उत्तर प्रदेश में हिंदू शादी को लेकर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने धर्म गुरु द्वारा की गई धोखाधड़ी के कारण 18 वर्षीय युवती से की गई शादी को अमान्य घोषित कर दिया है। कोर्ट ने साफतौर पर कहा है कि अगर शादी हिंदू रीति रिवाज से नहीं हुई है तो उस शादी को मैरिज रजिस्ट्रार द्वारा जारी किए गए मैरिज सर्टिफिकेट या आर्य समाज मंदिर के सर्टिफिकेट से भी मान्य नहीं माना जा सकता है। ऐसी शादी का महत्व नहीं रह जाता और सर्टिफिकेट इसे मान्य नहीं साबित कर सकता।
बता दें कि परिवार कोर्ट में लखनऊ में एक मामले को चुनौती दी गई है। इसमें चुनौती देने वाली युवती ने दलील दी थी कि प्रतिवादी एक धर्मगुरु है। युवती की मां और मौसी धर्मगुरु की अनुयायी थी। मामला वर्ष 2009 का है जब चुनौती देने वाली युवती और उसकी मां को धर्मगुरु ने अपने पास बुलाया। दोनों से धर्मगुरु ने कागजात पर साइन करवाए और कहा कि वो उन्हें अपने धार्मिक संस्थान का नियमित सदस्य बनाना चाहता है। इसके बाद उसने उसी वर्ष तीन अगस्त 2009 को भी रजिस्ट्रार ऑफिस में दोनों को बुलाकर उनके साइन करवाए।
इसके कुछ दिन बाद धर्मगुरु ने युवती के पिता को बताया कि उसकी शादी पांच जुलाई को आर्य समाज मंदिर में युवती के साथ हुई है। तीन अगस्त को उन्होंने शादी रजिस्टर भी करवाई है। हालांकि युवती ने दावा किया की सभी दस्तावेज धोखे से बनवाए गए है। इसका विरोध भी किया गया। दोनों पक्षों की दलील सामने आने के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शादी को सिद्ध करने का भार प्रतिवादी पर था। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा सात के तहत हिंदू रीति से वो शादी को साबित नहीं कर सका। ऐसे में शादी को संपन्न नहीं माना जा सकता है।