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उच्च न्यायालय का बालाजी मामले में खंडित फैसला; शीर्ष अदालत ने कहा कि नई पीठ शीघ्र निर्णय ले

 मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के गिरफ्तार मंत्री वी सेंथिल बालाजी की कथित अवैध हिरासत से जुड़े मामले में मंगलवार को एक खंडित फैसला सुनाया, वहीं उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह उनकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को “जल्द से जल्द” तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखे।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ‘रुपये के बदले नौकरी देने’ से जुड़े प्रकरण में बालाजी को धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत पिछले महीने गिरफ्तार किया था।
खंडित फैसला सुनाने वाली मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. निशा बानू और न्यायमूर्ति डी. भरत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने रजिस्ट्री को विषय को एक तीसरे न्यायाधीश के पास भेजने के लिए इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से यह भी कहा कि बालाजी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर नयी पीठ द्वारा शीघ्रता से निर्णय लिया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति निशा बानू ने बालाजी (47) की पत्नी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार कर ली, जबकि न्यायमूर्ति चक्रवर्ती ने इसे खारिज कर दिया।
याचिका स्वीकार किये जाने योग्य होने का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति बानू ने पुलिस को बालाजी को छूट देने का निर्देश दिया क्योंकि वह बगैर विभाग वाले मंत्री हैं।
इससे असहमति जताते हुए न्यायमूर्ति चक्रवती ने अपने आदेश में चार सवाल रखे और उनके जवाब दिये।
शीर्ष न्यायालय में, सुनवाई की शुरुआत में प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत की पीठ से कहा कि चूंकि उच्च न्यायालय ने खंडित फैसला सुनाया है, इसलिए मामले को अंतिम फैसले के लिए शीर्ष न्यायालय में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
मेहता ने कहा, “मेरी मुश्किल यह है कि हर दिन सबूतों से छेड़छाड़ होगी। यह विशुद्ध रूप से कानून का सवाल है और कोई भी तथ्य विवादित नहीं है। एकमात्र सवाल यह है कि क्या न्यायिक हिरासत पर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की जा सकती है।”

उन्होंने कहा कि यह प्रभावशाली व्यक्ति का मामला है और अगर नुकसान होता है तो इसकी भरपाई नहीं हो पाएगी।
शीर्ष न्यायालय में बालाजी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि एक खंडपीठ के खंडित फैसले के बाद, मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखा गया है और उन्होंने मेहता के अनुरोध का विरोध किया।
उन्होंने पूछा कि उच्च न्यायालय को नजरंदाज कैसे किया जा सकता है? उन्होंने कहा, “किसी मुद्दे पर दो न्यायाधीशों के बीच मतभेद है और स्वाभाविक परिणाम यह है कि मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास जाएगा।”
सिब्बल ने आगे कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में अदालत इस मामले को शीर्ष अदालत में लाने का निर्देश नहीं दे सकती।
मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी। पीठ ने कहा , “यह कानून का सवाल है।
बालाजी को राहत देते हुए शीर्ष न्यायालय ने 21 जून को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के आग्रह के बावजूद उन्हें इलाज के लिए एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित करने की अनुमति देने के, मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

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