केंद्र सरकार ने मणिपुर में जातीय हिंसा की जांच के लिए 4 जून को गौहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग नियुक्त किया, जिसने अब तक 98 लोगों की जान ले ली है और 35,000 से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया है।
जांच के लिए तीन सदस्यीय आयोग
मणिपुर हिंसा की जांच अब तीन सदस्यीय आयोग करेगा। केंद्र सरकार ने इस संबंध में एक आयोग का गठन कर दिया है। इस आयोग की अध्यक्षता गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अजय लांबा करेंगे। केंद्र सरकार ने मणिपुर में जातीय हिंसा की जांच के लिए 4 जून को आयोग का गठन किया है। इस हिंसा में अब तक 98 लोगों की जान जा चुकी है। इस हिंसा में 35 हजार से अधिक लोग विस्थापित किए गए है।
गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा रविवार को जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि “आयोग जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेगा, लेकिन अपनी पहली बैठक की तारीख से छह महीने के बाद नहीं”। इसका मुख्यालय इंफाल में होगा। आयोग के अन्य दो सदस्य असम-मेघालय कैडर के 1982 बैच के सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी हिमांशु शेखर दास और तेलंगाना कैडर के 1986 बैच के सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी आलोक प्रभाकर हैं।
अधिसूचना में कहा गया है कि 3 मई को मणिपुर राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी और हिंसा के परिणामस्वरूप, कई निवासियों की जान चली गई, कई घायल हो गए, उनके घर और संपत्तियां जल गईं और आगजनी के कारण , कई बेघर हो गए।
गृहमंत्री ने की अपील
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को मणिपुर के लोगों से राष्ट्रीय राजमार्ग-दो से नाकेबंदी हटाने की अपील की, ताकि राज्य में भोजन, दवा और ईंधन जैसी बुनियादी और जरूरी चीजें पहुंच सकें। शाह ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर नागरिक समाज के सदस्यों से इस संदर्भ में पहल करने को कहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मणिपुर के लोगों से मेरी विनम्र अपील है कि इंफाल-दीमापुर, राष्ट्रीय राजमार्ग-दो पर लगाई गई नाकेबंदी को हटा लें, ताकि भोजन, दवाइयां, पेट्रोल/डीजल और अन्य आवश्यक वस्तुएं लोगों तक पहुंच सकें।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह भी अनुरोध करता हूं कि नागरिक संगठन आम सहमति बनाने के लिए जरूरी कदम उठाएं।’’ शाह ने ट्वीट में आगे कहा, ‘‘हम सब मिलकर ही इस खूबसूरत राज्य में सामान्य स्थिति बहाल कर सकते हैं।’’ मेइती समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क उठी।