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हरियाणा विधानसभा चुनावों में किसान आंदोलन का दिखाई देगा असर, परिणामों को लेकर BJP चिंतित

विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा में अपना आंदोलन जारी रखते हुए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रति किसान समूहों ने एक बार फिर अपना विरोध जताया है। तो वहीं, किसान समूह इन मुद्दों व लंबित मांगो के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एकबार फिर महा पंचायत आयोजित करने की योजना बना रहे हैं। 2020-21 में रद्द हो चुके कृषि कानूनों के खिलाफ हरियाणा किसानों के विरोध प्रदर्शनों का एक प्रमुख केंद्र था। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले यह आंदोलन आयोजित किया गया था। बाद में यह कई समूह में विभाजन हो गया और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) का गठन किया गया।
कुछ दिन पहले हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा था कि किसान शब्द अनेक प्रकार के लोगों को अपने आप में समाहित करता है। प्रदर्शनकारी किसानों का एक विशिष्ट वर्ग है, जिनकी अपनी विचारधारा है। लेकिन, बीजेपी एकमात्र पार्टी है, जिसने किसानों के कल्याण के लिए काम किया है। किसान सम्मान निधि योजना से पूरे देश में किसानों को लाभ हुआ है, चाहे वे किसी भी जाति, क्षेत्र से आते हों या किसी भी धर्म को मानते हों। मोहन लाल बड़ौली के अनुसार, किसानों के कल्याण के लिए सोचना और काम करना हमारी जिम्मेदारी है। हम पीएम मोदी के नारे सबका साथ सबका विकास सबका प्रयास और सबका विश्वास पर चल रहे हैं। हमारी सरकार किसानों के साथ बातचीत को लेकर हमेशा तैयार है।
किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम), एसकेएम (गैर राजनीतिक) के साथ मिलकर पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी सीमा पर जारी विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है। ये दोनों ही किसान समूह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के विरोधी हैं और उनकी मांगें एक जैसी ही हैं। एसकेएम (गैर राजनीतिक) के किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि किसानों के विरोध प्रदर्शन का असर हाल के लोकसभा चुनाव में भी दिखाई दिया था और जो विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। उनसे ग्रामीण इलाकों के लोगों को यह एहसास हुआ है कि उन्हें अपने मुद्दों के आधार पर वोट देना चाहिए। 
उन्होंने कहा, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना जैसे मुद्दे ग्रामीण हरियाणा में प्रमुख कारक हैं।’ कोहाड़ ने यह भी कहा कि अग्निवीर योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) के फंड में कटौती जैसे मुद्दे भी राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रमुख हैं। शंभू और खनौरी बॉर्डर पर धरना जारी रहने के बीच कोहाड़ ने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर किए गए ‘अत्याचार’ को भुलाया नहीं गया है। संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल अखिल भारतीय किसान सभा, हरियाणा के सचिव सुमित सिंह ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आगामी चुनाव में किसानों के मुद्दे हावी रहेंगे। 
भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के प्रमुख और संयुक्त संघर्ष पार्टी के संस्थापक किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी कहा कि लोग भाजपा के खिलाफ हैं, लेकिन उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ वोट बंट सकते हैं। चढ़ूनी ने कहा, ‘कांग्रेस की गलती की वजह से ऐसा हो सकता है। उसे हमारे साथ गठबंधन करना चाहिए था।’ उन्होंने कहा, ‘हमने एक राजनीतिक पार्टी बनाई है और हम किसानों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारी मांगों को स्वीकार करवाने के लिए सरकार में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी महत्वपूर्ण है।’ हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए एक अक्टूबर को मतदान होगा और परिणाम चार अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।

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