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कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों में मंत्री रहे हैं Rao Inderjit Singh, मोदी 3.0 में मिला दो मंत्रालयों का स्वतंत्र प्रभार

एनडीए सरकार की मोदी कैबिनेट में लगातार तीसरी बार जगह बनाने वाले गुरुग्राम से सांसद राव इंद्रजीत सिंह को दो मंत्रालयों का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। तो वहीं तीसरे मंत्रालय में उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया है। बीते 5 सालों से वे दो मंत्रालयों का कार्यभार देख रहे थे। जबकि इस बार उन्हें संस्कृति मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। इंद्रजीत सिंह को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय और योजना मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है।
राव इंद्रजीत सिंह का जन्म 1950 में हरियाणा के रेवाड़ी जिले के रामपुरा गांव में एक जमींदार परिवार में हुआ था और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा लॉरेंस स्कूल – सनावर, शिमला हिल्स से की थी। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से बीए (ऑनर्स) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से कानून (एलएलबी) की डिग्री हासिल की। इंद्रजीत सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार से हैं और ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक राव तुला राम के परपोते हैं। उनके पिता एक सैनिक थे और हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री थे, जो कृषक समुदाय से थे। सिंह एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अपने पैतृक जिले रेवाड़ी में कई शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं और ट्रस्ट भी चलाते हैं।
इंद्रजीत सिंह ने अपनी सियासी पारी का आगाज 1977 में जाटूसाना विधानसभा से किया था। पिता राव बीरेंद्र सिंह की परंपरागत सीट रही जाटूसान में बड़े राव ने उन्हें वहां से अपना राजनीतिक वारिस बनाकर मैदान में उतारा था। बड़े राव के फैसले पर जनता ने अपनी मोहर लगाते हुए पहले ही चुनाव में राव इंद्रजीत की सियासत में धमाकेदार एंट्री कारवाई। 1977 में चंडीगढ़ पहुंचने के बाद राव इंद्रजीत सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यहां से वे लगातार चार बार 1977, 1982, 1987, 1991 और फिर 2002 से 2004 तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य के तौर पर चंडीगढ़ पहुंचे थे।
महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र में एकछत्र राज करने वाले उनके पिता राव बीरेंद्र सिंह ने 1998 में उन्हें अपनी जगह लोकसभा का प्रत्याशी बनाया। वह पहले ही चुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे। जहां से उनका देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ। लेकिन अगले ही साल 1999 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। साल 2004 के चुनाव में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदियों से हार का बदला चुकता कर लिया। 1998 से 1999 तक राव संसद, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की पर्यावरण और वन संबंधी स्थाई समिति के सदस्य भी रहे। 2004 में वे फिर महेंद्रगढ़ से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 2004 में उन्हें केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री बनाया गया। जहां वे 2006 तक इस पद की जिम्मेदारी संभालते रहे।

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