नमस्कार प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह मिग-21 लड़ाकू विमानों और एएलएच ध्रुव हेलिकॉप्टरों को सेवाओं से अस्थायी तौर पर हटाये जाने, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, जी-7 सम्मेलन के जवाब में चीन की ओर से मध्य एशियाई देशों के सम्मेलन, पाकिस्तान के हालात और चीन की चुनौतियों के बीच भारतीय नौसेना के बढ़ती ताकत संबंधी मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. वायुसेना ने मिग-21 लड़ाकू विमानों को अस्थायी रूप से सेवा से हटा दिया है। इससे पहले सेना ने एएलएच ध्रुव हेलिकॉप्टर पर रोक लगायी थी। यह रोक आखिरकार क्यों लगानी पड़ी? इसी से जुड़ा एक सवाल यह है कि जब हम तीनों सेनाओं का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहे हैं तब क्यों हमारे प्रशिक्षु विमान दशकों पुराने हैं?
उत्तर- वायुसेना ने अपने 50 मिग-21 लड़ाकू विमानों के बेड़े को अस्थायी रूप से सेवा से हटा दिया है। यह फैसला करीब दो सप्ताह पहले राजस्थान के हनुमानगढ़ में एक मिग-21 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद लिया गया है। आठ मई को सूरतगढ़ में वायु सेना स्टेशन से नियमित प्रशिक्षण के लिए रवाना हुआ मिग-21 विमान हनुमानगढ़ में दुर्घटनाग्रस्त होकर एक घर पर गिर गया था। इस दुर्घटना में तीन लोगों की मौत हो गई थी। घटनाक्रम से अवगत लोगों ने कहा है कि सभी मिग -21 विमान फिलहाल तकनीकी मूल्यांकन और जांच के दौर से गुजर रहे हैं, और जांच दलों की मंजूरी के बाद ही उन्हें उड़ान भरने की अनुमति दी जाएगी। दरअसल, हनुमानगढ़ की घटना के बाद सोवियत मूल के मिग-21 विमान फिर से चर्चा में आ गए थे। 1960 के दशक की शुरुआत में मिग-21 को पेश किए जाने के बाद से अब तक लगभग 400 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। लंबे समय तक मिग-21 भारतीय वायुसेना का मुख्य आधार हुआ करते थे। भारतीय वायुसेना ने अपने समग्र युद्ध कौशल को बढ़ाने के लिए 870 से अधिक मिग-21 लड़ाकू विमान खरीदे थे। हालांकि, विमान का सुरक्षा रिकॉर्ड बहुत खराब है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह दशकों में 400 मिग-21 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। फिलहाल वायुसेना के पास लगभग 50 मिग-21 विमान हैं। इसके अलावा ध्रुव हेलीकॉप्टर को लेकर भी काफी शिकायतें आई हैं जिस पर गौर करने और उनका समाधान निकालने की जरूरत है क्योंकि इससे एचएएल की साख भी प्रभावित हो रही है।
प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध में अब खुलकर अमेरिकी हथियारों का उपयोग रूस के खिलाफ होने लगा है। आखिर किस दिशा में जा रहा है यह युद्ध? हाल ही में यूक्रेनी राष्ट्रपति की जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री से भी मुलाकात हुई। भारत कह चुका है कि यह युद्ध का समय नहीं है। क्या आपको लगता है कि इस युद्ध का विराम करवाने में भारत कोई भूमिका निभा सकता है?
उत्तर- युद्ध में खुलकर अमेरिकी और नाटो हथियारों का उपयोग होना ही था क्योंकि यूक्रेनी सैनिकों को इन्हीं हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है लेकिन जिस तरह रूस ने पहले अमेरिका की पैट्रियट मिसाइल को मार गिराया और उसके बाद कई और हथियारों को मार गिराया उससे रूसी ताकत में इजाफा हुआ है। अमेरिका को डर है कि उसने यूक्रेन को एफ-16 लड़ाकू विमान देने का फैसला तो कर लिया है लेकिन कहीं रूस ने उसे भी मार गिराया और रिवर्स इंजीनियरिंग कर ली तो अमेरिका का दुनिया भर में प्रचलित एक बड़ा हथियार अपनी साख खो देगा। जहां तक इस युद्ध के भविष्य की बात है तो यूक्रेन और रूस दोनों ही लंबे समय तक लड़ने के लिए तैयार हैं और पिछले एक साल में दुनिया भी जिस तरह इस युद्ध की आदी हो चुकी है उससे बाकी देशों को भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जी7 समूह की बैठकों के दौरान भी किसी ने युद्ध खत्म करने या करवाने की बात नहीं की बल्कि यूक्रेन को अपना समर्थन बढ़ाने की घोषणा की है। जी7 नेताओं ने यूक्रेन पर छह पृष्ठों के एक बयान में सख्त लहजे में कहा, ‘‘यूक्रेन के लिए हमारा समर्थन कम नहीं होगा। हम यूक्रेन के खिलाफ रूस के अवैध, अनुचित और अकारण युद्ध के विरोध में एक साथ खड़े होने का संकल्प लेते हैं। रूस ने इस युद्ध की शुरुआत की थी और वह इस युद्ध को समाप्त भी कर सकता है।’’ हालांकि यूक्रेन पर रूस द्वारा 15 महीने पहले हमला शुरू किये जाने के बाद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ आमने-सामने की वार्ता की और उनसे कहा कि संकट का समाधान तलाशने के लिए भारत हर संभव प्रयास करेगा। देखा जाये तो रूस-यूक्रेन युद्ध पिछले साल फरवरी में शुरू हुआ था। मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ-साथ जेलेंस्की से फोन पर कई बार बात की है। इस दौरान उन्होंने कहा है कि संघर्ष को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। हालांकि भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की अब तक निंदा नहीं की है और नयी दिल्ली यह कहता रहा है कि संकट का समाधान कूटनीति और बातचीत के माध्यम से किया जाना चाहिए।
प्रश्न-3. जी-7 देशों के नेता जापान में शिखर सम्मेलन की जब तैयारी कर रहे थे, उसी समय चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मध्य एशियाई देशों कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के अपने समकक्षों से मुलाकात की। आखिर पश्चिम का विकल्प बनने की योजना के तहत चीन मध्य एशिया में किस तरह अपना प्रभाव बढ़ा रहा है? इसके अलावा जी-7 और क्वॉड के संयुक्त बयान को जिस तरह चीन ने खारिज किया उसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- दरअसल अमेरिका के नेतृत्व वाली उदारवादी व्यवस्था का एक ऐसा विकल्प बनने की चीन की कोशिशों के लिए मध्य एशिया अहम है, जिसमें निर्विवाद रूप से चीन का प्रभुत्व हो। शी जिनपिंग ने मध्य एशिया देशों के समकक्षों के साथ बैठक के दौरान ‘‘साझा भविष्य के साथ चीन-मध्य एशिया समुदाय के नजरिए’’ को रेखांकित किया, जो आपसी सहायता, साझा विकास, वैश्विक सुरक्षा और स्थायी मित्रता के चार सिद्धांतों पर निर्भर होगा। हालांकि चीन और मध्य एशिया के बीच संबंधों को अकसर सुरक्षा एवं विकास के संदर्भ में देखा जाता है, लेकिन इसका राजनीतिक पहलू भी है, जो शिआन में हुए शिखर सम्मेलन में की गई और क्षेत्रीय सहयोग करने की पहल से नजर आता है। ये पहल चीनी मंत्रालयों एवं सरकारी एजेंसियों और मध्य एशिया में उनके समकक्षों के बीच संबंध बनाने, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने और मध्य एशिया-चीन व्यापार परिषद जैसे तंत्र पैदा करने का प्रस्ताव रखती हैं। इससे क्षेत्र में चीन की भूमिका और मजबूत होने की संभावना है। इसके बदले में, चीन मध्य एशिया के अधिकतर सत्तावादी नेताओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर ले जाने की कोशिश करने वाले पश्चिमी देशों के आर्थिक एवं राजनीतिक दबाव से दूर रखने का काम करेगा और किसी भी प्रकार के रूसी दुस्साहस से उनकी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेगा।
शिखर सम्मेलन के दौरान 54 समझौते हुए, 19 नए सहयोग तंत्र एवं मंच बनाए गए और शिआन घोषणा पत्र सहित नौ बहुपक्षीय दस्तावेज तैयार किए गए। ऐतिहासिक रूप से, रूस मध्य एशिया का मुख्य साझेदार रहा है, लेकिन वह अब मध्य एशिया में चीनी निवेश और निर्माण अनुबंधों का मुकाबला नहीं कर सकता, जो 2005 के बाद से लगभग 70 अरब डॉलर है। चीन की वैश्विक ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल की तुलना में रूस की क्षेत्रीय एकीकरण परियोजना- ‘यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन’ के घटते महत्व से चीन की ओर झुकाव दिखाई देता है। अवसंरचना निवेश का ‘बेल्ट एंड रोड’ कार्यक्रम 2013 में कजाखस्तान में शी ने शुरू किया था और तब से यह क्षेत्र न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि राजनीतिक रूप से भी चीन के करीब आ गया है। यूक्रेन युद्ध संबंधी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप रूसी ‘‘उत्तरी गलियारा’’ अब काफी हद तक बंद है, ऐसे में ‘मध्य गलियारा’ कहा जाने वाला मार्ग न केवल चीन के लिए बल्कि जी7 देशों के लिए भी महत्वपूर्ण हो गया है। मध्य गलियारा तुर्की में शुरू होता है और जॉर्जिया एवं मध्य एशिया से गुजरता है।
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समान भू-राजनीतिक महत्व वाला एक अन्य विकल्प अफगानिस्तान के जरिए पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर के माध्यम से अरब सागर तक परिवहन है। लंबी अवधि में, अफगानिस्तान से गुजरने वाला मार्ग चीन और मध्य एशिया दोनों के हित में है। यह अफगानिस्तान में स्थिरता और सुरक्षा में योगदान देगा (लेकिन इस पर निर्भर भी करेगा)। पांच मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रपतियों ने जिस उत्साह के साथ इन पहलों का स्वागत किया है, वह यह दर्शाता है कि वे चीन के निकट जाने के कितने इच्छुक हैं। बहरहाल, यह देखना होगा कि यह दृष्टिकोण क्षेत्र में चीन विरोधी भावना के मद्देनजर कितना टिकाऊ या लोकप्रिय होगा।
प्रश्न-4. पाकिस्तान के हालात पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? क्या मुख्य विपक्षी पार्टी पर प्रतिबंध लगाना जायज है? इसके अलावा जी-20 सम्मेलन का कश्मीर में सफल आयोजन पाकिस्तान के लिए कितना बड़ा झटका है?
उत्तर- पाकिस्तान के जो हालात हैं वह किसी भी दृष्टि से भारत के लिए ठीक नहीं हैं। अस्थिर पाकिस्तान भारत के लिए और बड़ा खतरा साबित हो सकता है क्योंकि जिहाद की राह पर चलने वालों को मानवता से जरा भी प्रेम नहीं होता। इमरान खान पर अंकुश लगाने, उन्हें गिरफ्तार करने, उन्हें सैन्य कानूनों के तहत सजा देने और उनकी पार्टी के नेताओं को पीटीआई पार्टी छोड़ने और राजनीति तक छोड़ने के लिए जिस प्रकार का दबाव डाला जा रहा है वह पूरी दुनिया देख रही है। सोशल मीडिया के इस जमाने में पाकिस्तान के हर हालात पूरी दुनिया के सामने हैं। शहबाज शरीफ आज जिस सेना के समर्थन से इमरान खान को घेर रहे हैं, कल को उनका खुद का भी ऐसा ही हाल हो सकता है।
जहां तक कश्मीर में जी-20 सम्मेलन के सफल आयोजन की बात है तो विदेशी प्रतिनिधियों ने बैठक में भाग लेने के अलावा कश्मीरी संस्कृति को जानने समझने का प्रयास किया, वहां के मशहूर पकवानों का जायका लिया, खूबसूरत वादियों का दीदार किया, शॉपिंग की और आम कश्मीरियों से उनका हाल-चाल जाना। इसके जरिये पाकिस्तान के सारे झूठ का तो पर्दाफाश हुआ ही साथ ही कश्मीर में हो रहे विकास से भी विदेशी प्रतिनिधि रूबरू हुए। कश्मीर में जमीनी लोकतंत्र मजबूत हुआ है, नए उद्योग आ रहे हैं, तेजी से कृषि विकास हमारे गांवों को समृद्ध बना रहा है, बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से हो रहा है। जम्मू-कश्मीर में पिछले साल 300 से अधिक फिल्मों की शूटिंग हुई। पूरी दुनिया देख रही है कि पूरा समाज खासतौर से युवा पीढ़ी अपने तथा देश के लिए एक उज्ज्वल भविष्य की पटकथा लिख रहे हैं।
प्रश्न-5. चीन की बढ़ती चुनौतियों के बीच हाल ही में भारतीय नौसेना ने आईएनएस मोरमुगाओ से मध्यम दूरी की सतह से हवा में प्रहार करने वाली मिसाइल का सफल परीक्षण किया, इसके अलावा नौसेना ने कलवरी वर्ग की पनडुब्बी वागशीर का समुद्र में परीक्षण शुरू किया। इसके अलावा पिछले सप्ताह यह भी खबर रही कि भारतीय नौसेना ने हिन्द महासागर में डूबी चीनी नौका का पता लगाया। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- भारतीय नौसेना ने अपने अग्रिम निर्देशित मिसाइल विध्वंसक पोत आईएनएस मोरमुगाओ से मध्यम दूरी की सतह से हवा में प्रहार करने वाली मिसाइल (एमआरएसएएम) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। पोत ने समुद्र में तैरने वाले (सी स्कीमिंग) एक ‘सुपरसोनिक लक्ष्य’ को भी सफलतापूर्वक भेद दिया। ‘सी स्कीमिंग’ तकनीक का इस्तेमाल अनेक पोत–रोधी मिसाइल और कुछ लड़ाकू विमान रडार की पहुंच में आने से बचने के लिए करते हैं। भारतीय नौसेना के नवीनतम स्वदेशी निर्देशित मिसाइल विध्वंसक पोत आईएनएस मोरमुगाओ ने सफलतापूर्वक समुद्र में तैर रहे सुपरसोनिक लक्ष्य को भेद दिया। आईएनएस मोरमुगाओ द्वारा पहला सफल एमआरएसएएम प्रक्षेपण लक्ष्य पर सटीक तरीके से आयुध पहुंचाने के भारतीय नौसेना के प्रयास में एक और मील का पत्थर है और भारतीय नौसेना की भविष्य में लड़ाकू तत्परता और आत्मनिर्भर भारत के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
इसके अलावा, भारतीय नौसेना की कलवरी वर्ग की छठी और अंतिम पनडुब्बी वागशीर के समुद्र में परीक्षण शुरू हो गए हैं और इसे अगले साल की शुरुआत तक बेड़े में शामिल किए जाने की उम्मीद है। ‘प्रोजेक्ट-75’ के तहत निर्मित पनडुब्बी को बेड़े में शामिल करने से ऐसे वक्त में नौसेना की युद्धक क्षमता बढ़ेगी जब चीन हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी तेजी से बढ़ा रहा है। नौसेना ने कहा, ‘‘प्रोजेक्ट-75 की छठी पनडुब्बी ने 18 मई को समुद्र में अपना परीक्षण शुरू कर दिया है।’’ वागशीर के समुद्र में परीक्षण पूरे होने के बाद 2024 की शुरुआत में भारतीय नौसेना को इसकी आपूर्ति किए जाने की संभावना है। पनडुब्बी को मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) के कन्होजी आंग्रे वेट बेसिन से पिछले साल अप्रैल में लॉन्च किया गया था। भारत, हिंद महासागर में चीन के बढ़ते कदमों को लेकर जतायी जा रही आशंकाओं के मद्देनजर क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के साथ अपनी समुद्री क्षमताओं पर जोर दे रहा है। प्रोजेक्ट-75 में देश में ही छह पनडुब्बियों का निर्माण शामिल है। इन पनडुब्बियां का निर्माण फ्रांस नौसैन्य समूह के साथ मिलकर मुंबई स्थित एमडीएल में किया जा रहा है। कलवरी वर्ग की पांच पनडुब्बियों को पहले ही भारतीय नौसेना में शामिल किया जा चुका है। नौसेना ने कहा है कि एमडीएल ने 24 महीने में प्रोजेक्ट-75 की तीन पनडुब्बियों की आपूर्ति की है और छठी पनडुब्बी के समुद्र में परीक्षण शुरू करना एक अहम उपलब्धि है। यह ‘आत्म निर्भर भारत’ की ओर बढ़ने का संकेत है।
दूसरी ओर, भारतीय नौसेना के समुद्री गश्ती विमान पी8आई ने हिन्दी महासागर में तीन दिन पहले डूबी चीन की मछली पकड़ने की नौका का पता लगा लिया। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के नौसैनिक पोत को नौका के स्थान की जानकारी भी दी गयी ताकि वह आगे काम कर सके। दरअसल गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाली चीनी नौका ‘लु पेंग युआन यू नंबर 028’ हिन्द महासागर के मध्य हिस्से में डूब गयी था। उस पर सवार चालक दल में चीन के 17, इंडोनेशिया के 17 और फिलीपीन के पांच नाविक सवार थे। ऑस्ट्रेलिया, भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मालदीव और फिलीपीन आदि नौका का पता लगाने में चीन की मदद कर रहे हैं। भारतीय नौसेना ने डूबी हुई नौका का पता लगाने और लापता नाविकों की तलाश के लिए अपने समुद्री गश्ती विमान पी8आई को तैनात किया था। तलाशी एवं बचाव कार्य जारी रखते हुए भारतीय नौसेना के विमान पी8आई ने इलाके की गहन तलाशी ली और डूबी हुई नौका का 18 मई को पता लगा लिया।