार केवल करदाताओं के प्रति नहीं बल्कि छात्रों और उनके अभिभावकों के प्रति जिम्मेदार और जवाबदेह है और इसलिए, जब कोई विश्वविद्यालय अपने प्राथमिक उद्देश्य में विफल रहता है, तो राज्य सरकार हस्तक्षेप करने, और विश्वविद्यालयों की बैठकें बुलाने, रिपोर्ट मांगने के लिए बाध्य है।