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Supreme Court में राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर दिया सरकार ने बयान, कहा जानकारी हासिल करना जनता का मौलिक अधिकार नहीं

राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदू को लेकर सुप्रीम कोर्ट में खास सुनवाई हो रही है। इस मामले में इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था को चुनौती दिए जाने पर सुनवाई हो रही है। अटॉर्नी जनरल अरे वेंकट रमन ने सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। इस मामले पर केंद्र सरकार की वकील का कहना है कि किसी राजनीतिक दल को मिलने वाले चांदी की जानकारी हासिल करना नागरिकों का मौलिक अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि चांदी की जानकारी लोगों को नहीं मिल पाती सिर्फ इस आधार पर इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था को खारिज नहीं किया जा सकता है।
 
बता दे कि इस मामले पर चीफ जस्टिस डी य चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ 31 अक्टूबर को सुनवाई शुरू करेगी। पांच जजों की संविधान पीठ की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से इस मामले पर राय मांगी थी। इस मामले पर अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चांदी के लिए बनाई गई इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था एक नीतिगत विषय है।
 
सुप्रीम कोर्ट के दखल को लेकर यह भी कहा गया कि कोर्ट सिर्फ तभी दखल देता है जब नागरिकों के मौलिक या कानूनी अधिकारों का उल्लंघन होता है। हालांकि इलेक्टरल बॉन्ड की जानकारी पाना किसी भी स्थिति में जनता का अधिकार नहीं है। बल्कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(c) के तहत संगठन बनाना और उसे चलाना मौलिक अधिकार है। संविधान के आदेश के तहत यह अधिकार राजनीतिक दलों को भी मिलता है। 
 
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अपने आपराधिक रिकार्ड की जानकारी उम्मीदवार चुनावी हलफनामे में उपलब्ध कराता है। फिलहाल जनता को ऐसा कोई अधिकार नहीं दिया गया है कि राजनीतिक चांदी की जानकारी उन्हें उपलब्ध कराई जाए।
 
इस मामले में चुनाव आयोग भी अपनी राय पहले दे चुका है। इलेक्टरल बॉन्ड व्यवस्था को लेकर चुनाव आयोग ने कहा था कि इसमें पारदर्शिता नहीं है। चुनाव आयोग ने यह भी कहा था कि यह काले धन को बढ़ावा देने का जरिया हो सकता है। हालांकि सरकार ने यह भी दावा किया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से राजनीतिक चांदी मिलने की प्रक्रिया में काफी हद तक पारदर्शिता देखने को मिल रही है। 
 
जाने क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड
केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में राजनीतिक चांदी की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से चुनावी बांड का कानून तैयार किया था। इसके तहत स्टेट बैंक के कुछ ब्रांच से हर 3 महीने पर बॉन्ड खरीदने और उसकी राजनीतिक पार्टी को चंदा देने का प्रावधान किया गया था। चंदा बंद के जरिए देने के कारण कैश दिए जाने में कमी आई थी। इसका मूल उद्देश्य था कि काश केसरिया चंदा काम देने से परियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता देखने को मिलेगी।

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