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किल्लारी भूकंप प्रबंधन से सबक लेकर भारत किसी भी आपदा का आत्मविश्वास से सामना कर सकता है: पवार

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने शनिवार को कहा कि देश में किसी भी प्राकृतिक आपदा का आत्मविश्वास से सामना करने की प्रशासनिक व्यवस्था महाराष्ट्र में 1993 के किल्लारी भूकंप के दौरान प्रभावी आपदा प्रबंधन से उत्पन्न हुई, जब वह राज्य के मुख्यमंत्री थे।
लातूर जिले में भूकंप की घटना के 30 साल पूरे होने के मौके पर उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कैसे राज्य सरकार और केंद्र द्वारा व्यापक पुनर्वास कार्य करने के लिए संसाधन जुटाए गए थे। तीस सितंबर, 1993 की सुबह लातूर और उस्मानाबाद जिलों के कई गांवों में 6.2-6.3 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें 8,000 से अधिक लोग मारे गए और 16,000 घायल हो गए।
पवार ने कहा, ‘‘वर्तमान में, भारत किसी भी प्रकार की आपदा का आत्मविश्वास से सामना कर सकता है क्योंकि देश में एक प्रभावी प्रशासनिक व्यवस्था मौजूद है जो किल्लारी भूकंप से उत्पन्न हुई थी।

देश ने इस भीषण त्रासदी से आपदा प्रबंधन का सबक सीखा।’’
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक ने इस प्रबंधन का संज्ञान लिया। राकांपा प्रमुख ने कहा, ‘‘हमने किल्लारी भूकंप से सीखा और अब हमारे पास भविष्य के प्राकृतिक संकटों से निपटने की क्षमता है…साथ ही आपदा प्रबंधन कानून की ताकत भी है।’’
पवार ने यह भी कहा कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव से कहा था कि वे भूकंप प्रभावित गांवों की अपनी यात्रा को टाल दें ताकि अधिकारी पुनर्वास कार्य पर ध्यान केंद्रित रखें। उन्होंने कहा कि राव को बाद में प्रभावित गांवों का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
घटनाओं को याद करते हुए पवार ने कहा कि 29 सितंबर, 1993 की रात को (गणपति) विसर्जन यात्रा हो रही थी। उन्होंने कहा, ‘‘एक मुख्यमंत्री को तब तक नहीं सोना चाहिए जब तक कि विसर्जन यात्रा खत्म न हो जाएं।

मुझे परभणी के पुलिस अधीक्षक का तड़के लगभग 3:45 बजे फोन आया और मुझे बताया गया कि विसर्जन पूरा हो गया है, जिसके बाद मैं सोने चला गया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘तड़के करीब 3:55 बजे अचानक खिड़कियां और फर्नीचर हिलने लगे। मुझे भूकंप महसूस हुआ। मैंने तुरंत अधिकारियों को सतर्क किया। बाद में पता चला कि किल्लारी गांव (लातूर जिले में) भूकंप का केंद्र था।’’
पवार ने कहा, ‘‘मैंने तुरंत अधिकारियों से अपने कैबिनेट सहयोगियों विलासराव देशमुख और पद्मसिंह पाटिल और राज्य के मुख्य सचिव को जगाने के लिए कहा। मैंने उनसे सुबह छह बजे (30 सितंबर) लातूर ले जाने के लिए एक विमान तैयार करने को भी कहा।’’
उन्होंने कहा कि त्रासदी के दृश्य विनाशकारी थे। पवार ने याद करते हुए कहा, ‘‘मैंने इस पैमाने की कोई प्राकृतिक आपदा कभी नहीं देखी।

यह दिल दहला देने वाली थी। हर जगह लाशें पड़ी थीं, घर खंडहर हो गए थे और लोग दर्द से कराह रहे थे।’’
पवार ने कहा कि उन्हें एहसास हुआ कि पुनर्वास तभी संभव है जब राज्य के सभी संसाधनों और पड़ोसी जिलों के अधिकारियों को इसमें शामिल किया जाए।
उन्होंने सोलापुर जिले के सर्किट (अतिथि) हाउस में ठहरने के अपने 15 दिनों को याद किया और कहा कि वह वहीं ठहरे ताकि काम प्रभावी ढंग से किया जा सके और जब भी उनका मन हो वह तुरंत उस्मानाबाद (अब धाराशिव) और लातूर जिलों का दौरा कर सकें।
पवार ने कहा, ‘‘सुविधाएं बिना किसी गड़बड़ी के पीड़ितों तक ठीक से पहुंचे, इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव से कुछ दिनों के बाद प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने का अनुरोध किया गया था, अन्यथा अधिकारी प्रधानमंत्री के दौरे में व्यस्त होते।’’

पवार ने कहा कि पुनर्वास के लिए धन एक बाधा थी, लेकिन तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को धन्यवाद, जिन्होंने 10 दिन के भीतर विश्व बैंक से धन उपलब्ध कराया।
पवार ने यह भी कहा कि 1993 में मुंबई में 10 विस्फोट हुए थे, लेकिन तनावपूर्ण स्थिति को कम करने के लिए उन्होंने जानबूझकर कहा था कि 11 विस्फोट हुए, जिनमें से एक अल्पसंख्यक बहुल इलाके में हुआ था। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘नतीजा यह हुआ कि लोगों को लगा कि दोनों समुदायों के लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ी है।

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