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ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने कहा-कोई भी चीज तश्तरी में सजाकर नहीं देगी, कानूनी लड़ाई लड़ेगी

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व मामले में वर्ष 1991 के सिविल मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किये जाने के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने के स्पष्ट संकेत देते हुए कहा कि वह कोई भी चीज तश्तरी में सजाकर नहीं देगी और आखिरी सांस तक कानूनी लड़ाई लड़ेगी।

अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव सैयद मुहम्मद यासीन ने पीटीआई— से फोन पर बातचीत में उच्च न्यायालय के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिये जाने की सम्भावना के सवाल पर कहा, हमारे पास आदेश आ गया है लेकिन अभी हम उसका अध्ययन करेंगे और कमेटी की बैठक में तय करेंगे कि आगे हमें क्या करना है। हम बुधवार शाम तक किसी निर्णय पर पहुंच जाएंगे।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा, हम यह मानकर चल रहे हैं कि यह फैसला हुआ है, इंसाफ नहीं हुआ है। मगर इतना समझ लीजिये कि हम तश्तरी में सजाकर नहीं देने जा रहे हैं। हम आखिरी दम तक आखिरी सांस तक कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व मामले में 1991 के सिविल मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा कि निचली अदालत के समक्ष मुकदमा कायम रखने योग्य है।

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने अपने फैसले में कहा कि वर्ष 1991 में जिला अदालत के समक्ष दायर मुकदमा कायम रखने योग्य है और यह पूजा स्थल अधिनियम—1991 के तहत वर्जित नहीं है।

अदालत ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह मुकदमे पर तेजी से सुनवाई करे और छह महीने के अंदर फैसला करे।

न्यायालय ने आगे कहा, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को निचली अदालत के समक्ष अपनी रिपोर्ट जमा करनी है। अगर जरूरी हुआ तो निचली अदालत एएसआई को आगे के सर्वेक्षण के लिए निर्देशित कर सकती है।

वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने का अधिकार मांगने वालेकुछ हिंदू उपासकों ने यह मुकदमा दायर किया था। वाराणसी अदालत के समक्ष लंबित इस मुकदमे में ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर एक प्राचीन मंदिर को बहाल करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि मस्जिद दरअसल मंदिर का हिस्सा है।

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