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Shaurya Path: Kargil War, India-China Relation और Israel-Palestine से संबंधित मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ कारगिल युद्ध से जुड़े मुद्दों, भारत-चीन संबंध और इजराइल-फिलस्तीन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
 

 
उत्तर- प्रधानमंत्री का संबोधन बड़ा प्रेरक था। वैसे उम्मीद नहीं थी कि पाकिस्तान इससे सबक लेगा और वही हुआ भी क्योंकि प्रधानमंत्री के भाषण के 24 घंटे से भी कम समय में पाकिस्तान की बैट टीम ने कश्मीर में हमला करने का प्रयास किया जिसे भारतीय सेना ने विफल कर दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का सिर्फ भाषण ही प्रेरक नहीं था बल्कि जिस तरह प्रधानमंत्री कारगिल की लड़ाई के समय वहां जवानों से मिलने के लिए बतौर भाजपा महासचिव आये थे और अब प्रधानमंत्री की हैसियत से उन्होंने जिस तरह सैन्य बलों का मनोबल बढ़ाया है वह काबिले तारीफ है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी अंतरराष्ट्रीय जगत में पाकिस्तान को अलग-थलग करने और सर्जिकल तथा एअर स्ट्राइक के माध्यम से उसे सबक सिखा चुके हैं इसलिए पाकिस्तान अब बदली रणनीति के तहत सीमापार से आतंकवाद बढ़ा रहा है।
 

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद और छद्म युद्ध का इस्तेमाल कर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भारतीय सैनिक उसके सभी आतंकवादी प्रयासों को पूरी ताकत से कुचल देंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने सीमा के बिल्कुल नजदीक से जिस तरह पाकिस्तान को चेतावनी और हिदायत दी है उससे पूरा इस्लामाबाद और रावलपिंडी हिल गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने बिल्कुल सही कहा है कि पाकिस्तान ने अतीत से कोई सबक नहीं लिया है और वह प्रासंगिक बने रहने के लिए आतंकवाद और छद्म युद्ध की आड़ में युद्ध जारी रखे हुए है।
 

 
उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारतीय सेना ने लद्दाख में करगिल के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में करीब दो महीने तक चले युद्ध के बाद जीत की घोषणा करते हुए 26 जुलाई 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता का ऐलान किया था। लेकिन यह जो ‘विजय’ है यह आसानी से नहीं मिली थी हमारे 20, 22, 25 साल के जवानों ने इस विजय के लिए और अपने देश की धरती की सुरक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। करगिल की दुर्गम पहाड़ियों की चोटियों पर लड़ा गया यह युद्ध दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध माना जाता है। करगिल की सबसे ऊँची चोटी टाइगर हिल से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ कर वहाँ तिरंगा फहराते भारतीय सैनिकों की तसवीरें आपके जेहन में ताजा होंगी लेकिन ऊपर बैठकर गोली बरसा रहे पाकिस्तानी सैनिकों से इस क्षेत्र को छुड़ाना कोई आसान काम नहीं था। उन्होंने कहा कि करगिल युद्ध में भारतीय सेना और वायुसेना ने अपनी जबरदस्त जांबाजी दिखाई लेकिन इस दौरान हमारे लगभग 500 जवानों ने अपनी शहादत भी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय जवानों के लिए सबसे मुश्किल बात यह थी कि वह नीचे थे और दुश्मन ऊँचाई पर बैठ कर हमें साफ-साफ देख भी रहा था और गोलियां बरसा कर नुकसान पहुँचा रहा था। उन्होंने कहा कि कल्पना करके देखिये कि ऐसे में क्या माहौल होगा जब दुश्मन के गोले और गोलियों से बचते हुए हमारे जवानों के सामने ऊपर चढ़ने की कठिन चुनौती भी है, रसद और गोला बारूद भी साथ लेकर जाना है, दुश्मन को ठिकाने भी लगाना है और उस समय सेना के पास आज की तरह रात में देख सकने वाले अत्याधुनिक उपकरण और कई अन्य प्रकार के साजो-सामान नहीं थे। उन्होंने कहा कि करगिल की ऊँची पहाड़ियों पर जहाँ सांस लेना भी मुश्किल होता है वहां हिम्मत दिखाते हुए बस आगे बढ़ते जाना बहुत कठिन था।
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि करगिल युद्ध को भारतीय सेना की एक बड़ी विजय के रूप में दुनिया इसलिए भी देखती है क्योंकि हमारी सेना के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बात यह थी कि दुश्मन ऊँची पहाड़ियों पर बैठा था और वहां से गोलियां बरसा रहा था। इसलिए हमारे जवानों को आड़ लेकर या रात में चढ़ाई कर ऊपर पहुँचना पड़ता था जोकि बहुत जोखिमपूर्ण था। उन्होंने कहा कि यही नहीं, करगिल की लड़ाई सेना और वायुसेना के आपसी समन्वय और सम्मिलित प्रयास का भी अनुपम उदाहरण थी। उन्होंने कहा कि करगिल के युद्ध में जहाँ भारतीय सेना की बोफोर्स तोपें दुश्मनों पर कहर ढा रही थीं तो 30 वर्ष बाद 1999 में ऐसा समय आया था जब भारतीय वायुसेना को हमले करने के आदेश दिये गये थे। उन्होंने कहा कि करगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 2700 से ज्यादा सैनिक मारे गये थे। इस लड़ाई में पाकिस्तान को 1965 और 1971 से भी ज्यादा नुकसान हुआ था।
 

 

उत्तर- अगर दोनों देशों के संबंध सुधरते हैं तो यह सिर्फ भारत और चीन के लिए ही नहीं बल्कि इस पूरे क्षेत्र के लिए अच्छी बात होगी। उन्होंने कहा कि लेकिन जैसा दिख रहा है या कहा जा रहा है वह सब हकीकत में बदलना इतना आसान नहीं है क्योंकि ड्रैगन के खाने वाले दांत अलग हैं और दिखाने वाले अलग हैं।

 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे यह अच्छी बात है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक महीने के भीतर दूसरी बार चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा बताया यह भी जा रहा है कि दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर भी हाल में वार्ता के दौर हुए हैं। उन्होंने कहा कि साथ ही यह भी पहली बार हुआ है कि एससीओ के सदस्य देशों के सुरक्षा अधिकारियों ने चीन में पहले संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास में हिस्सा लिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में चीन के साथ संबंध सुधारने पर जोर दे रही है। लेकिन भारत सरकार अपने उस रुख पर अडिग है कि चीन को भारत के साथ पिछले समझौतों का पूर्ण सम्मान करना ही होगा।
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात की बात है तो लाओस में हुई इस मुलाकात के दौरान जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से साफ-साफ कह दिया कि भारत के द्विपक्षीय संबंधों में स्थायित्व लाने और पुनर्बहाली के लिए चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा तथा पिछले समझौतों का पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करना ही होगा। उन्होंने कहा कि भारत का कहना है कि जब तक सीमा क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि इस मुलाकात के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा है कि वापसी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मार्गदर्शन दिए जाने की आवश्यकता पर सहमति बनी है। उन्होंने कहा कि उनके बयान में कहा गया है, ”एलएसी और पिछले समझौतों का पूरा सम्मान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हमारे संबंधों को स्थिर करना हमारे आपसी हित में है। हमें वर्तमान मुद्दों पर उद्देश्य और तत्परता की भावना का रुख रखना चाहिए।’’
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसी साल चार जुलाई को भी दोनों नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के मौके पर कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि अस्ताना में बैठक के दौरान, जयशंकर ने भारत के इस दृढ़ दृष्टिकोण की पुष्टि की थी कि दोनों पक्षों के बीच संबंध आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता पर आधारित होने चाहिए।
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के सुरक्षा अधिकारियों ने चीन में पहले संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास में हिस्सा लिया है जोकि अपने आप में अच्छा संकेत है। उन्होंने कहा कि इससे पहले आयोजित सभी आतंकवाद विरोधी अभ्यास द्विपक्षीय या बहुपक्षीय थे, लेकिन उनमें एससीओ के सभी सदस्य देश शामिल नहीं थे। उन्होंने कहा कि इस अभ्यास से यह प्रतिबिंबित होता है कि एससीओ के सभी सदस्य देश आतंकवाद से उत्पन्न खतरों के प्रति एक समान समझ रखते हैं।
 

 
उत्तर- फिलस्तीन में जो कुछ हुआ वह वहां की स्थानीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हिसाब से भी बड़ा घटनाक्रम है। उन्होंने कहा कि गाजा में युद्ध के बीच एकजुटता प्रदर्शित करते हुए फतह और हमास सहित 14 फलस्तीनी समूहों ने चीन की मध्यस्थता में हुई एक बैठक में आपसी मतभेदों को खत्म करने और फिलस्तीनी एकजुटता को मजबूत करने के लिए संयुक्त रूप से संकल्प लिया।
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन के विदेश मंत्रालय ने तीन दिन तक प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच बातचीत का समन्वय किया। उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कहा है कि यह घोषणा इजराइली हमलों से त्रस्त गाजा पट्टी में ‘‘व्यापक, टिकाऊ और सतत युद्धविराम’’ को बढ़ावा देने की दिशा में पहला कदम है। उन्होंने कहा कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इन गुटों के नेताओं से मुलाकात की और कहा कि समझौते पर हस्ताक्षर फिलस्तीन मुद्दे के लिए एक महत्वपूर्ण, ऐतिहासिक क्षण है। उन्होंने कहा कि समझौते के तहत प्रतिद्वंद्वी समूह युद्ध के बाद गाजा पर शासन करने के लिए एक अंतरिम राष्ट्रीय सुलह सरकार बनाने पर सहमत हुए हैं।
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस समझौते का उद्देश्य इजराइल के साथ संघर्ष में फिलस्तीनियों को एकजुट करना है। उन्होंने कहा कि हस्ताक्षरकर्ताओं में हमास के वरिष्ठ अधिकारी मूसा अबू मरज़ूक और फतह के दूत महमूद अल-अलौल के साथ-साथ 12 अन्य फिलस्तीनी समूहों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह पहली बार है जब 14 प्रतिद्वंद्वी समूह सुलह वार्ता के लिए बीजिंग में एकत्र हुए। उन्होंने कहा कि वैसे यह सुलह फिलस्तीनी गुटों का आंतरिक मामला है, लेकिन साथ ही इसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन के बिना हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस वार्ता का मुख्य परिणाम यह है कि पीएलओ (फिलस्तीन मुक्ति संगठन) सभी फिलस्तीनी लोगों का एकमात्र वैध प्रतिनिधि है। उन्होंने कहा कि गाजा युद्ध के बाद शासन और एक अंतरिम राष्ट्रीय सुलह सरकार के गठन पर समझौता हुआ है।
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमास गाजा पट्टी पर शासन करता है, जबकि फतह फिलस्तीनी प्राधिकरण को नियंत्रित करता है, जिसका वेस्ट बैंक पर आंशिक प्रशासनिक नियंत्रण है। उन्होंने कहा कि इजराइल ने गाजा में युद्ध समाप्त होने से पहले हमास को नष्ट करने का संकल्प लिया है। इसलिए इजराइल ने बीजिंग की घोषणा को तुरंत खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इजराइल के विदेश मंत्री आई. काट्ज ने ‘एक्स’ पर जारी एक पोस्ट में कहा कि आतंकवाद को खारिज करने के बजाय, महमूद अब्बास हमास के हत्यारों और बलात्कारियों को गले लगाते हैं, जिससे उनका असली चेहरा सामने आया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा इस घोषणापत्र पर ऐसे समय में हस्ताक्षर किए गए हैं, जब इजराइल और हमास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थित संघर्ष-विराम प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं, जो गाजा पट्टी में नौ महीने से जारी युद्ध को समाप्त कर सकता है और हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजराइली नागरिकों की आजादी की राह तैयार कर सकता है।
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि, समझौते पर सहमति बनने के बावजूद युद्ध के बाद गाजा पट्टी की स्थिति को लेकर संशय बरकरार रहेगा, क्योंकि इजराइल इस क्षेत्र के शासन में हमास की किसी भी भूमिका के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि हमास ने वर्ष 2007 में हिंसक संघर्ष के दौरान फिलस्तीन के तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अब्बास के वफादार फतह लड़ाकों को गाजा पट्टी से खदेड़कर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद से ही दोनों समूह एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं।
 

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की अमेरिका यात्रा की बात है तो वहां उन्हें पहले की तरह समर्थन मिलने की बजाय नसीहत ज्यादा मिली है। उन्होंने कहा कि इजराइली प्रधानमंत्री को हालांकि अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने का अवसर मिला लेकिन जिस तरह उनकी यात्रा के विरोध में अमेरिका में प्रदर्शन हुए उससे वहां के राजनीतिक दल चौकन्ने हो गये हैं और इजराइल को अब पहले जैसा समर्थन नहीं दे रहे। उन्होंने कहा कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी परिस्थितियों को देखते हुए ही इजराइल से कहा है कि वह जल्द से जल्द इसका हल निकालें। कमला हैरिस ने इजराइल से हमास के साथ जल्द युद्धविराम समझौता करने और गाजा में विनाशकारी युद्ध स्थायी रूप से समाप्त करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि फिलस्तीनी क्षेत्र में हताहतों की संख्या बढ़ने और मानवीय संकट गहराने के बीच कमला हैरिस ने इजराइल के प्रधानमंत्री से यह आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू ने राष्ट्रपति जो. बाइडन से भी मुलाकात की लेकिन उसमें भी ज्यादा कुछ निकल कर नहीं आया। उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि युद्ध के नौवें महीने में पहुंचने के साथ नेतन्याहू पर इजराइल-गाजा युद्ध को समाप्त करने के लिए लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है।

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