कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के उद्देश्य से बनाए गए पीओएसएच अधिनियम पर हाल ही में जोर देते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में कार्रवाई इरादे से अधिक मायने रखती है। जस्टिस आरएन मंजुला ने कहा कि कार्यस्थल पर रूखा व्यवहार यौन उत्पीड़न है, भले ही उत्पीड़क का इरादा कुछ भी हो। इसमें यहां तक कहा गया कि हाथ मिलाने प रजोर देने को जबरदस्ती और उत्पीड़न के रूप में देखा जा सकता है। न्यायमूर्ति आरएन मंजुला ने कहा कि कार्यस्थल पर अवांछित व्यवहार यौन उत्पीड़न है, भले ही उत्पीड़नकर्ता का इरादा कुछ भी हो।
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न्यायधीश ने कहा कि अगर किसी चीज को अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया जाता है, और यह अनुचित है और अन्य लिंग, अर्थात् महिलाओं को प्रभावित करने वाले अवांछित व्यवहार के रूप में महसूस किया जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह यौन उत्पीड़न की परिभाषा के अंतर्गत आएगा।
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न्यायमूर्ति मंजुला ने चेन्नई श्रम न्यायालय के उस आदेश को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां की, जिसने एचसीएल टेक्नोलॉजीज कर्मचारी द्वारा एक आंतरिक समिति के निष्कर्षों को पलट दिया था। रिपोर्ट के अनुसार जिन तीन महिलाओं की वह देखरेख करते थे, उन्होंने उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी। गौरतलब है कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न [रोकथाम, निषेध और निवारण] अधिनियम या पीओएसएच अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों को रोकता है और उनका समाधान करता है। इसे 9 दिसंबर 2013 को लागू किया गया था।