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जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस समेत कई दलों ने कर्मचारियों को चेतावनी देने के लिए प्रशासन की आलोचना की

कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) समेत कई राजनीतिक दलों ने सरकारी कर्मचारियों को विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होने की चेतावनी देने के लिए शनिवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन की आलोचना करते हुए इस आदेश को वापस लेने की मांग भी की।
राजनीतिक दलों ने प्रदर्शनों और हड़तालों पर लगी रोक और चेतावनी को अन्याय, अपमानजनक और कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला करार दिया।
नेकां के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि यह कर्मचारियों के साथ अन्याय है और साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से इस मुद्दे पर गौर करने की अपील करते हुए कहा कि कर्मचारियों को उनके अधिकार दिए जाने चाहिए।

फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘मुझे लगता है, ये उनके साथ अन्याय है। नेकां उनके साथ खड़ी है और हम सरकार से अपील करते हैं कि उन्हें उनका मूल अधिकार दिया जाए। अगर सरकार चलाने वाले ही काम नहीं करेंगे तो सरकार कैसे चलेगी? मैं उपराज्यपाल से अपील करता हूं कि वह इस पर ध्यान दें और कर्मचारियों की मुश्किलें दूर करने की कोशिश करें।’’
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इस आदेश को अपमानजनक बताते हुए कहा कि इससे तानाशाही मानसिकता की बू आती है।
महबूबा मुफ्ती ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘सरकारी कर्मचारियों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर उपराज्यपाल प्रशासन का पूर्ण प्रतिबंध तानाशाही मानसिकता का प्रतीक है। लोकतंत्र में विरोध की आवाज को दबाना अस्वीकार्य है।

उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने और अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करने की धमकी देना बेहद क्रूर है।’’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता एम वाई तारिगामी ने कहा कि यह आदेश कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों पर हमले के अलावा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के सम्मेलनों का उल्लंघन है, जिसमें भारत एक सदस्य है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) ने कहा कि यह असहमति की आवाज और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने का एक बेशर्म प्रयास है।
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने कहा कि यह आदेश शर्मनाक है।
सज्जाद लोन ने कहा, ‘‘असहमति को इस तरह से दबाना शर्मनाक है। देश में कहीं और ऐसा निर्देश नहीं है, लेकिन उन्होंने (सरकार ने) इसे (जम्मू-कश्मीर) एक प्रयोगशाला बना दिया है।’’

इन राजनीतिक दलों ने प्रशासन के इस कदम को केंद्र शासित प्रदेश में असहमति की हर आवाज को कुचलने की कोशिश करार दिया।
उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने शुक्रवार को सरकारी कर्मचारियों को उनके प्रस्तावित आंदोलन को आगे बढ़ाने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि इस तरह के कृत्यों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
जम्मू-कश्मीर सरकार कर्मचारी (आचरण) नियम, 1971 यह स्पष्ट करता है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अपनी सेवा या किसी अन्य सरकारी कर्मचारी की सेवा से संबंधित किसी भी मामले के सिलसिले में किसी भी तरह से हड़ताल का सहारा नहीं लेगा या किसी भी तरह से उकसाएगा नहीं।
प्रशासन ने अपने आदेश में कहा, ‘‘कानून का उपरोक्त प्रावधान केवल घोषणात्मक प्रकृति का नहीं है और ऐसे किसी भी कर्मचारी के ऐसे कृत्यों में लिप्त पाए जाने की स्थिति में निश्चित रूप से इसके परिणाम होंगे।

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प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मीडिया प्रभारी रवींदर शर्मा ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘‘केंद्र सरकार के अधीन प्रशासन असहमति की हर आवाज को कुचलना चाहता है, जो बेहद खतरनाक, कर्मचारी विरोधी और जनविरोधी है।’’
उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को उनके वास्तविक मुद्दों को लेकर प्रशासन की विफलता के खिलाफ विरोध करने का मौलिक अधिकार है।
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस सरकारी कर्मचारियों सहित प्रत्येक नागरिक के लोकतांत्रिक और मौलिक अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा और समर्थन करती है और इस आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग करती है।’’
जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के राज्य सचिव मुंतजिर मोहिउद्दीन ने इस आदेश पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है।

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