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वाराणसी । वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू पक्ष ने स्थानीय अदालत के समक्ष कहा कि पुरातात्विक चीज़ों की खोज में एएसआई को महारत हासिल है, लिहाज़ा मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे खुदाई कराके ज्योतिर्लिंग के स्थान का सर्वेक्षण कराना चाहिए। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने बताया कि दीवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) जुगल शंभू ने दलीलें सुनने के बाद मामले की सुनवाई की अगली तारीख 19 अक्टूबर तय की है। अधिवक्ता यादव ने कहा, हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने न्यायाधीश शंभू के समक्ष अपनी दलील में कहा कि पांच महिला वादियों के मामले में एएसआई सर्वेक्षण की कार्रवाई पहले भी की जा चुकी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को खोदाई कार्य में विशेषज्ञता हासिल है।
उन्होंने दलील देते हुए कहा कि वाराणसी में सारनाथ और राजघाट की खोदाई एएसआई ने ही की है तथा यहां तक कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई भी एएसआई ने ही की थी। यादव ने कहा, इसी आधार पर ज्ञानवापी की भी 4×4 फुट खोदाई की जानी चाहिए और ज्ञानवापी के केंद्रीय गुंबद के नीचे ज्योतिर्लिंग के स्थान का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत ने इस मामले में सुनवाई के लिए 19 अक्टूबर की तारीख तय की है। उनके मुताबिक, उम्मीद है कि अगली सुनवाई में मुस्लिम पक्ष अदालत के समक्ष अपनी दलील पेश करेगा। पिछली आठ अक्टूबर को मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने कथित तौर पर अदालत के समक्ष दलील दी थी कि जब हिंदू पक्ष ने मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में आगे बढ़ाने की अपील की है तो निचली अदालत में इस मामले पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि जब ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वेक्षण एक बार पहले हो चुका है तो दूसरा सर्वेक्षण कराने का कोई औचित्य नहीं है। मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने यह भी कहा था कि सर्वेक्षण के लिए मस्जिद परिसर में गड्ढा खोदना किसी भी तरह से व्यावहारिक नहीं है और इससे मस्जिद को नुकसान हो सकता है। इससे पहले, हिंदू पक्ष ने तर्क दिया था कि ज्ञानवापी परिसर में स्थित मस्जिद के गुंबद के नीचे ज्योतिर्लिंग का मूल स्थान मौजूद था। हिंदू पक्ष ने यह भी कहा था कि अर्घे से भौगोलिक जल निरंतर बहता था जो ज्ञानवापी कुंड में एकत्र होता था। इस तीर्थ को ज्ञानोदय तीर्थ भी माना जाता है। हिंदू पक्ष ने यह भी कहा था कि ज्ञानोदय तीर्थ से प्राप्त शिवलिंग की भी जांच की जानी चाहिये ताकि यह पता लगाया जाए कि वह शिवलिंग है या फौव्वारा। मुस्लिम पक्ष उसे मुगलकालीन फौव्वारा करार दे रहा है।