ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने बृहस्पतिवार को कोयला आयात की समयसीमा अगले साल जून तक बढ़ाने के बिजली मंत्रालय के आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है।
बिजली मंत्रालय ने 23 अक्टूबर को जारी अधिसूचना में कहा है कि बिजली की मांग में वृद्धि और अपर्याप्त घरेलू कोयले की आपूर्ति के बीच आयातित कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों को 30 जून, 2024 तक पूरी क्षमता पर काम करना होगा।
पहले इसकी समयसीमा 31 अक्टूबर, 2023 तक की थी। सरकार ने इस साल मार्च में आईएसबी (आयातित-कोयला आधारित) संयंत्रों को बिजली अधिनियम की धारा 11 के तहत पहला निर्देश जारी किया था।
बिजली इंजीनियरों के राष्ट्रीय संगठन एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा कि बिजली मंत्रालय के इस निर्देश को वापस लिया जाए और कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में अधिक किफायती स्वदेशी कोयले का उपयोग किया जाए क्योंकि स्वदेशी कोयले की कोई कमी नहीं है।
इस निकाय ने कहा कि यदि किसी भी कोयले का आयात किया जाना है, तो मंत्रालय को उस कोयले की अतिरिक्त लागत वहन करनी चाहिए क्योंकि भारतीय कोयले का अधिक किफायती विकल्प पहले से ही देश भर के ताप-विद्युत संयंत्रों के पास उपलब्ध था।
एआईपीईएफ ने यह आरोप भी लगाया गया कि यह कदम बिजली उपभोक्ताओं पर आयात के कारण बढ़ी हुई लागत का वित्तीय बोझ डालकर कोयला व्यापार और कोयला आयात में लगी कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने का एक स्पष्ट प्रयास है।
एआईपीईएफ ने कोयला मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है और पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष कोयले के स्टॉक और आपूर्ति की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। ऐसी स्थिति में आयातित कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को जून, 2024 तक पूरी क्षमता से चलने का निर्देश देने का कोई औचित्य नहीं है।
बिजली मंत्रालय ने घरेलू कोयले पर आधारित बिजली उत्पादक संयंत्रों को मिश्रण के लिए आयातित कोयले की सीमा चार प्रतिशत से बढ़ाकर छह प्रतिशत करने की एक सलाह जारी की है।