हमने बचपन से हमेशा पढ़ा है कि एकजुटता में बल होता है। राजनीति में भी एकजुटता की वजह से कई पार्टियों की किस्मत अच्छी हो जाती है। वहीं फुट की वजह से पार्टियों को नुकसान का सामना करना पड़ता है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारी में जुट गए हैं। इन सब के बीच हरियाणा के सबसे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली परिवारों में से एक चौटाला परिवार की राजनीतिक इतिहास जबरदस्त रहा है। इंडियन नेशनल लोकदल परिवार की पार्टी रही है। हालांकि परिवार में फूट के बाद पार्टी में भी बिखराव हुआ। आईएनएलडी का नेतृत्व 89 वर्षीय ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय चौटाला कर रहे हैं। जबकि इनेलो से अलग होकर बनी जननायक जनता पार्टी की कमान ओमप्रकाश के बड़े बेटे अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला के हाथों में है।
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चौटाला परिवार की राजनीतिक इतिहास को समझने की कोशिश करें तो कहीं ना कहीं देवीलाल का नाम सामने आता है। देवीलाल देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और जाट नेता रहे हैं। वर्तमान में इनेलो के संरक्षक और देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश सात बार विधायक रह चुके हैं और पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री की कमान संभाली है। अभय और अजय चौटाला का भी राजनीतिक इतिहास काफी पुराना है। लेकिन वर्तमान में देखें तो इनेलो और जेजेपी दोनों ही राज्य में अपनी राजनीतिक विरासत को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। भाजपा के उदय के साथ ही राज्य में इनेलो कमजोर पड़ती गयी। 2019 के चुनाव में दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में जननायक जनता पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया। जबकि इनेलो तब सिर्फ एक सीट ही जीत सकी थी। वोट प्रतिशत में भी बड़ी गिरावट हुई थी।
जेजेपी के शानदार प्रदर्शन के बाद और राज्य में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में वहां गठबंधन की सरकार बनती है। मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में बनी सरकार में दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री बनते हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने सभी को हैरान करते हुए जेजेपी से अपना गठबंधन तोड़ लिया और खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि उसके बाद से जेजेपी भी लगातार कमजोर होती दिखाई दे रही है। पार्टी के पास 10 विधायक थे। लेकिन वर्तमान में सिर्फ तीन विधायक ही बचे हुए हैं। पार्टी के बाकी विधायक या तो भाजपा में या कांग्रेस में शामिल होने की कोशिश में है या हो चुके हैं।
दुष्यंत का दावा है कि इन नेताओं के जाने से वे बेफिक्र हैं। वे कहते हैं, ”जेजेपी चौधरी देवीलाल की नर्सरी है। लोग यहां आते हैं, प्रशिक्षण लेते हैं, पद संभालते हैं और फिर संघर्ष के समय चले जाते हैं।” पिछली बार चौटाला परिवार ने आईएनएलडी के तत्वावधान में एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और हरियाणा चुनाव में प्रभाव डाला था। यह 2009 का चुनाव था, जब पार्टी को 25.79% वोट शेयर के साथ 31 सीटें मिली थीं। उस समय ओम प्रकाश विपक्ष के नेता थे, जबकि 40 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन से फिर से सरकार बनाई थी। तब भाजपा सिर्फ 4 सीटें जीत पाई थी। 2014 में जब भाजपा नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र में सत्ता में आई तो पार्टी ने हरियाणा में भी इतिहास रच दिया, जहां उसने 47 सीटें जीतकर राज्य में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
2014 के विधानसभा चुनावों में भी चौटाला परिवार ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और इनेलो ने 24.1% वोट शेयर के साथ 19 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को केवल 15 सीटें मिलीं। जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल गए ओम प्रकाश की अनुपस्थिति में अभय को एलओपी बनाया गया था। उपमुख्यमंत्री के रूप में दुष्यंत के लगभग साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान, जेजेपी को उम्मीद थी कि वह राज्य में अपना समर्थन आधार बढ़ाने में सक्षम होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर चले किसान आंदोलन के दौरान उन्हें हरियाणा के लोगों के एक वर्ग और अपनी ही पार्टी के नेताओं और विधायकों के गुस्से का सामना करना पड़ा। जेजेपी ने नवंबर 2023 के विधानसभा चुनावों में राजस्थान में भी 19 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से सभी की जमानत जब्त हो गई।
2024 के लोकसभा चुनावों में, जेजेपी ने हरियाणा की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि इनेलो ने उनमें से सात सीटों पर चुनाव लड़ा। दोनों ही पार्टियों को एक भी सीट नहीं मिली, भाजपा और कांग्रेस ने पांच-पांच सीटें जीतीं। राज्य में न तो जेजेपी और न ही आईएनएलडी किसी विधानसभा क्षेत्र में आगे चल पाई। जाट बहुल हिसार सीट पर कांग्रेस के जय प्रकाश, जो कभी देवीलाल के समर्थक थे, ने चौटाला परिवार के तीन सदस्यों – देवीलाल के बेटे रणजीत सिंह (भाजपा) और ओम प्रकाश की पुत्रवधू सुनैना चौटाला (आईएनएलडी) और नैना चौटाला (जेजेपी) को हराया।
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हालांकि चौटाला परिवार के कई वफादारों का अब भी मानना है कि अगर इनेलो और जेजेपी दोनों एक हो जाएं और एकजुट होकर चुनाव लड़ें तो वे फिर से राज्य की राजनीति में वापसी कर सकते हैं। लेकिन, उनके बीच की खटास को देखते हुए, इस समय ऐसा कोई परिदृश्य उभरने की संभावना बहुत कम है। रविवार को एक एक्स पोस्ट में, अभय ने कहा: “हरियाणा का किंगब्रेकर… ट्रस्टब्रेकर की तरह! अपने दादा और किसानों का भरोसा तोड़ने से लेकर अब अपने ही विधायकों का भरोसा तोड़ने तक का दुष्यंत का सफर इतिहास की किताबों में दर्ज हो जाएगा। क्या वह कभी रुकेगा?”